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यशपाल : वो क्रांतिकारी लेखक जिसने वायसराय की ट्रेन में लगाया था बम

क्रांतिकारी लेखक यशपाल की पत्रिका ‘बागी’ ने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों पर प्रहार किया.

चमन लाल
भारत
Updated:
(फोटो: क्विंट हिंदी)
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(फोटो: क्विंट हिंदी)
यशपाल: जिन्होंने कलम को बनाया अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का हथियार

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भारत की आजादी के लिए सैकड़ों-हजारों क्रांतिवीरों ने आहुतियां दीं और अपने-अपने तरह से विरोध दर्ज किया. कोई लाठी के साथ क्रांति में शामिल हुआ तो कोई अहिंसा के विचारों के साथ.
लेकिन यशपाल तीसरे तरह के थे, उन्होंने कलम को अपना हथियार बनाया.

क्रांति का सफर

यशपाल का जन्म 3 दिसंबर 1903 को फिरोजपुर में हुआ था, जहां उनकी मां एक शिक्षिका थीं. यशपाल आठवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान ही राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रभाव में आ गए थे. दसवीं कक्षा तक आते-आते तो उन्होंने भाषण देना और सफेद कुर्ता-पायजामा पहनना शुरू कर दिया था.

इसके बाद की उनकी शिक्षा-दीक्षा गुरुकुल कांगड़ी में हुई और यहीं से उनका मन आर्य समाज के नैतिकतावाद से उचाट हो गया. बाद में जब उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया, जहां उनके साथी भगत सिंह, सुखदेव और भगवती चरण वोरा जैसे लोग थे.

नेशनल कॉलेज में यशपाल क्रांतिकारी बने, और 1932 में गिरफ्तार होने तक क्रांतिकारी ही बने रहे. यशपाल ने भारत के ब्रिटिश वायसरॉय की ट्रेन में 23 दिसंबर 1929 को बम लगा दिया था. बम से हुए धमाके में वायसराय तो बच गए, लेकिन कई अन्य लोग मारे गए.

इस घटना के बाद वह 6 साल से भी ज्यादा समय तक जेल में रहे और 1938 में यूपी की कांग्रेस मिनिस्ट्री ने उन्हें रिहा किया. हालांकि इसके बाद भी उन्हें अपने गृह-प्रदेश पंजाब जाने की मनाही थी.

लेखन से जुड़ाव

यशपाल ने जेल में ही हिन्दी में कहानियां लिखनी शुरू कर दी थीं और कहानियों का उनका पहला संकलन 1939 में उनके जेल से बाहर आने के बाद प्रकाशित हुआ.

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जेल से छूटने के बाद यशपाल ने लखनऊ को ही अपना ठिकाना बनाया और वहीं से हिंदी में ‘विप्लव’ और उर्दू में ‘बागी’ नाम से पत्रिका निकालने लगे.

विप्लव को इसके उग्र लेखों की वजह से बैन कर दिया गया. विप्लव का चंद्रशेखर आजाद पर निकाला गया संस्करण पाठकों के बीच खासा लोकप्रिय हुआ था.

आजादी के बाद के साहित्य को परिभाषित किया

यशपाल नागरिक अधिकारों की लड़ाई भी लड़ते रहे और आजादी के बाद भी जेल गए. वह एक दमदार लेखक थे और दुनिया भर में घूमे थे.

उन्होंने कुल मिलाकर 12 उपन्यास लिखे, जिनमें से ‘झूठा सच’ को उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति माना जाता है. यह उपन्यास भारत के विभाजन और उसके बाद की घटनाओं पर आधारित है.

यशपाल ने आजादी के बाद के साहित्य को परिभाषित किया

इसके अलावा यशपाल ने 300 से ज्यादा लघुकथाएं भी लिखी थीं. वहीं कई किताबों और तीन यात्रा संस्मरणों को भी उन्होंने अपनी कलम से कागज के पन्नों पर उतारा था.

उनके उपन्यास ‘मेरी तेरी उसकी बात’ के लिए मृत्यु से कुछ ही दिन पहले उन्हें साहित्य अकादमी अवॉर्ड से नवाजा गया था. 26 दिसंबर 1976 को 73 साल की उम्र में यशपाल ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

(लेखक चमल लाल, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से रिटायर्ड प्रोफेसर हैं और शहीद भगत सिंह और यशपाल की जीवन पर रिसर्च से जुड़े रहे हैं.)

यह भी पढ़ें: झारखंड,गुजरात उपचुनाव के नतीजों का 2019 के चुनाव पर क्या होगा असर?

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Published: 26 Dec 2015,08:08 AM IST

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