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जब आप पूरी दुनिया के सबसे कठिन एग्जाम्स में से एक का सफर शुरू करते हैं, तो सिविल सर्विसेज (UPSC) के उम्मीदवारों की प्रेरणा क्या होती है? सामाज में स्थिति, करियर, सिविल सेवाओं के आकर्षण आदि से भिन्न हो सकते हैं लेकिन पूजा झा की तलाश ये नहीं थी. उन्होंने सिविल सेवा एग्जाम 2021 को पहले प्रयास में क्रैक किया है. पूजा की मोटीवेशन बहुत अलग थी क्योंकि वह अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही थीं, वो घर पर लैंगिक समानता हासिल करने के लिए लड़ाई लड़ रही थीं.
भारतीय समाज में पुरुष को वरीयता दी जाती है क्योंकि बेटे को बुढ़ापे में सहारा देने के तौर पर देखा जाता है और लड़की को किसी और के परिवार का हिस्सा माना जाता है. दुर्भाग्य से पूजा के परिवार के मन में भी यह बात बैठी थी कि वह इस परिवार में बेटा पैदा करने की कोशिश में पैदा हुई थी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पूजा अपने परिवार की पांचवीं लड़की हैं और कल्पना की जा सकती है जब वह पैदा हुई थीं तो उन पर किस तरह का प्यार बरसा होगा. यह कहना गलत नहीं होगा कि वह एक ऐसे परिवार का हिस्सा थीं, जो एक लड़के की तलाश में था. फैमिली की तलाश जल्द ही समाप्त हो गई और परिवार को अगली बार एक लड़का मिला.
पूजा ने इस असमानता को दूर करने के लिए एक तरीका खोजा. उन्होंने देखा कि हर साल जब वह अपने स्कूल की वार्षिक परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करती थी, तो उसे हर कोई प्यार करता था और उसका सम्मान करता था. इसलिए, उसने हर साल अपनी सफलता का जश्न मनाना शुरू कर दिया और यह मानने लगी कि रिजल्ट के दिन उसका जन्मदिन है, जिसे हर कोई मना रहा है और उसे स्पेशल महसूस करा रहा है. उसके इस नजरिए ने उस जीवन की नींव रखी, जिसे वह आगे बढ़ाने जा रही थी और इस तरह क्लास में फर्स्ट आना उसकी आदत बन गई.
पूजा परिवार में इकलौती लड़की है, जिसने इंटर से आगे की पढ़ाई की है. उसकी सभी बहनों की शादी 18-19 साल की उम्र में ही कर दी गई थी. उसके पिता एक चपरासी के रूप में काम करते हैं और परिवार की आय बहुत कम है. उन्होंने एमसीडी द्वारा संचालित स्कूलों में पढ़ाई की और इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की. पूजा ने बहुत मेहनत की और दिल्ली के माने-जाने मौलाना आजाद आयुर्विज्ञान संस्थान के लिए दंत चिकित्सा में एक सीट हासिल की.
पूजा जानती थी कि उनके पास एमबीबीएस के लिए भी सीट क्लियर करने की क्षमता है लेकिन जल्द से जल्द शिक्षा प्राप्त करने की जरूरत से मोटीवेट होकर उसने खुद को पूरी तरह से इस पाठ्यक्रम में लगा दिया.
सिविल सर्विसेज एग्जाम के बारे में पढ़ा कि समाज में कितना महत्वपूर्ण माना जाता है. हालांकि, उसके पिता और मां को पता नहीं था कि सिविल सेवा परीक्षा क्या है और इसकी तैयारी कैसे की जाती है. डेंटिस्ट्री में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब पूजा ने सिविल सर्विसेज एग्जाम देने की बात कही तो परिवार ने उसका साथ नहीं दिया. परिवार की उम्मीद थी कि वह दांत की डॉक्टर बनेगी और परिवार की आर्थिक मदद करेगी. उसने 2019 में परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी.
पूजा सिविल सर्वेंट बनना चाहती थी, लेकिन उसे इस बात का बहुत कम अंदाजा था कि एग्जाम की तैयारी कैसे की जाए. उसने एग्जाम के बारे में और जानकारियां निकाली, वह समझ गई कि यह एग्जाम कठिन है और इसे पास करने के लिए एक से अधिक प्रयासों की जरूरत हो सकती है और वह रिस्क नहीं ले सकती है.
इसके बाद पूजा ने मेन रिवीजन, टेस्ट सीरीज और मेंटरशिप प्रोग्राम के लिए लिए Rau’s IAS Scholarship प्रोग्राम क्वालिफाई किया और मेंटर के पास पहुंची. वहीं पर मंगल सिंह उनके मार्गदर्शन करने के लिए तैयार थे, जो एक सीनियर फेकेल्टी हैं. उनका पहला सवाल था कि क्या आप इस एग्जाम को पहले प्रयास में पास कर सकती हैं? इस सवाल पर पूजा ने कहा कि हां मैं कर सकती हूं.
पूजा ने खूब मेहनत की और अपने आत्मविश्वास की वजह से एक IFS अधिकारी बनने के लिए सभी बाधाओं को पार किया, जो वह हमेशा बनना चाहती थी. सिविल सेवक बनने का यह सपना लगभग एक दशक पुराना है, लेकिन यूपीएससी परीक्षा को पहले प्रयास में पास करने के लिए उसे सिर्फ एक ईमानदार प्रयास करना पड़ा. अब उसके परिवार को इतना ध्यान और सम्मान मिल रहा है, जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पूजा ने कहा कि
भारत में कई ऐसे लोग हैं जो यूपीएससी एग्जाम की तैयारी करना चाहते हैं और सिविल सेवक बनना चाहते हैं, वे सभी तरह की चुनौतियों का सामना भी करते हैं. लेकिन पूजा के इस सफर से हम जो सीख सकते हैं, वह यह है कि अगर आप कहीं भी पूरी लगन से लग जाएं तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है. यकीनन, पूजा नए भारत की आत्मविश्वासी महिलाओं का चेहरा हैं और वो जल्द ही सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी.
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