advertisement
24 साल की कविता पिछले एक हफ्ते से पुणे में घरेलू हेल्पर के तौर पर काम कर रही हैं. वो एक तरह का 'टॉप वर्क' करती हैं - जिसका स्थानीय भाषा में मतलब झाड़ू, पोछा और बर्तन साफ करना होता है. जिसकी वजह से उनकी घर के महत्वपूर्ण स्थानों तक पहुंच है.
कविता के लिए घर का ‘एक्सेस’ महत्वपूर्ण है. दरअसल वो घरेलू हेल्पर नहीं हैं. वो प्राइवेट सीक्रेट एजेंट हैं, जो परिवार के बारे में तहकीकात करके सूचना जुटा रही हैं. वो इसलिए ऐसा कर रही है क्योंकि उसके जो क्लाइंट हैं उनकी बेटी की शादी उस घर में होनी है.
वो हंसते हुए कहती हैं कि...
हाल ही में रिलीज हुई फिल्म नियत में, एक्ट्रेस विद्या बालन ने एक CBI जासूस मीरा राव की भूमिका निभाई है जो एक अरबपति की मौत की जांच में जुटी है. ब्योमकेश बख्शी, फेलुदा और सेथुरामा अय्यर (CBI फिल्म सीरीज ममूटी) के रूप में पुरुष प्राइवेट डिटेक्टिव भारत में पॉप संस्कृति का हिस्सा रहे हैं, लेकिन महिलाओं का ऐसा कोई प्रतिनिधित्व पहले नहीं रहा है.
द क्विंट को कविता ने बताया, "मेरे अभी जो बॉस हैं, उनको मेरा नाम मेरी दोस्त ने सुझाया था, क्योंकि मुझे हमेशा पता होता है कि मेरी सभी दोस्तों के साथ क्या हो रहा है? मेरे पास हमेशा सारी जानकारी होती है. लेकिन यह इतना आसान नहीं है, आपको सतर्क रहने के लिए प्रशिक्षित होने की जरूरत है ".
उन्हें अपना पहला केस वैसे याद है जैसे कल की ही बात हो. उनका काम एक आदमी का पीछा करना था और उससे जुड़ी जानकारी उसकी पत्नी को देना था.
डिंपल याद करते हुए बताती हैं, "उस आदमी ने उससे नौकरी के बारे में झूठ बोलकर शादी कर ली. महिला कमाती थी और माता-पिता की देखभाल करती थी, लेकिन वो मर्द दूसरी महिला के साथ घूम रहा था. शादी के तीन महीने बाद उसे शक हो गया." डिंपल बताती हैं कि कैसे उन्होंने एक सप्ताह तक उसका पीछा किया था. फिर वो उसकी पत्नी को मिली और सारी सबूतें जुटाकर सौंप दिया. एक साल बाद इस जोड़े को तलाक मिल गया.
इसके कुछ अलिखित नियम हैं. ये महिला डिटेक्टिव सोशल मीडिया पर नहीं हैं. वे लगभग कभी भी कहीं भी अपने असली नाम का उपयोग नहीं करती हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात - कभी भी ऐसे कपड़े नहीं पहनती हैं जिससे उन पर ध्यान किसी का जाए. जब वे नौकरी पर होती हैं तो वे हर हफ्ते या हर दो हफ्ते में एक नई पहचान भी अपना लेती हैं.
डिंपल बताती हैं, "ज्यादातर महिलाएं छाप छोड़ना चाहती हैं. वे चाहती हैं कि उन्हें याद रखा जाए. लेकिन हम नहीं. हम नहीं चाहते कि कोई हम पर ध्यान दे, या यहां तक कि मेरे पहले के चेहरे को भी याद करे. मैं कोई भी हो सकती हूं. मैं कभी कोई सर्वे के बहाने किसी के घर जा सकती हूं तो कभी सिर्फ ट्रेन में आपके बगल में बैठकर यात्रा कर सकती हूं. आखिरी बार मैंने अपनी शादी में मेकअप किया था, और वो भी 12 साल पहले."
हालांकि, इस काम में महिलाओं की संख्या अब थोड़ी ठीक-ठाक है, लेकिन अभी भी ये काफी नहीं है और इसमें अभी भी मर्दों की प्रधानता है.
रेशमा भी विवाह से पहले की पड़ताल और बेवफाई से जुड़े मामलों को संभालती हैं. लेकिन अब उन्हें ऐसे भी मामले मिलने लगे हैं जिसमें माता-पिता अपने बच्चों की ही जासूसी कराते हैं.
तो आखिर वो अपना काम कैसे करती हैं? ज्यादा कुछ खास डिटेल दिए बिना वो कहती हैं कि,
"उदाहरण के लिए, मैं उनके स्कूल के बाहर या घर के पास चुपचाप इंतजार करती हूं. बच्चे का पीछा करती हूं. कभी-कभी, अगर कोई बच्चा किसी विशेष स्थान पर बार-बार आता हुआ देखा जाता है, या यदि कोई डीलर शामिल होता है, तो हम खुद भी एक ग्राहक के तौर पर उनसे जुड़ते हैं. मेरे पास तीन दोपहिया वाहन हैं, और मैं उन्हें बदलती रहती हूं. अगर हमें कुछ भी संदिग्ध लगता है, या फिर बच्चा खतरे में है, तो हम तुरंत माता-पिता को फोन करते हैं."
इसके साथ ही वो आगे बताती हैं कि इनमें से अधिकांश मामलों में सावधानीपूर्वक योजना बनाने और पकड़े जाने की स्थिति में एक कवर स्टोरी की आवश्यकता होती है.
अब इसमें पकड़े जाने का डर काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में प्राइवेट डिटेक्टिव का काम एक लाइसेंस प्राप्त पेशा नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में, इसमें शामिल लोगों की जांच बढ़ गई है.
प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसियां (विनियमन) विधेयक 2007 में पेश किया गया था और तब से यह संसदीय समिति के पास है.
प्राइवेट डिटेक्टिव - पुरुष और महिला दोनों – इस तरह के काम करके अपनी जान जोखिम में डालते हैं.. हालांकि, इसके कुछ अनकहे नियम हैं जिनका सख्ती से पालन करना जरूरी है.
वह आगे कहती हैं, "हम ऐसे मामलों को भी नहीं लेते हैं जहां हमसे लोगों की उनके प्राइवेट जगहों यानि कमरों और दूसरी चीजों की निजी तस्वीरें लेने के लिए कहा जाता है. ऐसा करने से हमें परेशानी हो सकती है. यह नैतिक रूप से भी सही नहीं है."
तो फिर आखिर ऐसा क्या है कि वो इस काम को करती हैं ?
रेशमा कहती हैं, "इसमें भागदौड़ है, रोमांच है और अंत में आपको यह भी महसूस होता है कि आप एक ईमानदार व्यक्ति की मदद करने के लिए कुछ उपयोगी कर रहे हैं, और अक्सर वे हमारे जैसी महिलाएं होती हैं."
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined