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केंद्र सरकार ने पीएम किसान सम्मान निधि की किश्त 17 अक्टूबर को किसानों (Farmers) के खातों में डालने के बाद 18 अक्टूबर को रबी की एमएसपी (MSP) बढ़ाने का भी फैसला किया. केंद्रीय कैबिनेट के इस फैसले के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक ट्वीट किया. जिसमें 2014-15 से 2023-24 तक बढ़ी रबी की फसलों की एमएसपी में तुलना की गई है और बताया गया है कि बीजेपी सरकार आने के बाद कितने प्रतिशत एमएसपी बढ़ा दी गई है.
गेहूं की एमएसपी 110 रुपये बढ़ाकर 2125 कर दी गई जो पहले 2015 रुपये प्रति क्विंटल थी. सरकार के मुताबिक, इस साल गेहूं की उत्पादन लागत 1065 रुपये रहने का अनुमान है.
चने की एमएसपी में भी 110 रुपये का इजाफा किया गया है. अब चने की एमएसपी 5335 रुपये क्विंटल होगी जो पहले 5230 थी. सरकार के मुताबिक, इस साल चने की उत्पादन लागत 3206 रुपये रहने का अनुमान है.
मसूर की एमएसपी में 500 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है. जो पहले 5500 रुपये क्विंटल थी, उस मसूर का रेट अब 6000 रुपये क्विंट रहेगा. सरकार के मुताबिक, मसूर की प्रोडक्शन लागत 3239 रुपये रहने का अनुमान है.
सरसों की एमएसपी में 400 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा हुआ है. सरसों की एमएसपी अब 5050 रुपये क्विंटल से बढ़ाकर 5450 कर दी गई है. सरकार के मुताबिक, सरसों की प्रोडक्शन कॉस्ट 2670 रुपये प्रति क्विंटल रहने का अनुमान है.
सैफ फ्लावर की एमएसपी में 209 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा किया गया है. सैफ फ्लावर की एम एसपी अब 5441 रुपये से बढ़कर 5650 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है. सरकार के मुताबिक, इसकी प्रति क्विंटल लागत 3765 रुपये रहने का अनुमान है.
जौ की एमएसपी में 100 रुपये का इजाफा किया गया है. अब इसकी एमएसपी 1635 रुपे से बढ़ाकर 1735 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है.
ऊपर दिये गए आंकड़े आपको पहली नजर में सुहावने लग सकते हैं. लेकिन क्या वाकई इतनी ही लागत फसल उगाने में आ रही है जितनी सरकार बता रही है. इस पर ग्लोबल फार्मर नेटवर्क (Global Farmer Network) के सदस्य गुरजीत सिंह मान ने क्विंट हिंदी से कहा कि,
बात सिर्फ लागत भर की नहीं है. और एमएसपी से कितना फायदा होगा, ये भी बाद का सवाल है, क्योंकि नए रेट अगली फसल के लिए है, जो अगले साल आएगी यानी किसानों को इस रेट से भुगतान मई-जून, 2023 तक होगा. अभी पहला सवाल ये है कि किसानों को फौरी तौर पर पैसे की जरूरत है क्योंकि लॉकडाउन, हीटवेव, सूखा और फिर बेमौसम बारिश ने उन पर चौतरफा मार की है. उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के गांव जोगीपुरा में रहने वाले किसान सत्य प्रकाश ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा कि,
इसी गांव में रहने वाले एक और किसान भूरा ने क्विंट हिंदी से कहा कि,
क्या किसानों को सिर्फ एमएसपी ना मिलने की परेशानी है, तो ऐसा नहीं है. किसानों के लिए परेशानियों की भरमार है. अभी सूखे से कई राज्यों के किसान परेशान हैं. लेकिन बिहार को छोड़कर किसी भी राज्य सरकार ने सूखाग्रस्त घोषित नहीं किया है. लेकिन उन्होंने भी 11 जिलों के करीब 7841 गांवों को ही सूखाग्रस्त घोषित किया है. बिहार के अलावा झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में भी किसान सूखे की समस्या से जूझ रहे हैं और सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग कर रहे हैं. लेकिन अभी तक इन राज्यों की सरकारों और ना ही केंद्र ने इस ओर ध्यान दिया है. हालांकि बिजली जैसी कुछ छूटें जरूर दी हैं.
भारत में सूखे पर विस्तृत रिपोर्ट आप यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं.
सरकार ने आगामी रबी सीजन के लिए 6 फसलों की एमएसपी बढ़ाई है. ऐसे में सवाल ये भी है कि देश के कितने किसानों को एमएसपी मिल पाती है. इसको लेकर लगातार किसान आवाज उठाते रहे हैं. किसान नेता राकेश टिकैत ने दो हफ्ते पहले ही कहा था कि अब एमएसपी को लेकर देश में लंबा किसान आंदोलन चलेगा. उन्होंने इस बढ़ोत्तरी को भी नाममात्र बताया है और कहा है कि इनपुट कॉस्ट तेजी से बढ़ रही है.
सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि, पैदावार के मुकाबले एमएसपी पर फसल खरीद काफी कम हो पाती है. और पिछले साल की रबी की फसल खरीद में तो भारी गिरावट आई है. रबी सीजन 2022-23 में सरकार ने 187.92 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद एमएसपी पर की थी. जबकि 2021-22 सीजन में सरकार ने देशभर के किसानों ने एमएसपी पर 433.44 लाख टन गेहूं खरीदा था. लेकिन ये आंकड़े देखकर ये सोचने की जरूरत नहीं है कि चलो इससे पहले तो काफी गेहूं एमएसपी पर खरीदा जा रहा था.
इसमें भी एक बड़ा खेल है. दरअसल जितने गेहूं की पैदावार हमारे देश में 2021-22 रबी सीजन में हुई है. ये खरीद उससे काफी कम है. ये समझने के लिए नीचे दिए गए आंकड़े देखिए.
इसके कई कारण हैं, पहला तो सरकारी खरीद का पैसा किसानों को कई महीने बाद मिलता है. लेकिन किसान को एक फसल बेचने के बाद दूसरी फसल बुआई के लिए पैसे की जरूरत होती है. बड़े किसान ही केवल इतने दिन रुक पाते हैं.
दूसरा कई राज्यों में मंडी व्यवस्था खराब है. बिहार में तो मंडी व्यवस्था खत्म ही कर दी गई है. केवल पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में ही मंडियां ठीक से चल रही हैं. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में भी थोड़ी बहुत मंडियां चल रही हैं.
पिछले साल रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद गेहूं प्राइवेट बाजार में काफी महंगा हो गया था. इसीलिए सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक भी लगाई थी. लेकिन तब तक प्राइवेट बाजार में काफी गेहूं बिक चुका था. हालांकि ये सिर्फ इस साल ही हुआ है.
सरकार की एमएसपी कमेटी ने रबी की 6 फसलों के लिए 9 फीसदी एमएसपी बढ़ाने की सिफारिश की थी, लेकिन सरकार ने साढे पांच प्रतिशत गेहूं की एमएसपी बढ़ाई है.
गेहूं- 5.4 प्रतिशत
सरसों- 7.9 प्रतिशत
चना- 2 प्रतिशत
सैफ फ्लावर (कुसुम)- 3.8 प्रतिशत
मसूर- 9 प्रतिशत
जौ- 2 प्रतिशत
सरकार अभी ए-2+एफएल फार्मूले के आधार पर ही एमएसपी दे रही है. जिसमें वास्तव में खर्च की गई लागत+ पारिवारिक श्रम का अनुमानित मूल्य जोड़ा जाता है.
इसके अलावा दो फॉर्मूले और हैं. ए2- जिसमें नकदी खर्च शामिल होता है. जैसे बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूरी, ईंधन और सिंचाई पर लगने वाली रकम.
सी-2 पूरी लागत के वास्तविक खर्चे के अलावा जमीन के अनुमानित किराये और ब्याज को भी शामिल किया जाता है. इसी के तहत किसान एमएसपी की मांग कर रहे हैं.
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