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20 सालों से अधिक समय से, मेवा सिंह ने एक ही सपना संजोए रखा है - पंजाब के मनसा जिले के मौजो कलां गांव में अपने मामूली से घर के ठीक सामने मौजूद 20 फीट चौड़ी सड़क तक सीधे पहुंच पाने का. इस परिवार को बस इतना करना था कि थोड़े पैसे खर्च कर अपनी खुद की लाल-ईंट की दीवार तोड़ दी जाए और एक गेट लगा दिया जाए.
लेकिन 38 वर्षीय दिहाड़ी मजदूर मेवा सिंह का आरोप है कि इस दलित परिवार को क्षेत्र के उच्च जाति के परिवारों द्वारा " गेट बनाने के अधिकार से वंचित कर दिया गया था जो उन्हें चौड़ी सड़क तक सीधे पहुंच प्रदान करता".
यह सब 24 दिसंबर 2021 को बदल गया, जब दीवार गिरा दी गयी और पड़ोसियों, दलित अधिकार संगठनों के सदस्यों, छात्रों, एक कवि और पुलिस कर्मियों की उपस्थिति में एक लोहे के गेट का निर्माण किया गया.
जून 2021 में, मेवा की सड़क तक पहुंच न मिलने की कहानी को दलित अधिकार कार्यकर्ता बहल सिंह द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर किया गया था. बहल ने द क्विंट को बताया कि “जब मुझे पता चला कि एक दलित परिवार के पास संकरी गली की ओर एक एंट्री गेट है, लेकिन उसे चौड़ी सड़क की ओर एक गेट बनाने की अनुमति नहीं दी जा रही है, तो मैंने इसे फेसबुक पर शेयर किया. 18 दिसंबर 2021 को दलित अधिकार समूहों और छात्र संघों के सदस्यों ने विरोध करना शुरू कर दिया. 24 दिसंबर को तय हुआ कि दीवार गिराकर गेट बनाया जाएगा”
24 दिसंबर 2021 को 100 से अधिक लोग प्रोटेस्ट के लिए जमा हुए, और दीवार को गिरते देखा. मेवा और उनके परिवार ने गांव के अन्य दलित परिवारों के साथ मिलकर इसका जश्न मनाया.
मेवा की पत्नी मलकीत कौर का आरोप है कि जब भी परिवार ने चौड़ी सड़क तक पहुंच का मुद्दा उठाया, तो उनपर जातिवादी गालियों की बौछार हुई, और उन्हें "अपनी हद में रहने के लिए कहा गया."
24 दिसंबर को परिवार को चौड़ी सड़क तक पहुंच देते हुए जैसे ही गेट लगा, कवि गुरदीप डोनी ने पढ़ा कि, "थड़े ढेंगे, गेट खुलेंगे, दुनिया वाले नहीं भुलंगे"
गांव के अंदर यूनियनों और दलित अधिकार संगठनों के झंडे लगाए गए, नौजवानों ने दीवारों पर पोस्टर चिपकाए और उन पर जाति-विरोधी नारे लिखे, और कई महिलाओं ने प्रदर्शनकारियों के लिए रविदास धर्मशाला में लंगर तैयार किया.
एक्टिविस्ट बहल ने द क्विंट को बताया, “उच्च जाति द्वारा बनाया गया मंच जातिवाद, मजदूरों के खिलाफ उत्पीड़न और गांव में दलितों की दो पीढ़ियों की आकांक्षाओं के हत्यारे का प्रतीक है.”
मेवा और उनकी पत्नी मलकीत भूमिहीन हैं, और दिहाड़ी मजदूरी का काम करते हैं, जो साथ ही कुछ सिलाई का भी काम करते हैं. दोनों की दो बेटियां हैं. उनके साधारण घर के अंदर एक शौचालय और एक बाथरूम है - दोनों बिना छत या गेट के.
इसी बीच गांव में बीकेयू (सिद्धूपुर) से जुड़े कुछ सवर्ण परिवारों ने मेवा के परिवार के खिलाफ विरोध शुरू कर दिया.
नाम न छापने की शर्त पर उंची जाति के एक व्यक्ति ने कहा कि मेवा का घर "पंचायती भूमि" पर है और "यदि वो उसे गेट बनाने की अनुमति देते हैं, तो वह उस स्थान पर कब्जा कर लेगा जहां उन्होंने मंच बनाया था."
जिस दिन दीवार गिराई गई उस दिन गांव में मनसा पुलिस के साथ प्रशासन के अधिकारी भी मौजूद थे.
पुलिस ने शुरू में कहा था कि 25 दिसंबर को दीवार गिराई जाएगी लेकिन प्रदर्शनकारियों ने इसपर आपत्ति जताई और उसी दिन ही दीवार गिरा दी गई. मालूम हो कि हनुमान जी की मूर्ति अभी भी है.
सरपंच से कहा गया है कि उच्च जाति के परिवार "उनकी शादियों और अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होंगे."
दीवार गिराए जाने के कुछ दिनों बाद, मेवा ने द क्विंट को बताया कि “एक ऊंची जाति के परिवार द्वारा मेरे खिलाफ सिविल सूट दायर किया गया है, कहा गया कि मैं उस मंच को ध्वस्त करना चाहता हूं जहां लोग हनुमान जी की प्रतिमा की पूजा करते हैं. लेकिन मैंने दीवार गिराई है, हनुमान की मूर्ति और चबूतरा का एक हिस्सा अभी भी वहीं है.”
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