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‘कश्मीर संघर्ष में कई मौतें, नहीं मिल रहे डेथ सर्टिफिकेट’

कश्मीर की मौजूदा स्थिति को लेकर अलग-अलग तरह के दावे सामने आ रहे हैं 

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जम्मू-कश्मीर को लेकर प्रशासन का दावा है कि वहां 5 अगस्त से सुरक्षाबलों के साथ संघर्ष में किसी भी आम नागरिक की जान नहीं गई है. हालांकि, ब्रिटिश अखबार इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट में इस दावे से उलट जानकारी सामने आई है.

इस रिपोर्ट के मुताबिक, कश्मीर में कई परिवारों का कहना है कि भारत सरकार ने जब से जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने का ऐलान किया है, तब से वहां सुरक्षाबलों और प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष में कई आम नागरिकों की जान गई है.

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बता दें कि केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को आर्टिकल 370 को बेअसर करने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का ऐलान किया था. इस ऐलान से ठीक पहले ही वहां कई तरह की पाबंदियां लागू कर दी गई थीं, जिनसे कर्फ्यू जैसे हालात बन गए.

ये पाबंदियां लागू होने के 10 दिन बाद जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह ने कहा था कि (सुरक्षाबलों के साथ संघर्ष में) किसी की भी जान नहीं गई है. इसके बाद जम्मू-कश्मीर के प्रिंसिपल सेक्रेटरी रोहित कंसल ने भी अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यही दावा किया था.

‘5 अगस्त को ही हुई थी पहली मौत’

इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट में औसैब अल्ताफ नामक एक लड़के के परिवार और उसके दोस्तों के हवाले से दावा किया गया है कि कश्मीर के मौजूदा संकट में 5 अगस्त को ही पहली जान चली गई थी, जब 17 वर्षीय औसैब की मौत हुई थी.

ओसैब के एक दोस्त ने बताया- नॉर्थवेस्ट श्रीनगर में सुरक्षाबल प्रदर्शनकारियों का पीछा कर रहे थे. उसी दौरान औसेब झेलम नदी में कूद गया था. बाद में ओसैब को SMHS हॉस्पिटल ले जाया गया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. औसेब के परिवार को अब तक उसका डेथ सर्टिफिकेट नहीं मिला है.

औसेब के पिता अल्ताफ अहमद ने इस मामले पर बताया, ‘’डॉक्टर डेथ सर्टिफिकेट ना देने के दबाव में हैं. भारत (सरकार) का दावा है कि कश्मीर में स्थिति शांत है, यह सच नहीं है. कम्युनिकेशन पर पाबंदी हटी तो सच सामने आ जाएगा.’’

श्रीनगर के एक डॉक्टर ने इंडिपेंडेंट को बताया कि हॉस्पिटल स्टाफ को प्रशासन से साफ निर्देश मिले हैं कि वे संघर्ष में घायल लोगों को कम से कम भर्ती करें और उन्हें जल्दी से डिस्चार्ज कर दें, जिससे कि आंकड़े कम ही रहें.

'9 अगस्त को गई दूसरी जान'

42 साल के रफीक शगू का कहना है कि 9 अगस्त को श्रीनगर के बाहरी इलाके बेमिना में सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारियों के साथ संघर्ष के दौरान आंसू गैस छोड़ी थी. उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी फहमीदा बानो ने इस धुएं की चपेट में आने के बाद सीने में दर्द की शिकायत की थी.

इसके बाद शगू फहमीदा को झेलम वेली हॉस्पिटल लेकर गए. शगू ने बताया कि वहां पहुंचने के 40 मिनट के अंदर ही फहमीदा की मौत हो गई. 4 दिन बाद जब शगू अपनी पत्नी का डेथ सर्टिफिकेट लेने चीफ मेडिकल ऑफिसर (CMO) के पास पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि यह सर्टिफिकेट पुलिस के पास है. फिर लगातार कोशिश के बाद एक डॉक्टर और दोस्त के दखल पर उन्हें डेथ सर्टिफिकेट मिल पाया.

शगू का कहना है कि फहमीदा के डेथ सर्टिफिकेट में मौत की असली वजह नहीं लिखी गई है, जिससे यह संघर्ष के दौरान हुई मौतों के आंकड़े में ना जुड़ सके.

'17 अगस्त को भी गई एक जान'

17 अगस्त की शाम को श्रीनगर जिले के यारीपोरा में सुरक्षाबलों और प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष हुआ. मौके पर मौजूद लोगों के मुताबिक, सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारियों का पीछा करने के बाद इलाके के घरों में पत्थर फेंकने शुरू कर दिए. उस दौरान 55 साल के अयूब खान अपने घर पर मौजूद थे. उन्होंने मस्जिद से किया गया एक ऐलान सुना, जिसमें कहा गया था कि पुलिस निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचा रही है, इसलिए लोग अपने घरों से बाहर निकलें.

इसके बाद अयूब ने अपनी 7 साल की बेटी से घर के अंदर ही रहने को कहा और वह बाहर आ गए. तभी वह आंसू गैस के धुएं की चपेट में आ गए. अयूब के भाई शब्बीर ने बताया कि अयूब के मुंह से खून बाहर आने लगा था, ऐसे में उन्हें तुरंत SMHS हॉस्पिटल ले जाया गया. हॉस्पिटल पहुंचने पर डॉक्टरों ने बताया कि अयूब की पहले ही मौत हो चुकी है.

इंडिपेंडेंट ने बताया है कि इलाके में गुस्सा भड़कने की आशंका से पुलिस ने अयूब के परिवार से कहा कि अयूब के जनाजे में 10 से ज्यादा लोगों को ना रखा जाए. अयूब के परिवार को अब तक उनका डेथ सर्टिफिकेट भी नहीं मिला है.

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