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प्रयागराज के अटाला में ठिठक गई है जिंदगी, बुलडोजर का डर: ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट

"आप खुद देखें कि इस सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों के साथ क्या होता है."

पीयूष राय
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>प्रयागराज के अटाला में ठिठक गई है जिंदगी, बुलडोजर का डर: ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट</p></div>
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प्रयागराज के अटाला में ठिठक गई है जिंदगी, बुलडोजर का डर: ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट

(फोटो- क्विंट)

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मोहम्मद नासिर, जिनकी उम्र करीब 60 साल है वो प्रयागराज के अटाला में अपनी दुकान के बाहर कॉस्मेटिक के सामान से भरे कार्टन गाड़ी में रखने में अपने परिवार की मदद कर रहे हैं. 10 जून को अटाला में विरोध हिंसक (Prayagraj Violence) हो गया था, जिसमें पथराव और आगजनी हुई थी. हिंसा के बाद पुलिस की कार्रवाई में जिले में कम से कम 90 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

जैसे ही दुकान के बाहर मीडिया के लोग इकट्ठा हुए और अपना सामान जैसे, माइक वगैरह निकालना शुरू किया तो नासिर के परिवार ने घबराहट में तेजी से अपना सामान समेटना शुरू कर दिया.

बताया जा रहा है कि अटाला से बमुश्किल 2 किलोमीटर दूर शहर के करेली इलाके में जावेद मोहम्मद (Javed Mohammad) के आवास पर बुलडोजर चलने से दहशत फैल गई है. पुलिस जावेद मोहम्मद को ही हिंसा का मुख्य साजिशकर्ता बता रही है.

जहां जावेद का घर अब खंडहर है, वहीं विध्वंस के झटके अब अटाला के निवासियों में दहशत और खौफ में साफ महसूस किए जा सकते हैं. नासिर जैसे कई दुकानदारों ने चुपचाप अपनी दुकानों से सामानों को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करना शुरू कर दिया है क्योंकि इस क्षेत्र में कर्फ्यू लगा हुआ है.

कर्फ्यू जैसी स्थिति ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया

स्थानीय प्रशासन की ओर से इलाके में आने-जाने के सभी मुख्य रास्तों को बंद कर दिया गया है. रैपिड एक्शन फोर्स (RAF) और प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (PAC) के पुलिस अधिकारी और कर्मी इन बैरिकेड्स की निगरानी कर रहे हैं. आईकार्ड दिखाने के बाद ही मीडिया कर्मियों को प्रवेश की अनुमति है.

मुख्य सड़क के दोनों ओर दुकानें हैं, लेकिन लोग नहीं दिख रहे हैं. मुख्य सड़कों से अलग होने वाली संकरी गलियों में भी यही स्थिति है, जो इलाके के हर महत्वपूर्ण चौराहे पर तैनात पुलिस कर्मियों के बार-बार देखे जाने से वीरान दिखती हैं. पुलिस वाहनों के सायरन की आवाज कभी-कभी क्षेत्र में व्याप्त असहज शांति को चीरती है.

एक दुकानदार ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि हमने हिंसा के बाद से अपनी दुकानें नहीं खोली हैं. सभी प्रवेश बिंदुओं को बंद कर दिया गया है और वे किसी को भी क्षेत्र के अंदर नहीं जाने दे रहे हैं. अगर वे हमें दुकानें खोलने की अनुमति भी देते हैं, तो हम इसे इस तरह कैसे चलाएंगे.

प्रयागराज प्रशासन की ओर से दुकानें बंद करने का कोई आदेश जारी नहीं करने के बावजूद, स्थानीय लोग व्यवसाय से दूर रहे.

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अटाला में एक शॉप के मालिक अमित पांडे ने बताया कि इस क्षेत्र में प्रवेश करने का शायद ही कोई रास्ता है. इस पर कोई दिशानिर्देश नहीं है कि हम कब दुकानें फिर से खोल सकते हैं और चीजें सामान्य हो जाएंगी. स्थानीय लोगों का दावा है कि हिंसा को भड़काने वाले बाहर से बदमाश थे. यहां मेरी दुकान काफी समय से है. अब चार साल हो गए हैं और इस तरह की घटना कभी नहीं देखी.

इलाके में स्थानीय मस्जिद की ओर जाने वाली गली में पुलिस की कार्रवाई चर्चा का विषय है. अटाला क्षेत्र के निवासी मोहम्मद अली बताते हैं कि मस्जिद के इमाम अहमद अली को भी हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है. "जब एक पक्ष की सुनी ही नहीं जाएगी तो फिर कैसा होगा सबका साथ-सबका विकास. इमाम जो लोगों को तितर-बितर करने के लिए कह रहे थे और उन्हें वापस जाने का अनुरोध कर रहे थे, उनको भी गिरफ्तार कर लिया गया. जावेद मोहम्मद के घर को ध्वस्त कर दिया गया. क्या आपको लगता है कि यह उचित था"

असंतुष्टों को संदेश?

अटाला से दो किलोमीटर दूर जावेद मोहम्मद का आवास खंडहर में है. अभी तक मलबा साफ नहीं किया जा सका है. वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया की सदस्यता रसीद बुक, मोहम्मद की बेटी सुमैया फातिमा की रिपोर्ट कार्ड और "To dear Umam Bhai" और "You are like flower" लिखा हाथ से बने कार्ड सहित परिवार के कई निजी सामान अभी भी मलबे में दबे पड़े हैं.

आनन-फानन में हुए तोड़फोड़ का असर आसपास के भवनों पर भी पड़ा है. कुछ यात्री रुकते हैं, कुछ देर के लिए मलबे को देखते हैं और आगे बढ़ते हैं. घूंघट में महिलाओं का एक समूह, जो कुछ देर के लिए सड़क पर रुके थे, मलबे को देखते हुए दबे स्वर में बोलने लगे.

मैंने उनमें से एक से पूछा.... क्या स्थानीय लोगों ने इस विध्वंस का विरोध नहीं किया? उन्होंने जवाब दिया कि "आप खुद देखें कि इस सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों के साथ क्या होता है."

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