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2020 में भारत में 77 रेप केस रोजाना दर्ज किए गए. 2021 में यह आंकड़ा 86 था. यह जानकारी व्हॉट्सएप फॉरवर्ड्स या इंटरनेट क्लिकबेट से नहीं निकाली गई है. ये आंकड़े नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के हैं. एनसीआरबी एक सरकारी एजेंसी है जो अपराध के आंकड़े जमा करती है.
इसके साथ-साथ यह सच नहीं है कि यौन हिंसा का हर सर्वाइवर पुलिस के पास जाता है. बहुत से पुलिस के पास नहीं जाते. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) के अनुसार, किसी न किसी तरह की शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव करने वाली सिर्फ 14% महिलाएं मदद मांगने के लिए आगे आती हैं. 2018 में न्यूजपेपर मिंट ने एनसीआरबी के आंकड़ों के साथ राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों (जो उस समय उपलब्ध थे) की तुलना की थी, और कहा था कि यौन उत्पीड़न के लगभग 99% मामलों की सूचना दर्ज नहीं की जाती.
नमूने के तौर पर- जुलाई 2018 की एक रिपोर्ट (द इंडियन एक्सप्रेस) के अनुसार, गुजरात हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को याद दिलाया कि अपहरण और गैंग रेप के मामले में संतोषजनक जांच करने के लिए वह "कर्तव्य बाध्य" थी. सर्वाइवर के वकील ने आरोप लगाया था कि कई कोशिशों के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और मेजिस्ट्रेट के सामने सर्वाइवर के बयान को दर्ज नहीं किया गया.
सर्वाइवर ने सीनियर पुलिस अधिकारी पर भी आरोप लगाया कि उसने पूछताछ के दौरान उसे धमकाया और गैर मुनासिब सवाल पूछे. कुछ ही समय बाद अहमदाबाद पुलिस आयुक्त ने एक बयान में जानकारी दी कि आरोपों के कारण संबंधित अधिकारी जांच से बाहर हो गया है और अब यह जांच पुलिस आयुक्त की निगरानी में एक स्पेशल टीम करेगी.
पुलिस के साथ यह समस्या तो है ही, दिल्ली के मामले में सर्वाइवर ने यह भी कहा था कि कुछ दूसरे लोग उसके घर आए और उसे अपनी पुलिस शिकायत वापस लेने की धमकी दी.
2014 में पश्चिम बंगाल के मध्यमग्राम में एक महिला ने जब पुलिस में रेप की शिकायत दर्ज कराई तो उसके साथ कथित रूप से दूसरी बार गैंग रेप किया गया.
ऐसे में जब राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान यह बताने का फैसला किया कि कई औरतों ने उन्हें बताया कि उनके साथ रेप हुआ, लेकिन वे लोग पुलिस के पास नहीं गईं, तो पूछा जा सकता है- यह हैरानी की बात कैसे है?
और यह भी कि, उन्हें उन महिलाओं के विवरणों का खुलासा करने के लिए क्यों मजबूर किया जाना चाहिए जिन्होंने भरोसा करके उनके साथ कुछ शेयर किया?
इस विषय पर द क्विंट ने पटना हाई कोर्ट की रिटायर्ड जस्टिस अंजना प्रकाश से बात की, तो उन्होंने कहा:
इसलिए राहुल गांधी को दिल्ली पुलिस का नोटिस और उसके बाद उनके घर का दौरा बहुत बेमायने लगता है. इधर राजनीतिक होहल्ला मचा है, दूसरी तरफ राहुल गांधी एकदम चुपचाप हैं.
यहां तक कि कानून भी राहुल गांधी को इस बात के लिए सजा नहीं दे सकता कि वह ऐसी सूचना को सार्वजनिक करने से इनकार रहे हैं- कम से कम, जब तक उनसे अपना दुख-दर्द बयां करने वाली सर्वाइवर्स बालिग थीं. और इस बात को पुख्ता नहीं किया जा सकता कि वे बालिग नहीं थीं.
उनके भाषण के विवादास्पद टुकड़े, जो इंटरनेट पर वायरल है- सभी गलत वजहों से- को ट्रांसक्राइब करके, हम पेश कर रहे हैं:
इस टुकड़े में राहुल ने ऐसा कोई दावा तो नहीं किया कि उनके पास नाबालिगों से जुड़ी जानकारी है.
और इसलिए, जैसा कि एडवोकेट हर्षित आनंद कहते हैं: “बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों की रिपोर्ट नहीं करना पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध है. लेकिन सामान्य तौर पर यौन अपराधों की रिपोर्ट नहीं करना कोई अपराध नहीं है.”
हर्षित साफ करते हैं कि राहुल गांधी कानूनी रूप से पुलिस को सर्वाइवर्स की जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं हैं. वह कहते हैं: "सीआरपीसी के सेक्शन 156 के तहत पुलिस को संज्ञेय अपराध की जांच करने का अधिकार है. लेकिन इस सेक्शन में भी यह नहीं कहा गया है कि पुलिस के पास किसी ऐसे व्यक्ति को पकड़ने का अधिकार है जिसके पास कोई जानकारी है.”
आनंद आगे कहते हैं कि "इस तरह की जानकारी की रिपोर्ट नहीं करना अपराध या साजिश या यहां तक कि इंसाफ में रुकावट के बराबर नहीं है."
ऐसा इसलिए है क्योंकि उकसाने का मतलब है, किसी को अपराध करने में मदद करना, साजिश का मतलब है, किसी गैरकानूनी काम को करने और उसे जारी रखने में किसी का साथ देना, और इंसाफ में रुकावट बनना, तब होता है जब इंसाफ की खोज में दखल दी जाती है.
राहुल गांधी के मामले में इनमें से कुछ भी हुआ दिखाई नहीं देता.
अपने भाषण में राहुल ने यह भी कहा था:
यहां तक कि किसी रेप सर्वाइवर को भी शिकायत दर्ज कराने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. यही वजह है कि, अगर एक साल बाद भी शिकायत दर्ज कराई जाए तो कोई अदालत किसी सर्वाइवर को इस बात की सजा नहीं दे सकती कि उसने पहले आगे आकर शिकायत क्यों नहीं की.
आनंद दोहराते हैं, "अपराध को दर्ज कराना भारतीय आपराधिक कानून के तहत एक मजबूरी नहीं है."
सीआरपीसी के सेक्शन 156 का हवाला देते हुए आनंद यह भी कहते हैं कि पुलिस किसी अपराध की जांच तभी कर सकती है, जब अपराध उसके अपने क्षेत्राधिकार में हुआ हो.
इसलिए अगर राहुल ने तेलंगाना, या राजस्थान या यूपी में इन महिलाओं से मुलाकात की और वहां उन्हें यह जानकारी मिली, तो सबसे पहले उन राज्यों में पुलिस को संज्ञान लेना चाहिए.
आनंद के अनुसार, यह खास तौर से प्रासंगिक है, क्योंकि राहुल सिर्फ वीडियो बाइट्स में दावा कर रहे हैं कि औरतों उनके पास आई थीं, और उनके साथ अपनी आपबीती साझा की थी. यह पुलिस के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है कि वे खुद उनसे संपर्क करें और जानकारी मांगें.
दिल्ली पुलिस ने कथित तौर पर कहा है कि राहुल गांधी को नोटिस भेजने और उनके घर जाने के पीछे की मंशा यह है कि वह उन सर्वाइवर्स को इंसाफ दिलाना चाहती है. स्पेशल सीपी (लॉ एंड ऑर्डर) सागर प्रीत हुड्डा ने रविवार को रिपोर्टर्स से कहा:
बेशक, यह नेक इरादा है. अगर पुलिस देश को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने में मदद करना चाहती है, तो इससे किसे दिक्कत हो सकती है? लेकिन, जैसा कि जस्टिस अंजना प्रकाश कहती हैं:
पिछले साल की एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार: 2020 और 2021 के बीच भारत में रेप के मामलों में 19.34% की बढ़ोतरी देखी गई. इसके बाद आखिरी सवाल यह है कि आखिर हम किसका इंतजार कर रहे हैं?
शायद समय की मांग यह नहीं कि राहुल गांधी की टिप्पणी की जांच की जाए. फिलहाल यह जरूरी है कि देश में यौन हिंसा के मामलों की जांच की जाए और ऐसा माहौल बनाया जाए कि सर्वाइवर्स अपनी शिकायत दर्ज कराएं. राहुल गांधी अपने स्रोतों का खुलासा कर सकते हैं, और नहीं भी कर सकते हैं. उससे ज्यादा अच्छा यह होगा कि औरतें सीधे पुलिस से संपर्क करें, उसी विश्वास के साथ, जिस विश्वास से उन्होंने राहुल गांधी से संपर्क किया.
इसमें कोई शक नहीं कि यौन हिंसा एक सच्चाई है. किसी को संदेह नहीं हो सकता, अगर उसकी जानकारी न दी गई हो. समस्या न तो राहुल गांधी के साथ शुरू होती है और न खत्म होती है. इसलिए समस्या की तरफ ध्यान दीजिए, मैसेंजर पर नहीं, हैं ना! सर्वाइवर की खातिर, सभी औरतों की खातिर, राइट टू प्राइवेसी और फ्रीडम ऑफ स्पीच की खातिर. राहुल गांधी और अपनी खुद की खातिर.
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