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दक्षिण-पूर्वी इलाके में दिल्ली पुलिस बुरी तरह पस्त हुई या फिर कहिये 'फेल' हो गई. जामिया कांड के बाद दूसरा यानी अब अगला रविवार (22 दिसंबर 2019) जब आया तो, जामिया से भी बड़ी चुनौती दिल्ली पुलिस के सामने मुंह बाये खड़ी है. वह है रविवार को मध्य दिल्ली के रामलीला मैदान में हो रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशाल रैली. जामिया में 'हार की मार' के जख्म दिल्ली पुलिस अभी सहला ही रही थी कि अब इस रविवार को जामिया से भी बड़ा संकट दिल्ली पुलिस के सामने मौजूद है.
दिन भर आशंकाओं से भरा माहौल बना रहा हो. शाम ढले कई वाहनों को आग में झोंक डाला गया हो. उपद्रवियों और दिल्ली पुलिस के जहां दिन रात लुका-छिपी का खेल खेला जाता रहा हो. कभी भी किसी भी अनहोनी की आशंका के चलते जिस इलाके को शुक्रवार को छावनी में तब्दील कर दिया गया हो. सोचिये उसी इलाके से चंद फर्लाग दूर रविवार को देश के प्रधानमंत्री की इतनी विशाल जनसभा का आयोजन किया जा रहा हो. इन सब हालातों में सुरक्षा इंतजामों को लेकर राज्य पुलिस को पसीना आना लाजिमी है.
भले ही प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए विशेष तौर पर तैयार स्पेशल प्रोटक्शन ग्रुप यानी एसपीजी दस्ता क्यों न पूरी ताकत झोंक रहा हो. क्यों न एसपीजी ने जनसभा वाले स्थान (मध्य दिल्ली जिले में स्थित रामलीला मैदान) का चप्पा-चप्पा एहतियातन कब्जे में ले लिया हो. फिर भी दिल्ली पुलिस की अपनी भी जिम्मेदारियां तो मुंह बाये सामने खड़ी ही हैं. सिर्फ इस नजरिये के साथ कि जामिया में हुई फजीहत से दिल्ली पुलिस निपट ली. प्रधानमंत्री मोदी के सभा-स्थल या उसके आसपास भी परिंदा 'पर' फड़फड़ा कर उड़ भर भी गया, तो गाज किसी एक पर नहीं तमाम पर गिरना तय है.
मतलब साफ है कि जामिया में बीते रविवार को पुलिस की ढीली रणनीति के चलते जो कुछ 'हुआ-गया-गुजरा', वह सब जनता और पुलिस ने झेल लिया. हां, अब रविवार यानी 22 दिसंबर को रामलीला मैदान में पीएम की सभा में हुई चूक अक्षम्य अपराध के बतौर ही नापी तौली जायेगी.
शायद यही वजह है कि शनिवार को अवकाश होने के बाद भी दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक अपने लाव-लश्कर के साथ एक के बाद दूसरी बेहद व्यस्त बैठकों में मशरुफ रहे. सिर्फ इस आशंका को निर्मूल करने की चिंताओं की उधेड़-बुन में कि दरियागंज की आग की लपट की चिंगारी भर भी कहीं उछल
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