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भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन (Raghuram Rajan) ने एशिया सोसाइटी इंडिया सेंटर द्वारा आयोजित "कोविड के बाद भारत की आर्थिक रिकवरी" विषय पर क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल (Raghav Bahl) से एक्सक्लूसिव बातचीत में कहा कि, कोविड-19 (COVID-19) महामारी से लड़ने और इकनॉमिक रिवाइवल के लिए सबसे बड़ा हथियार है ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन उत्पादन लेकिन इसको ग्लोबल लीडरशिप और ग्लोबल लाइसेंसिंग की गैर-मौजूदगी ने प्रभावित किया है.
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में फाइनेंस के प्रोफेसर और हाल ही में प्रकाशित किताब द थर्ड पिलर: हाउ मार्केट्स एंड द स्टेट लीव द कम्युनिटी बिहाइंड के लेखक, राजन ने वैश्विक स्तर पर वैक्सीनेशन में असमानता और धीमी रफ्तार के सवाल पर कहा कि अब सवाल या चिंता सिर्फ सभी को जल्द-से-जल्द वैक्सीन देने का नहीं है बल्कि बूस्टर डोज देने का भी है.
वैक्सीन की कमी- कोविड-19 वैक्सीनेशन ड्राइव में वैक्सीन की कमी को सबसे बड़ी समस्या बताते हुए रघुराम राजन ने कहा कि अफ्रीका के कई देशों के साथ-साथ भारत में भी वैक्सीन की पर्याप्त संख्या न होने के कारण वैक्सीनेशन की रफ्तार धीमी है. राजन के अनुसार भारत सही समय पर पर्याप्त वैक्सीन की व्यवस्था कर सकता था लेकिन यह करने में नाकाम रहा.
वैक्सीन का लोगों तक नहीं पहुंच पाना- रघुराम राजन के अनुसार कई ऐसे देश हैं जहां लॉजिस्टिकल समस्या के कारण वैक्सीन होने पर भी लोगों को इसकी किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. उनके अनुसार भारत इस मोर्चे पर सही दिशा में है.
वैक्सीन लगवाने में झिझक- वैक्सीन से जुड़ी झिझक और फेक न्यूज को दूर करने की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका जैसे देश में भी इसके कारण कोरोना के डेल्टा वेरिएंट का खतरा बना हुआ है.
वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार के लिए वैक्सीन की कीमतों को कारण मानने से इनकार करते हुए राघराम राजन ने कहा कि हर इंसान को वैक्सीन लगाने के लिए जितना प्रॉफिट मार्जिन वैक्सीन उत्पादकों को देना पड़ेगा उससे ज्यादा हमे महामारी के कारण आर्थिक हानि के रूप में चुकाना पड़ा है.
राजन ने आगे कहा कि, वैक्सीन के मोर्चे पर वैश्विक स्तर पर यह सोच ही नहीं है कि “तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं हो सकता जब तक कि हर इंसान सुरक्षित न हो जाये”. उनके अनुसार बड़े स्तर पर वैक्सीन के उत्पादन और उसमे तेजी के लिए ग्लोबल लाइसेंसिंग पर ध्यान देना चाहिए.
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