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Drought: पहले सूखे ने मारा, अब बारिश से नुकसान- 'सरकारें सो रहीं'-किसान परेशान

उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से 46 जिले ऐसे हैं जहां सामान्य से कम बारिश हुई है, लेकिन सूखाग्रस्त घोषित नहीं हुआ.

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कुंजी
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हमारे देश के हर चुनाव में किसान राजनेताओं की जुबान पर छाये रहते हैं और उनके कल्याण के लिए नेता बहुत वादे करते हैं. लेकिन चुनाव के बाद जब सत्ता मिल जाती है तो क्या वो नेता किसानों के लिए वैसा काम करते हैं? इसका जवाब ढूंढना कोई मुश्किल काम नहीं है.

दुनिया के कई हिस्से सूखे (Drought) की अभूतपूर्व समस्या से जूझ रहे हैं. भारत के भी करीब चार राज्य सूखे की जद में हैं. ये वो राज्य हैं जहां धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है. जिसकी वजह से भविष्य में चावल की समस्या देश के सामने खड़ी हो सकती है. किसान मांग कर रहे हैं कि जिन इलाकों में बारिश कम हुई है उन्हें सूखाग्रस्त घोषित किया जाना चाहिए. लेकिन अभी तक किसी भी सरकार ने अपने राज्य के किसी भी इलाके को सूखाग्रस्त घोषित नहीं किया है.

Drought: पहले सूखे ने मारा, अब बारिश से नुकसान- 'सरकारें सो रहीं'-किसान परेशान

  1. 1. कौन से राज्य सूखे की जद में ?

    उत्तर प्रदेश

    मौसम विभाग के अनुसार उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से 46 जिले ऐसे हैं जहां सामान्य से कम बारिश हुई है. जबकि 20 जिलों में सामान्य से काफी कम यानी 60 फीसदी से भी कम बारिश हुई है. सूबे का सिर्फ एक जिला ऐसा है जहां सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है.

    यूपी के इन जिलों में सबसे कम बारिश

    • फरूखाबाद में सामान्य से 79 प्रतिशत बारिश कम हुई है

    • गाजियाबाद में सामान्य से 80 प्रतिशत कम

    • गौतमबुद्ध नगर में सामान्य से 78 प्रतिशत कम

    • रामपुर में सामान्य से 73 प्रतिशत कम

    • कुशी नगर में सामान्य से 70 प्रतिशत कम

    • बागपत में सामान्य से 69 प्रतिशत कम

    • संत कबीर नगर में सामान्य से 65 प्रतिशत कम

    • मऊ में सामान्य से 62 प्रतिशत कम

    • गोंडा में सामान्य से 63 प्रतिशत कम

      झारखंड

      झारखंड के हालात और भी ज्यादा खराब हैं. झारखंड मे 1 जून से 8 सितंबर 2022 के बीच सामान्य से 26 फीसदी कम बारिश हुई है. आंकड़ो के मुताबिक झारखंड में पिछले साल के मुकाबले इस साल 55 प्रतिशत कम धान की रोपाई हुई है और दलहन भी 30 फीसदी कम बोया गया है.

      झारखंड के 15 जिलों में सामान्य से कम और दो जिलों में सामान्य से बहुत कम, मतलब 17 जिलों के 61 ब्लॉक सूखा प्रभावित हैं और 56 ब्लॉक सूखा संभावित स्थिति में हैं. क्योंकि राज्य में सामान्यतौर पर करीब 866 मिलीमीटर बारिश होती है लेकिन इस साल मात्र 640 मिलीमीटर ही बारिश हुई है.

      बिहार और पश्चिम बंगाल

    • बिहार और पश्चिम बंगाल का हाल भी लगभग ऐसा ही है.

    • बिहार के 32 जिलों में 136 ब्लॉक सूखा प्रभावित हैं.

    • बिहार के 162 जिलों में सूखे की संभावना है

    • पश्चिम बंगाल के 11 जिलों में 55 ब्लॉक सूखा प्रभावित हैं

    • पश्चिम बंगाल में 63 ब्लॉक ऐसे हैं जहां सूखे की संभावना है

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  2. 2. सूखाग्रस्त क्यों घोषित नहीं कर रही सरकारें?

    सवाल ये है कि जब किसानों के लिए इतनी बड़ी मुश्किल आ खड़ी हुई है तब भी सरकारें अपने यहां सूखाग्रस्त क्यों नहीं घोषित कर रही हैं तो इसमें बड़ा पेंच है. दरअसल 2016 में केंद्र सरकार ने सूखा प्रबंधन से जुड़ी संशोधित नियमावली जारी की थी. जिसके मुताबिक सूखा प्रबंधन के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करने वाले केंद्र के दायरे को सीमित कर दिया गया.

    इससे पहले सूखा प्रबंधन नियमावली 2009 के तहत किसानों को राहत दी जाती थी. जिसमें राज्यों की हिस्सेदारी जरूरी नहीं थी. लेकिन 2016 की नियमवली के बाद काफी कुछ बदल गया. इसके मुताबिक मध्यम सूखा श्रेणी को सूखा प्रबंधन नियमावली से हटा दिया गया. और अब दो श्रेणी बची हैं, सामान्य और गंभीर, जिसमें सामान्य श्रेणी में कोई मदद सरकार नहीं करती और गंभीर रूप के सूखे की स्थिति में ही कोई राज्य राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से केंद्रीय सहायता का पात्र होगा. और ये सहायता भी सीमित होगी.

    यही वजह है कि राज्य सरकारें अपने यहां सूखा घोषित करने से कतरा रही हैं. जबकि किसानों को राहत की सख्त और जल्द जरूरत है.
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  3. 3. सूखे पर किसान नेता राकेश टिकैत ने क्या कहा?

    किसान नेता राकेश टिकैत ने क्विंट हिंदी से बातीत में कहा कि, जिस वक्त बारिश होनी थी उस वक्त बारिश नहीं हुई और अब अंत में आकर बारिश हो गई. पहले तो किसान धान की रोपाई नहीं कर पाए, फिर जिन्होंने की उनकी फसल में खासकर उत्तरी राज्यों में बारिश से नुकसान हो गया. तो सिर्फ सूखा ही नहीं अंत की बारिश से भी नुकसान है. अब देखिए कि पूरे बिहार में धान नहीं है, पूर्वांचल के क्षेत्र में नहीं है. जहां थोड़े से पानी के साधन थे वहां धान लगाए गए हैं.

    अब एक परेशानी और शुरू हो गई है कि हरियाणा जैसे राज्यों में सरकारी खरीद नहीं हो रही है. तो वहां धान ब्लैक होना शुरू हो गया है. कुल मिलाकर इस बार चावल की किल्लत रहेगी और धान की फसल कम होगी. जिसका सीधा असर किसान पर पड़ता है, सरकार को तुरंत मदद करनी चाहिए. सरकार को ये भी देखना चाहिए कि जो खेत खाली हैं, उन्हें भी सूखाग्रस्त घोषित करे. हम पहले सूखे से हुए नुकसान से मुआवजे की मांग कर रहे थे, अब उसमें बारिश का नुकसान भी शामिल हो गया है.

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  4. 4. सूखे पर कृषि विशेषज्ञ क्या बोले?

    ग्लोबल फार्मर नेटवर्क (Global Farmer Network) के सदस्य गुरजीत मान ने क्विंट से कहा कि, जब भी किसान को किसी तरह का नुकसान होता है तो उन्होंने मुआवजे के लिए प्रदर्शन करना पड़ता है. जब तक किसान दबाव नहीं बनाते तब तक सरकार कुछ नहीं करती, सरकारों को चाहिए कि खुद से किसानों के वेलफेयर में एक्शन लें. लेकिन ऐसा होता नहीं है. सरकारों की ये अब आदत सी बन गई है. सरकार पराली जलाने को लेकर सैटेलाइट से किसानो पर नजर रखती हैं और तुरंत एक्शन लेती है. लेकिन ऐसा वो किसानों के नुकसान के वक्त नहीं करते.

    उन्होंने आगे कहा कि, इस बार चावल के उत्पादन में 6-7 प्रतिशत की कमी का अनुमान है. क्योंकि जिस वक्त बारिश होनी थी तब हुई नहीं और अब पके हुए धान पर उत्तरी राज्यों में बारिश हो गई. अब सवाल ये भी है कि जो लोग धान लगा ही नहीं पाये उनको भी सरकार को देखना होगा. कि कौन ऐसे किसान हैं जो बारिश की कमी की वजह से धान की फसल नहीं लगा पाये. और उनके खेत खाली रह गए तो उन्हें भी मुआवजा मिलना चाहिए. जिसके लिए वो पिछले साल की गिरदावरी रिपोर्ट से मदद ले सकती है.

    गुरजीत मान का कहना था कि, जब धान कम पैदा होगा तो ये सिर्फ किसान को नुकसान नहीं है. इससे आम आदमी भी प्रभावित होगा क्योंकि चावल की क्वालिटी गिर जाएगी और कमी भी होगी तो जाहिर सी बात है कि रेट बढ़ जाएंगे. लेकिन उसका फायदा किसान को मिलना मुश्किल है क्योंकि वो हाथोंहाथ अपनी फसल बेचता है.

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  5. 5. क्या चावल के उत्पादन में आएगी कमी?

    भारत के ये वो चार राज्य हैं जहां धान की फसल बड़ी संख्या में किसान उगाते हैं. और उन्हीं राज्यों में भयंकर सूखे से भविष्य में चावल की कमी के संकेत मिल रहे हैं. वैसे भी इस साल पिछले साल के मुकाबले देशभर में धान का रकबा 12 प्रतिशत कम हुआ है. इसके अलावा हरियाणा और पंजाब जैसे प्रमुख बासमती चावल उत्पादक राज्यों में बौना रोग आने से किसान परेशान हैं. पंजाब में इस रोग की वजह से 5 फीसदी चावल उत्पादन गिरने का अनुमान है. हरियाणा में भी करीब 30 हजार हेक्टेयर फसल बौने रोग की चपेट में आई है. हिमाचल में भी इस रोग से 10 प्रतिशत चावल उत्पादन कम होने का अनुमान है.

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  6. 6. सरकारें अभी किसानों के लिए क्या कर रही हैं?

    • उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हर जिले में टीमें बनाकर सूखे की रिपोर्ट मांगी है.

    • यूपी में ट्यूबवेल बिल की वसूली पर रोक लगाई गई है.

    • इसके अलावा यूपी में ग्रामीण इलाकों में बिजली की सप्लाई बढ़ाने के निर्देश भी दिये गये थे.

    • बिहार में कम बारिश से उपजे सूखे के हालात के बीच किसानों को राहत देने के लिए नीतीश सरकार ने 60 करोड़ रुपये जारी किए हैं. किसानों को डीजल अनुदान देने के लिए इस राशि का इस्तेमाल किया जाएगा.

    • बिहार में भी सरकार ने बिजली के घंटे बढ़ाए हैं.

    • झारखंड सरकार ने किसानों को 20 करोड़ के फ्री बीज देने की घोषणा की है. इसके अलावा उर्वरक और कीटनाशक पर भी अनुदान दिया जाएगा.

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  7. 7. सूखे की स्थिति में किसानों के नुकसान का आंकलन कैसे होता है?

    • जिला सूखाग्रस्त घोषित होने पर डीएम की अध्यक्षता में एक कमेटी बनती है, जिसमें राजस्व अधिकारी मेंबर होते हैं.

    • ये कमेटी तय करती है कि सूखाग्रस्त जिले के हर किसान को किस फसल का कुल कितना नुकसान हुआ.

    • नुकसान का आंकलन लागत से नहीं होता, बल्कि बाजार में उस फसल के बिकने पर जो कीमत होती है, उससे होता है- जिसका 50 फीसदी मुआवजा सरकार देती है.

    • जिन किसानों ने बैंक से फसली लोन लिया होता है, कुछ वक्त के लिए उनसे वसूली रोक दी जाती है. और किसान को ब्याज भी नहीं देना पड़ता है.

    (हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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ये विडंबना ही है कि देश के कुछ राज्य सूखे की जद में हैं और कुछ गलत वक्त पर भारी बारिश और बाढ़ से जूझ रहे हैं. लेकिन सरकारें एक-दूसरे की तरफ टकटकी लगाए हैं. ये बड़ा उदाहरण है कि कैसे किसानों के लिए सूखे से हुए नुकसान की भरपाई के लिए मिलने वाले मुआवजे की प्रक्रिया को जटिल बना दिया गया है. किसान पहले कागजों में सूखा दर्ज करने के लिए लड़ता है फिर अगर किस्मत से हो जाये तो मुआवजा लेने की लंबी प्रक्रिया तोड़ देती है.

अब जरा देखिए भारतीय किसान यूनियन ने पिछले कुछ दिनों में उत्तर प्रदेश में कई जगह धरना प्रदर्शन कर कम बारिश वाले हलकों को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग की है. उधर मुकेश सहनी ने भी बिहार में सूखा घोषित कर किसानों को राहत देने की मांग की है. लेकिन अभी सरकारें सोच रही हैं, और बस सोच ही रही हैं.

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कौन से राज्य सूखे की जद में ?

उत्तर प्रदेश

मौसम विभाग के अनुसार उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से 46 जिले ऐसे हैं जहां सामान्य से कम बारिश हुई है. जबकि 20 जिलों में सामान्य से काफी कम यानी 60 फीसदी से भी कम बारिश हुई है. सूबे का सिर्फ एक जिला ऐसा है जहां सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है.

यूपी के इन जिलों में सबसे कम बारिश

  • फरूखाबाद में सामान्य से 79 प्रतिशत बारिश कम हुई है

  • गाजियाबाद में सामान्य से 80 प्रतिशत कम

  • गौतमबुद्ध नगर में सामान्य से 78 प्रतिशत कम

  • रामपुर में सामान्य से 73 प्रतिशत कम

  • कुशी नगर में सामान्य से 70 प्रतिशत कम

  • बागपत में सामान्य से 69 प्रतिशत कम

  • संत कबीर नगर में सामान्य से 65 प्रतिशत कम

  • मऊ में सामान्य से 62 प्रतिशत कम

  • गोंडा में सामान्य से 63 प्रतिशत कम

    झारखंड

    झारखंड के हालात और भी ज्यादा खराब हैं. झारखंड मे 1 जून से 8 सितंबर 2022 के बीच सामान्य से 26 फीसदी कम बारिश हुई है. आंकड़ो के मुताबिक झारखंड में पिछले साल के मुकाबले इस साल 55 प्रतिशत कम धान की रोपाई हुई है और दलहन भी 30 फीसदी कम बोया गया है.

    झारखंड के 15 जिलों में सामान्य से कम और दो जिलों में सामान्य से बहुत कम, मतलब 17 जिलों के 61 ब्लॉक सूखा प्रभावित हैं और 56 ब्लॉक सूखा संभावित स्थिति में हैं. क्योंकि राज्य में सामान्यतौर पर करीब 866 मिलीमीटर बारिश होती है लेकिन इस साल मात्र 640 मिलीमीटर ही बारिश हुई है.

    बिहार और पश्चिम बंगाल

  • बिहार और पश्चिम बंगाल का हाल भी लगभग ऐसा ही है.

  • बिहार के 32 जिलों में 136 ब्लॉक सूखा प्रभावित हैं.

  • बिहार के 162 जिलों में सूखे की संभावना है

  • पश्चिम बंगाल के 11 जिलों में 55 ब्लॉक सूखा प्रभावित हैं

  • पश्चिम बंगाल में 63 ब्लॉक ऐसे हैं जहां सूखे की संभावना है

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सूखाग्रस्त क्यों घोषित नहीं कर रही सरकारें?

सवाल ये है कि जब किसानों के लिए इतनी बड़ी मुश्किल आ खड़ी हुई है तब भी सरकारें अपने यहां सूखाग्रस्त क्यों नहीं घोषित कर रही हैं तो इसमें बड़ा पेंच है. दरअसल 2016 में केंद्र सरकार ने सूखा प्रबंधन से जुड़ी संशोधित नियमावली जारी की थी. जिसके मुताबिक सूखा प्रबंधन के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करने वाले केंद्र के दायरे को सीमित कर दिया गया.

इससे पहले सूखा प्रबंधन नियमावली 2009 के तहत किसानों को राहत दी जाती थी. जिसमें राज्यों की हिस्सेदारी जरूरी नहीं थी. लेकिन 2016 की नियमवली के बाद काफी कुछ बदल गया. इसके मुताबिक मध्यम सूखा श्रेणी को सूखा प्रबंधन नियमावली से हटा दिया गया. और अब दो श्रेणी बची हैं, सामान्य और गंभीर, जिसमें सामान्य श्रेणी में कोई मदद सरकार नहीं करती और गंभीर रूप के सूखे की स्थिति में ही कोई राज्य राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से केंद्रीय सहायता का पात्र होगा. और ये सहायता भी सीमित होगी.

यही वजह है कि राज्य सरकारें अपने यहां सूखा घोषित करने से कतरा रही हैं. जबकि किसानों को राहत की सख्त और जल्द जरूरत है.
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सूखे पर किसान नेता राकेश टिकैत ने क्या कहा?

किसान नेता राकेश टिकैत ने क्विंट हिंदी से बातीत में कहा कि, जिस वक्त बारिश होनी थी उस वक्त बारिश नहीं हुई और अब अंत में आकर बारिश हो गई. पहले तो किसान धान की रोपाई नहीं कर पाए, फिर जिन्होंने की उनकी फसल में खासकर उत्तरी राज्यों में बारिश से नुकसान हो गया. तो सिर्फ सूखा ही नहीं अंत की बारिश से भी नुकसान है. अब देखिए कि पूरे बिहार में धान नहीं है, पूर्वांचल के क्षेत्र में नहीं है. जहां थोड़े से पानी के साधन थे वहां धान लगाए गए हैं.

अब एक परेशानी और शुरू हो गई है कि हरियाणा जैसे राज्यों में सरकारी खरीद नहीं हो रही है. तो वहां धान ब्लैक होना शुरू हो गया है. कुल मिलाकर इस बार चावल की किल्लत रहेगी और धान की फसल कम होगी. जिसका सीधा असर किसान पर पड़ता है, सरकार को तुरंत मदद करनी चाहिए. सरकार को ये भी देखना चाहिए कि जो खेत खाली हैं, उन्हें भी सूखाग्रस्त घोषित करे. हम पहले सूखे से हुए नुकसान से मुआवजे की मांग कर रहे थे, अब उसमें बारिश का नुकसान भी शामिल हो गया है.

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ग्लोबल फार्मर नेटवर्क (Global Farmer Network) के सदस्य गुरजीत मान ने क्विंट से कहा कि, जब भी किसान को किसी तरह का नुकसान होता है तो उन्होंने मुआवजे के लिए प्रदर्शन करना पड़ता है. जब तक किसान दबाव नहीं बनाते तब तक सरकार कुछ नहीं करती, सरकारों को चाहिए कि खुद से किसानों के वेलफेयर में एक्शन लें. लेकिन ऐसा होता नहीं है. सरकारों की ये अब आदत सी बन गई है. सरकार पराली जलाने को लेकर सैटेलाइट से किसानो पर नजर रखती हैं और तुरंत एक्शन लेती है. लेकिन ऐसा वो किसानों के नुकसान के वक्त नहीं करते.

उन्होंने आगे कहा कि, इस बार चावल के उत्पादन में 6-7 प्रतिशत की कमी का अनुमान है. क्योंकि जिस वक्त बारिश होनी थी तब हुई नहीं और अब पके हुए धान पर उत्तरी राज्यों में बारिश हो गई. अब सवाल ये भी है कि जो लोग धान लगा ही नहीं पाये उनको भी सरकार को देखना होगा. कि कौन ऐसे किसान हैं जो बारिश की कमी की वजह से धान की फसल नहीं लगा पाये. और उनके खेत खाली रह गए तो उन्हें भी मुआवजा मिलना चाहिए. जिसके लिए वो पिछले साल की गिरदावरी रिपोर्ट से मदद ले सकती है.

गुरजीत मान का कहना था कि, जब धान कम पैदा होगा तो ये सिर्फ किसान को नुकसान नहीं है. इससे आम आदमी भी प्रभावित होगा क्योंकि चावल की क्वालिटी गिर जाएगी और कमी भी होगी तो जाहिर सी बात है कि रेट बढ़ जाएंगे. लेकिन उसका फायदा किसान को मिलना मुश्किल है क्योंकि वो हाथोंहाथ अपनी फसल बेचता है.

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क्या चावल के उत्पादन में आएगी कमी?

भारत के ये वो चार राज्य हैं जहां धान की फसल बड़ी संख्या में किसान उगाते हैं. और उन्हीं राज्यों में भयंकर सूखे से भविष्य में चावल की कमी के संकेत मिल रहे हैं. वैसे भी इस साल पिछले साल के मुकाबले देशभर में धान का रकबा 12 प्रतिशत कम हुआ है. इसके अलावा हरियाणा और पंजाब जैसे प्रमुख बासमती चावल उत्पादक राज्यों में बौना रोग आने से किसान परेशान हैं. पंजाब में इस रोग की वजह से 5 फीसदी चावल उत्पादन गिरने का अनुमान है. हरियाणा में भी करीब 30 हजार हेक्टेयर फसल बौने रोग की चपेट में आई है. हिमाचल में भी इस रोग से 10 प्रतिशत चावल उत्पादन कम होने का अनुमान है.

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  • उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हर जिले में टीमें बनाकर सूखे की रिपोर्ट मांगी है.

  • यूपी में ट्यूबवेल बिल की वसूली पर रोक लगाई गई है.

  • इसके अलावा यूपी में ग्रामीण इलाकों में बिजली की सप्लाई बढ़ाने के निर्देश भी दिये गये थे.

  • बिहार में कम बारिश से उपजे सूखे के हालात के बीच किसानों को राहत देने के लिए नीतीश सरकार ने 60 करोड़ रुपये जारी किए हैं. किसानों को डीजल अनुदान देने के लिए इस राशि का इस्तेमाल किया जाएगा.

  • बिहार में भी सरकार ने बिजली के घंटे बढ़ाए हैं.

  • झारखंड सरकार ने किसानों को 20 करोड़ के फ्री बीज देने की घोषणा की है. इसके अलावा उर्वरक और कीटनाशक पर भी अनुदान दिया जाएगा.

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सूखे की स्थिति में किसानों के नुकसान का आंकलन कैसे होता है?

  • जिला सूखाग्रस्त घोषित होने पर डीएम की अध्यक्षता में एक कमेटी बनती है, जिसमें राजस्व अधिकारी मेंबर होते हैं.

  • ये कमेटी तय करती है कि सूखाग्रस्त जिले के हर किसान को किस फसल का कुल कितना नुकसान हुआ.

  • नुकसान का आंकलन लागत से नहीं होता, बल्कि बाजार में उस फसल के बिकने पर जो कीमत होती है, उससे होता है- जिसका 50 फीसदी मुआवजा सरकार देती है.

  • जिन किसानों ने बैंक से फसली लोन लिया होता है, कुछ वक्त के लिए उनसे वसूली रोक दी जाती है. और किसान को ब्याज भी नहीं देना पड़ता है.

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