हैलो, दानिश भाई, मैं शादाब... आप कहां हैं?

Danish Siddiqui की तस्वीरें बोलती थीं, ऐसी तस्वीर की सोई कौम जाग जाए.

शादाब मोइज़ी
भारत
Updated:
<div class="paragraphs"><p> फोटो जर्नलिस्ट Danish Siddiqui की हत्या हो गई.</p></div>
i

फोटो जर्नलिस्ट Danish Siddiqui की हत्या हो गई.

(फोटो: Altered by Quint)

advertisement

हैलो, दानिश भाई, मैं शादाब... मोइज़ी

दानिश- हां भाई, बोलो..

कहां हैं आप, ठीक हैं?

दानिश- बच गया भाई.. Almost I was Lynched..समझो भीड़ मार ही देती.. बचकर भागा..

24 फरवरी 2020, दिल्ली में दंगा भड़क उठा था. अफरा-तफरी थी. इसी दौरान ट्विटर पर एक फोटो वायरल होती है. जिसमें भीड़ में कई लोग एक कुर्ता पाजामा पहने शख्स को डंडे, लोहे के रॉड, पाइप, बांस से पीट रहे थे. जमीन में पड़ा शख्स खून से लथपथ. इस फोटो को सबने देखा, लेकिन जिसने इस दर्दनाक फोटो को अपने कैमरे में कैद किया उस फोटो जर्नलिस्ट का नाम था दानिश सिद्दीकी (Danish Siddiqui).

अफगानिस्तान में तालिबान के हमले में भारतीय पत्रकार और पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित दानिश सिद्दीकी की हत्या हो गई.

2020 में दिल्ली दंगे की ये तस्वीर दानिश सिद्दीकी ने क्लिक की थी.

(फोटो: Reuters)

दानिश सिद्दीकी और मैंने एक ही जगह जामिया मिलिया इस्लामिया से पढ़ाई की थी. कह सकते हैं कि वो मेरे सूपर डूपर सीनियर थे. हम कभी एक दूसरे से रुककर या बैठकर बात नहीं कर सके. लेकिन मोबाइल की दुनिया दूरी कम कर देती है.

साल 2020 में दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा था, इसी दौरान दंगा भड़का, हम लोग दिल्ली दंगा कवर कर रहे थे. दंगे में एक घायल शख्स की फोटो वायरल होने के बाद मेरे दिमाग में कई बातें चल रही थी, दानिश भाई का क्या हुआ? दानिश भाई तो ठीक हैं न?

दरअसल, दिल्ली दंगे में भीड़ पत्रकारों पर भी हमला कर रही थी, इसलिए सवाल उठ रहा था कि भीड़ ने फोटो लेते हुए उन्हें देखा होगा तो उन्हें भी कुछ किया होगा?

सारे सवाल मन में दौड़ रहे थे. सवाल का जवाब ढूंढ़ने के लिए तुरंत दानिश भाई को कॉल किया, उन्होंने कॉल उठाया.

हाल चाल के बाद उन्होंने कहा,

"चांद बाग के प्रोटेस्ट साइट को भीड़ ने जला दिया था. एक औरत को भी बहुत पीटा. पुलिस ने आखिर में बचाया. एक आदमी रास्ता क्रॉस कर रहा था तब ही भीड़ उसपर टूट पड़ी. मैंने गैस मास्क लगा रखा था. तो भीड़ को समझ नहीं आया या बहुत हंगामा था तो कोई समझ नहीं सका कि मैं फोटो ले रहा हूं. इस तरह मैं वो फोटो ले सका. और किसी के पास उस हमले की फोटो नहीं है. हां, मेरे साथ एक और पत्रकार थे वहां पर."

मैं इतना घबराया हुआ था कि मैंने पूछ डाला कि ऐसे हालात में आपने मोबाइल से चुपचाप से फोटो खींची या कैमरे से?

दानिश सिद्दीकी ने कहा, "अरे भाई, प्रोफेशनल कैमरा था. डीएसएलआर.. तुम भी न.."

मैंने तुरंत पूछा, फिर भीड़ ने आपको नहीं देखा?

दानिश सिद्दीकी ने कहा,

"मैं फोटो शूट कर रहा था तब ही तो मेरी लिंचिंग होते होते बची. मुझे लोगों ने घर में खींच लिया. और सवाल करने लगे. मैंने गैस मास्क लगा रखा था इसलिए आवाज नहीं सुनाई दे रही थी उन लोगों को. फिर असल में मुझे दौड़कर भागना पड़ा."

लेकिन दानिश सिद्दीकी सिर्फ फोटो लेते ही नहीं बल्कि उसे जीते भी थे. उन्होंने जिस घायल शख्स की फोटो ली थी उसे अगले ही दिन ढूंढ़ निकाला. उसका नाम मोहम्मद जुबैर है. दानिश सिद्दीकी ने जुबैर की सुरक्षा का ख्याल रखते हुए मुझे उसका नंबर और पता दिया. फिर मैं जुबैर से मिलकर दंगे के वक्त से लेकर उसकी जिंदगी कैसे बची इस पर एक स्टोरी की.

दानिश की तस्वीर, नइंसाफी की गवाही

दानिश सिद्दीकी की तस्वीरें बोलती थीं, ऐसी आवाज की सोई कौम जाग जाए. कोरोना की दूसरी लहर में जब सरकारें श्मशान और चिता की तस्वीरों को छिपाने के लिए दीवारें उठा रही थीं, तब दानिश सिद्दीकी ने दर्जनों जलती चिताओं की तस्वीर सामने लाकर देश से लेकर दुनिया में लोगों को कोरोना के दौरान सरकारी लापरवाही पर बात करने को मजबूर कर दिया.

जब लॉकडाउन में हजारों प्रवासी शहर छोड़कर गांव की तरफ बेबस होकर लौट रहे थे तब दानिश सिद्दीकी ने अपने कैमरे से दुनिया को आजादी के बाद भारत के सबसे बड़े पलायन की तस्वीर दिखाई.

दानिश सिद्दीकी को कुछ तस्वीरों में समेट नहीं सकता हूं, वो आने वाले और आज के पत्रकारों को ये बताकर गए हैं कि पत्रकार किसी देश, किसी बॉर्डर, किसी समुदाय या किसी सरकार से नहीं बंधा होता है. वो आजाद होता है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 17 Jul 2021,09:10 AM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT