- झारखंड की कोलेबिरा विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के नमन विक्सल कोंगाड़ी की 9658 वोटों से जीत
- गुजरात के जसदण उपचुनाव में BJP के कुंवरजी बावलिया की 19000 वोट से जीत
कोलेबिरा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस की जीत और जसदण में बीजेपी की जीत के क्या मायने हैं? 2019 चुनाव को ध्यान में रखते हुए इन नतीजों को किस तरह देखे जाना चाहिए? बता रहे है क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया.
झारखंड की कोलेबिरा विधानसभा सीट पर कांग्रेस पहली बार जीतकर आई है. खास ये है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) जो यूपीए गठबंधन में है, उसने निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन देने का फैसला किया था यानी कांग्रेस अपने बूते पर लड़कर जीत कर आई. यहां बीजेपी दूसरे नंबर पर आई जो कि ये JMM के लिए वॉर्निंग है कि कांग्रेस अपने दमखम पर उभार पर है.
इसका असर ये होगा कि महागठबंधन में यहां पर भी कांग्रेस की बात सुनी जाने लगेगी. झारखंड में कुल 14 लोकसभा सीटें हैं. अब कांग्रेस कम से कम 6 सीटों पर दावा कर सकती है. JMM 4 पर. बाबू लाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा को अपने पास बनाकर रखना है तो 2 सीटें उन्हें देने होंगे. आरजेडी को भी 2 सीटें देना होगा. कुछ इसी लाइन पर सीटों का बंटवारा डिस्कस हो रहा है.
JMM को तोड़ने की कोशिश करेगी बीजेपी
दूसरा ट्वीस्ट ये है कि बीजेपी JMM को तोड़ने की कोशिस कर सकती है. लेकिन दिक्कत ये है कि JMM जो लगातार बीजेपी को सांप्रदायिक बताकर विरोध करती आई है, उसके साथ JMM का गठबंधन दिक्कतों से भरा होगा. हालांकि, बीजेपी की तरफ से कोशिश जरूर होगी.
सबसे बड़ा संकेत
इस उपचुनाव से एक और चीज निकलकर आई है, जो ऐतिहासिक होगी. झारखंड में शिबू सोरेन की JMM और बाबू लाल मरांडी की पार्टी JVM दो बड़ी ट्राइबल पार्टियां हैं. ये एक दूसरे के खिलाफ हैं. अगर ये दोनों एक साथ आ जाएं तो ये बड़ा डेवलपमेंट होगा. फिलहाल, इस उपचुनाव से साफ तौर पर कांग्रेस को मोरल बूस्ट मिला है. वहीं छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में हार के बाद बीजेपी के लिए नॉर्थ इंडिया बड़ी चुनौती बनता जा रही है.
गुजरात में 'इंपोर्ट मॉडल' की एक बार फिर जीत
गुजरात की जसदण सीट पर हुए उपचुनाव का नतीजा भी काफी अहम हैं. बीजेपी एक बार फिर साबित कर रही है कि वो 'इंपोर्ट मॉडल' में भरोसा करती है और उससे जीत भी जाती है. कुंवरजी बावलिया जिन्होंने ये बाजी बीजेपी की तरफ से जीती है, वो कांग्रेस के पुराने नेता रहे हैं. वो इसी सीट से पहले भी जीत दर्ज कर चुके हैं. पिछला विधानसभा चुनाव भी बावलिया ने यहीं से लड़ा था. उसके बाद अचानक इस्तीफा दे दिया और दो दिन के अंदर रूपाणी सरकार में मंत्री बना दिए गए.
आइडिया क्या है?
इसके पीछे आइडिया ये है कि बावलिया, कोली समाज से आते हैं. उसका वोट अपनी तरफ खींचना बीजेपी के लिए बहुत जरूरी है. पार्टी क पास कोई नया बड़ा कोली समाज का नेता नहीं आ रहा था. इसलिए उन्होंने बावलिया समाज को अपनी तरफ किया, जिससे लोकसभा चुनाव से पहले माहौल बनाया जा सके.
ये जीत एक स्थानीय कोली नेता की है, लेकिन बीजेपी का एक मकसद पूरा हुआ है कि कोली समुदाय में बीजेपी ने एंट्री ले ली है.
दरअसल, विजय रूपाणी पर बड़ा दबाव था, उनके लिए प्रतिष्ठा का सवाल था. उन्होंने भी बड़ा जोर लगाया. कांग्रेस ने वहां से लोकल कॉरपोरेटर उतारा, कैंपेन अच्छी तरह से किया.
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