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50 Years of Project Tiger: विलुप्ति के कगार से 3000 बाघ की आबादी तक सफर| Photos

Project Tiger Photos: मुख्य रूप से बाघों के कारण भारत में वन्यजीव पर्यटन में बढ़ोत्तरी हुई है.

मृत्युंजय तिवारी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>भारत ने प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे किए, देखिए वाइल्डलाइफ की शानदार तस्वीरें</p></div>
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भारत ने प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे किए, देखिए वाइल्डलाइफ की शानदार तस्वीरें

(फोटो: मृत्युंजय तिवारी)

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प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger Reserve) नवंबर 1973 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया एक बाघ संरक्षण कार्यक्रम है. इस परियोजना का उद्देश्य बंगाल टाइगर की उसके प्राकृतिक आवासों में एक व्यवहार्य आबादी सुनिश्चित करना, इसे विलुप्त होने से बचाना और प्राकृतिक विरासत के रूप में जैविक महत्व के क्षेत्रों को संरक्षित करना है.

(मृत्युंजय तिवारी ने ग्रामीण बिहार में अंधे लोगों और बच्चियों के लिए काम करने के लिए शहर का जीवन छोड़ दिया, लेकिन वन्यजीव (Wildlife) और लैंडस्केप फोटोग्राफी के लिए अपने जुनून को बरकरार रखा.

जब मैंने फोटोग्राफी शुरू की, तो मैं कंफ्यूज था कि मुझे किस जेनर में महारात हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए.

मध्य प्रदेश में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की एक अनियोजित यात्रा ने फोटोग्राफी में मेरा जेनर - वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी को तय किया. जंगल में बाघ को देखना आकर्षक होता है और उसकी तस्वीर लेना बिल्कुल अलग अनुभव होता है. मैंने अब तक रणथंभौर में नूर, फतेह और एरोहेड से लेकर ताडोबा में माया और मटकासुर से लेकर बांधवगढ़ में स्पॉटी और डोट्टी तक हर एक को देखा है. यह मेरी स्मृति में कहीं हैं.

(फोटो: मृत्युंजय तिवारी)

मुख्य रूप से बाघों के कारण भारत में वन्यजीव पर्यटन में बढ़ोत्तरी हुई है. यह इस तथ्य से साफ है कि ऑनलाइन बुकिंग विंडो खुलने के कुछ ही मिनटों के अंदर प्रमुख टाइगर रिजर्व के लिए पर्यटन स्लॉट भर जाते हैं. अपनी यात्रा के जरिए मैंने देखा कि माता-पिता अपने बच्चों को एक चिड़ियाघर के बजाय जंगल में बाघ देखने के लिए लाकर ज्यादा रोमांचित थे.

(फोटो: मृत्युंजय तिवारी)

यह सामान्य ज्ञान है कि भारत का राष्ट्रीय पशु हमारे जंगलों का प्रमुख रक्षक है - बाघ इकोलॉजिकल फ़ूड चैन में टर्मिनल कंज्यूमर हैं और उनका संरक्षण इस पूरे इकोसिस्टम का संरक्षण करता है.

(फोटो: मृत्युंजय तिवारी)

भारत में बाघों की आबादी, जो 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर लॉन्च होने के समय विलुप्त होने के कगार पर थी, अब लगभग 3,000 है, जो वैश्विक जंगली बाघों की आबादी का 70 प्रतिशत से अधिक है.

(फोटो: मृत्युंजय तिवारी)

हालांकि सब कुछ सही नहीं है - अकेले 2016 में 122 बाघों की मौत हो गई और उनके हैबिटैट में गंभीर कमी आई है.

(फोटो: मृत्युंजय तिवारी)

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हमारे जंगलों में अवैध मानव अतिक्रमण बढ़ गया है. नीति-निर्माताओं और हमारे टाइगर रिजर्व की अग्रिम पंक्ति में काम करने वाले लोगों के बीच एक मजबूत संबंध टूट गया है. हालांकि अवैध शिकार में तुलनात्मक रूप से कमी आई है, लेकिन यह हमारे बाघों के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है.

(फोटो: मृत्युंजय तिवारी)

ज्यादातर टाइगर रिजर्व में कर्मचारियों की कमी है. जबकि मानव-जंगली संघर्षों से निपटने में एक स्पष्ट सुस्ती रही है, जिससे संवेदनशीलता की कमी हुई है.

(फोटो: मृत्युंजय तिवारी)

जीवन यापन के लिए, नर बाघों को औसतन 60 वर्ग किमी के क्षेत्र की आवश्यकता होती है. जबकि मादा को 30 वर्ग किमी की आवश्यकता होती है. यह शिकार की सघनता पर निर्भर करता है. हालांकि बाघों की बढ़ती आबादी इनके अनुकूली प्रकृति के कारण एक वास्तविकता है. इस शानदार जानवर के बारे में एक अच्छी बात यह है कि यह कई अन्य जानवरों की तरह खुद को एक विशेष आहार, निवास स्थान या पारिस्थितिकी तंत्र तक सीमित नहीं रखता है.

(फोटो: मृत्युंजय तिवारी)

भूटान में 13,000 फीट से ऊपर टाइगर ट्रैक पाए गए हैं, जो हिम तेंदुए के निवास स्थान को ओवरलैप करने वाली ऊंचाई है, जबकि सुंदरबन के खारे पानी के मैंग्रोव दलदल में बाघ शक्तिशाली तैराक हैं और समुद्री जीवन के साथ अपने आहार को पूरक करना सीख चुके हैं.

(फोटो: मृत्युंजय तिवारी)

एक नागरिक के रूप में, हम भी बाघों की आबादी बढ़ाने के प्रयासों में योगदान दे सकते हैं और इससे मदद मिल सकती है - जंगल में बाघों के बारे में अधिक ज्ञान, बाघ अभयारण्य प्रबंधन(tiger reserve management) की आंख और कान बनना, ताकि हम अवैध शिकार जैसे मुद्दों पर उनकी मदद कर सकें. अतिक्रमण, और आवास विनाश, जिम्मेदार पर्यटन को बढ़ावा देना, और वन क्षेत्रों में गैर-योजनाबद्ध विकास परियोजनाओं का कड़ा विरोध करना भी योगदान का एक रूप है.

(फोटो: मृत्युंजय तिवारी)

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