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जनता दल यूनाइटेड के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर के लगातार बागी होते तेवरों को पार्टी आलाकमान ज्यादा सहन करने के मूड में नहीं दिख रही है. शुक्रवार को राज्यसभा सांसद और जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव राम चंद्र प्रसाद सिंह ने दो टूक शब्दों में कहा है कि प्रशांत किशोर चाहें तो पार्टी छोड़ सकते हैं.
प्रशांत किशोर नागरिकता संशोधन विधेयक पर पार्टी के रुख के खिलाफ लगातार हमलावर हैं. शुक्रवार को प्रशांत ने एक और ट्वीट कर कहा कि संसद में बहुमत आगे रहा, अब न्यायपारिका के अलावा देश की आत्मा को बचाने की जिम्मेदारी देश के 16 गैर-बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री के ऊपर आ गई है, पंजाब, केरल और बंगाल के मुख्यमंत्री ने CAB को न कह दिया है, अब बाकियों को भी इस मामले में अपना रुख साफ कर देना चाहिए.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, राम चंद्र प्रसाद सिंह ने कहा, "प्रशांत किशोर जैसे लोग पार्टी में “दया के आधार पर” आए हैं और अगर वे जेडीयू की राह पसंद नहीं, तो वे उन्हें अपना रास्ता चुन लेना चाहिए." किशोर पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में सिंह ने कहा, “वह पार्टी में कब आए? संगठन का कौन सा काम उन्होंने किया है और वह अब कहां काम कर रहे हैं?"
इसके साथ ही राम चंद्र प्रसाद सिंह ने ये भी कहा, "पार्टी प्रशांत किशोर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगी, क्योंकि वे मौजूदा समय में वे पार्टी में किसी अहम पद पर नहीं हैं."
नागरिकता संशोधन बिल पर जेडीयू के रुख से नाराज पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बीते दिनों में कई बार ट्वीट करके अपना असंतोष जाहिर किया है. जब लोकसभा में विधेयक पर मतदान होने के बाद जब वह पारित हो गया तब किशोर ने ट्वीट किया कि विधेयक पार्टी के संविधान से मेल नहीं खाता. उन्होंने ट्वीट में लिखा, “जदयू के नागरिकता संशोधन विधेयक को समर्थन देने से निराश हुआ. यह विधेयक नागरिकता के अधिकार से धर्म के आधार पर भेदभाव करता है. यह पार्टी के संविधान से मेल नहीं खाता जिसमें धर्मनिरपेक्ष शब्द पहले पन्ने पर तीन बार आता है. पार्टी का नेतृत्व गांधी के सिद्धांतों को मानने वाला है.”
इसके बाद प्रशांत किशोर ने बुधवार को ट्वीट कर कहा कि जेडीयू नेतृत्व को उन लोगों के बारे में विचार करना चाहिए जिन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव में उनमें आस्था और विश्वास को दोहराया था. किशोर ने अपने ट्वीट में कहा, "कैब का समर्थन करते हुए, जेडीयू नेतृत्व को एक पल के वास्ते उन सभी के बारे में विचार करना चाहिए, जिन्होंने 2015 में उनमें आस्था और विश्वास को दोहराया था."
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