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कांग्रेस और आरएसएस दो अलग विचारधारा, दो अलग रास्ते. मानो दोनों नदी का दो किनारा, जो कभी मिल नहीं सकता. एक के हीरो नेहरू हैं, तो दूसरे के लिए नेहरू किसी विलेन से कम नहीं. लेकिन एेसे में जब कांग्रेस की परंपरा और आदर्श में पले बढ़े पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आरएसएस के कार्यक्रम में जाने का न्योता को स्वीकार करते हैं तो हंगामा तो होना ही था.
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पहचान एक सेक्युलर, अनेकता में एकता और आरएसएस के धुर विरोधी और कांग्रेस पार्टी के मजबूत नेता के रूप में की जाती रही है.
7 जून 2018 को प्रणब मुखर्जी नागपुर के रेशमबाग मैदान में हो रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समारोह में शामिल होंगे. इसको लेकर पी. चिदंबरम, जयराम रमेश, सीके जाफर समेत कई कांग्रेस ने विरोध जताया है. लेकिन अब सवाल ये है कि ये विरोध क्यों? इस सवाल का जवाब भी प्रणब मुखर्जी के दिए भाषणों से ही मिलता है.
आइए देखें -प्रणब मुखर्जी की कुछ एेसी बातों को जो उनके व्यक्तित्व को बयान करता है.
23 जुलाई 2017 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संसद के सेंट्रल हॉल में अपने विदाई भाषण में कहा ‘आजादी के बाद हमने देश में भाईचारा, प्रतिष्ठा और एकता बढ़ाने का बीड़ा उठाया. ये देश के आदर्श बन गए.’
बतौर राष्ट्रपति देश को आखिरी बार संबोधित करते हुए प्रणब मुखर्जी ने सहिष्णुता, एकता, विविधता पर बहुत देर तक बोले, उन्होंने कहा था,
पहली बार राष्ट्रपति बनने के बाद 25 जुलाई 2012 को प्रणब मुखर्जी ने सभी धर्मों को साथ लेकर चलने पर भी बात कही.
उन्होंने कहा था,
हर दिन हम अपने आसपास बढ़ती हुई हिंसा देखते हैं. इस हिंसा की जड़ में अज्ञानता, भय और अविश्वास है. हमें अपने जन संवाद को सभी तरह की हिंसा से मुक्त करना होगा. एक अहिंसक समाज ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों के सभी वर्गों विशेषकर पिछड़ों और वंचितों की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है. हमें एक सहानुभूतिपूर्ण और जिम्मेवार समाज के निर्माण के लिए अहिंसा की शक्ति को पुनर्जाग्रत करना होगा.
पिछले साल फरवरी में दिल्ली के रामजस कॉलेज में लेफ्ट विंग छात्रों और एबीवीपी के बीच हुए विवाद के बाद प्रणब मुखर्जी ने छात्रों को लेकर भी बयान दिया था.
उन्होंने बिना रामजस कॉलेज का नाम लिए 2 मार्च 2017 को केरल के कोच्चि में छठे के.एस. राजामोनी लेक्चर के दौरान कहा कि विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों को केवल डिबेट और वार्ता से ऐसे मुद्दों का समाधान करना चाहिए. उन्होने कहा कि छात्रों को इन मुद्दों पर लड़ाई-झगड़ा करके विवाद पैदा करना गलत तरीका है.
1 जुलाई 2017 को नेशनल हेराल्ड अखबार के स्मरणीय संस्करण और वेबसाइट के लॉन्च के मौके पर उन्होंने देश में हो रहे अल्पसंख्यकों और दलितों के खिलाफ बढ़ती हिंसा को लेकर भी बहुत मजबूत तरीके से अपनी बात रखी थी.
उन्होंने कहा,
एेसे में अब सबकी निगाहें उन बातों पर टिकी हैं कि प्रणब दा आरएसएस के कार्यक्रम में क्या बोलेंगे.
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