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राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड में 3 जाति के ही लोग क्यों? केंद्र की दलील

राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए सिर्फ तीन जातियों के लोगों की भर्ती

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भारत
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राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए सिर्फ तीन जातियों के लोग
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राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए सिर्फ तीन जातियों के लोग
(फोटो: presidentofindia.nic.in)

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देश के सर्वोच्च पद पर विराजमान राष्ट्रपति की सुरक्षा में तैनात सिक्युरिटी गार्डों की जातियों पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. अब केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति के सिक्योरिटी गार्डों की जाति आधारित भर्ती को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब दिया है. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट को दिए जवाब में सरकार ने कहा है कि भर्तियां जाति, धर्म या क्षेत्र के मुताबिक नहीं वर्ग के आधार पर की जाती हैं और ऐसा 'काम की जरूरत' के हिसाब से किया जाता है. हालांकि सरकार ने ये साफ नहीं किया कि यहां वर्ग से क्या मतलब है?

इंडियान एक्सप्रेस में छपि खबर के मुताबिक राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए जाट, राजपूत और जाट सिख जाति के सिक्योरिटी गार्ड की भर्ती के फैसले को सही ठहराते हुए सरकार ने कहा कि इस सिस्टम को बनाए रखते हुए कामकाज में किसी तरह की कोई समस्या नहीं आई है. सरकार ने ये भी कहा है कि भर्तियां नियुक्ति निदेशालय, रक्षा मंत्रालय हेडक्वार्टर की गाइडलाइंस के मुताबिक की जा रही हैं. सरकार ने ये भी कहा कि राष्ट्रपति भवन के प्रोटोकॉल के मुताबिक सिर्फ 150 जवानों की टुकड़ी को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है.

सरकार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 33 में संसद को सेना के संबंध में मौलिक अधिकारों को सीमित करने या खत्म करने का अधिकार का प्रावधान है. इसमें सेना अधिनियम को शामिल करते हुए मान्यता दी गई है कि सभी नागरिक नियमित सेना में भर्ती के लिए योग्य हैं, लेकिन संविधान की ओर से अयोग्य करार दिए गए लोग इसमें शामिल नहीं हो सकते.
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मनीष दयमा की याचिका पर सरकार ने दिया जवाब

सरकार ने ये जवाब सितंबर 2017 में गुरुग्राम के मनीष दयमा की ओर से दायर याचिका पर दिया है. 2017 में राष्ट्रपति सिक्योरिटी गार्ड के पद के लिए मनीष ने भर्ती न मिलने के बाद अपने कोर्ट की शरण ली.

अपनी दलील में, दयमा ने कहा कि वह गुर्जर समुदाय से हैं. उनकी 6 फीट ऊंचाई है, 10वीं क्लास की परीक्षा में 46 फीसदी और 12वीं में 56 फासदी नंबर हासिल किए. लेकिन उनके नौकरी के आवेदन को अधिकारियों ने ये कहते हुए रद्द कर दिया था कि वो एडवर्टाइजमेंट में दी गई जातियों के नियम को पूरा नहीं करते हैं.

बता दें, इससे पहले भी इस तरह की कई जनहित याचिकाएं कोर्ट में लगाई जा चुकी हैं, लेकिन हर बार इन याचिकाओं को रद्द कर दिया गया है.

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