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कश्मीर: डॉक्टर बस इतना कह रहा था मरीजों को बचाओ, उठा ले गई पुलिस

डॉ. उमर श्रीनगर के एक प्रेस एन्क्लेव में मीडिया से बात कर रहे थे, जब पुलिस उन्हें अपने साथ ले गई.

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डॉ. उमर को अपने साथ ले जाती पुलिस. उन्होंने अपने हाथ में एक तख्ती पकड़ी हुई थी, जिस पर लिखा था ‘विरोध नहीं गुजारिश’
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डॉ. उमर को अपने साथ ले जाती पुलिस. उन्होंने अपने हाथ में एक तख्ती पकड़ी हुई थी, जिस पर लिखा था ‘विरोध नहीं गुजारिश’
(फोटो : स्क्रीनशॉट / Altered By Quint Hindi)

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जम्मू-कश्मीर की मौजूदा स्थिति के बारे में खुलकर बोलने वालों को प्रशासन की सख्ती का सामना करना पड़ रहा है. श्रीनगर में ऐसा ही एक वाकया देखने को मिला. सोमवार 26 अगस्त को गवर्मेंट मेडिकल कॉलेज के एक यूरोलॉजिस्ट, डॉ. उमर श्रीनगर के एक प्रेस एन्क्लेव में मीडिया से बात कर रहे थे. जैसे ही उन्होंने कश्मीर में जारी स्वास्थ्य संकट का जिक्र किया, उन्हें बोलने से रोक दिया गया और पुलिस उन्हें अपने साथ ले गई.

द टेलिग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, “डॉ. उमर ने अपने हाथ में एक तख्ती पकड़ी हुई थी, जिस पर लिखा था 'Request and not a Protest' (विरोध नहीं गुजारिश). उमर ने मीडिया से लगभग 10 मिनट तक बात की. इससे पहले कि वे अपनी बात जारी रख पाते, पुलिस उन्हें एक अज्ञात जगह पर ले गई." रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि सरकार के प्रवक्ता रोहित कंसल ने लगातार दूसरे दिन भी शाम की मीडिया ब्रीफिंग नहीं की.

उमर के भाई और एक परिचित ने ट्विटर पर घटना का वीडियो शेयर करते हुए उनकी कथित गिरफ्तारी पर सवाल उठाया है.

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क्या बोल रहे थे डॉ. उमर

द टेलीग्राफ के मुताबिक, उमर ने मीडिया से कहा था कि पाबंदियों और कठोर नीतियों की वजह से मरीजों को अपना इलाज करने के लिए यात्रा करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, खासतौर से वे लोग जो डायलिसिस और कीमोथेरेपी के मरीज हैं.

बीबीसी उर्दू से बात करते हुए उन्होंने कहा कि आयुष्मान भारत योजना के तहत रजिस्टर्ड मरीज इंटरनेट और लैंडलाइन कनेक्शन पर लगाए गए प्रतिबंधों के चलते योजना का लाभ नहीं ले पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि योजना के तहत मुफ्त इलाज की पेशकश की जाती है, लेकिन इसके लिए मरीजों को पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं.

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इंटरनेट एक्सेस और आयुष्मान भारत स्कीम के बीच की कड़ी के बारे में बताते हुए डॉ. उमर ने कहा कि ये पूरी प्रक्रिया इंटरनेट पर निर्भर करती है, क्योंकि यह स्मार्ट कार्ड पर आधारित होता है, जो स्वाइप किए जाते हैं और नतीजतन, सिस्टम पर मरीजों के विवरण की जांच की जाती है.

हालांकि वे इस बारे में निश्चित नहीं थे कि इन पाबंदियों की वजह से कोई मौत हुई है या नहीं, लेकिन उनकी जानकारी में कुछ मामले हैं, जहां अस्पताल में मरीज का अपॉइंटमेंट बाद की तारीख के लिए आगे बढ़ा दिया गया. उन्होंने बीबीसी उर्दू को बताया कि अगर किसी मरीज को हर हफ्ते डायलिसिस के तीन सेशन की जरूरत होती है, लेकिन अगर वह केवल एक सेशन में ही जा पाता है, तो रोगी की मौत हो सकती है.

18 डॉक्टरों ने खत लिखकर चिंता जताई

18 अगस्त को मेडिकल जर्नल द बीएमजे में प्रकाशित 18 डॉक्टरों की ओर से लिखे गए एक खत में कहा गया था कि घाटी में लगाए गए प्रतिबंधों के कारण लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच बनाने में मुश्किल हो रही है. उदाहरण के लिए, लोग एम्बुलेंस को कॉल करने और रोगी को संबंधित अस्पताल में ले जाने में असमर्थ हैं.

बता दें कि 5 अगस्त को मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने संविधान के आर्टिकल 370 को रद्द कर दिया था, जो जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देती है. इसके बाद जम्मू-कश्मीर में कर्फ्यू लगा दिया गया और कई तरह की पाबंदियां लगा दी गईं. हालांकि जम्मू में प्रतिबंधों में ढील दी गई है, लेकिन कश्मीर के ज्यादातर हिस्सों में स्थिति ऐसी नहीं है.

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Published: 27 Aug 2019,05:40 PM IST

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