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राहुल गांधी की रेप वाली टिप्पणी पर मचा बवाल, क्या हम असल समस्या भूल रहे हैं?

Rahul Gandhi को दिल्ली पुलिस ने थमाया नोटिस, सवाल है कि यौन हिंसा की कईं सर्वाइवर्स को कानून पर भरोसा क्यों नहीं?

मेखला सरन
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी </p></div>
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भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी

(फोटो: पीटीआई)

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2020 में भारत में 77 रेप केस रोजाना दर्ज किए गए. 2021 में यह आंकड़ा 86 था. यह जानकारी व्हॉट्सएप फॉरवर्ड्स या इंटरनेट क्लिकबेट से नहीं निकाली गई है. ये आंकड़े नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के हैं. एनसीआरबी एक सरकारी एजेंसी है जो अपराध के आंकड़े जमा करती है.

इसके साथ-साथ यह सच नहीं है कि यौन हिंसा का हर सर्वाइवर पुलिस के पास जाता है. बहुत से पुलिस के पास नहीं जाते. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) के अनुसार, किसी न किसी तरह की शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव करने वाली सिर्फ 14% महिलाएं मदद मांगने के लिए आगे आती हैं. 2018 में न्यूजपेपर मिंट ने एनसीआरबी के आंकड़ों के साथ राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों (जो उस समय उपलब्ध थे) की तुलना की थी, और कहा था कि यौन उत्पीड़न के लगभग 99% मामलों की सूचना दर्ज नहीं की जाती.

अब पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराना मुश्किल क्यों है... लांछन लगने का डर, शर्म, धमकी मिलना और कसूरवार ठहराया जाना- इनमें से किसी भी वजह से औरतें रिपोर्ट दर्ज कराने में कतराती हैं.

औरतें क्यों नहीं बोलतीं- कुछ उदाहरण

नमूने के तौर पर- जुलाई 2018 की एक रिपोर्ट (द इंडियन एक्सप्रेस) के अनुसार, गुजरात हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को याद दिलाया कि अपहरण और गैंग रेप के मामले में संतोषजनक जांच करने के लिए वह "कर्तव्य बाध्य" थी. सर्वाइवर के वकील ने आरोप लगाया था कि कई कोशिशों के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और मेजिस्ट्रेट के सामने सर्वाइवर के बयान को दर्ज नहीं किया गया.

सर्वाइवर ने सीनियर पुलिस अधिकारी पर भी आरोप लगाया कि उसने पूछताछ के दौरान उसे धमकाया और गैर मुनासिब सवाल पूछे. कुछ ही समय बाद अहमदाबाद पुलिस आयुक्त ने एक बयान में जानकारी दी कि आरोपों के कारण संबंधित अधिकारी जांच से बाहर हो गया है और अब यह जांच पुलिस आयुक्त की निगरानी में एक स्पेशल टीम करेगी.

दिसंबर 2019 की एक रिपोर्ट (पीटीआई) के अनुसार, दिल्ली की एक अदालत ने कथित तौर से स्टेशन हेड ऑफिसर (एसएचओ) से लिखित में यह बताने को कहा कि एफआईआर दर्ज न करने के कारण उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए. इस मामले में सर्वाइवर के साथ कथित तौर पर रेप किया गया और आरोपी ने अश्लील फिल्म भी बनाई.

पुलिस के साथ यह समस्या तो है ही, दिल्ली के मामले में सर्वाइवर ने यह भी कहा था कि कुछ दूसरे लोग उसके घर आए और उसे अपनी पुलिस शिकायत वापस लेने की धमकी दी.

2014 में पश्चिम बंगाल के मध्यमग्राम में एक महिला ने जब पुलिस में रेप की शिकायत दर्ज कराई तो उसके साथ कथित रूप से दूसरी बार गैंग रेप किया गया.

ये तो इंसाफ के रास्ते की चंद ही रुकावटें हैं. दूसरे कई तरीकों से लड़कियों को शर्मिन्दा किया जाता है. कइयों के बारे में लोगों को कानों कान पता भी नहीं चलता. उनकी खबरें बनना तो बहुत दूर की बात है.

राहुल गांधी की टिप्पणी का विचित्र (क्या सचमुच) मामला

ऐसे में जब राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान यह बताने का फैसला किया कि कई औरतों ने उन्हें बताया कि उनके साथ रेप हुआ, लेकिन वे लोग पुलिस के पास नहीं गईं, तो पूछा जा सकता है- यह हैरानी की बात कैसे है?

और यह भी कि, उन्हें उन महिलाओं के विवरणों का खुलासा करने के लिए क्यों मजबूर किया जाना चाहिए जिन्होंने भरोसा करके उनके साथ कुछ शेयर किया?

इस विषय पर द क्विंट ने पटना हाई कोर्ट की रिटायर्ड जस्टिस अंजना प्रकाश से बात की, तो उन्होंने कहा:

“यह आसानी से माना जा सकता है कि राहुल गांधी को मित्रवत या मददगार इनसान समझकर औरतों ने प्राइवेटली उन्हें अपने दुख के बारे में बताया होगा, लेकिन यह उम्मीद कम है कि राहुल गांधी ने उन बातों को कहीं लिखा होगा. अगर उन्होंने ऐसा किया भी होगा तो मुझे नहीं लगता कि उन औरतों की सहमति के बिना उनकी पहचान का खुलासा करना राहुल के लिए उचित होगा क्योंकि इसका मतलब उन औरतों के भरोसे को तोड़ना होगा, और ऐसा करने से उनकी प्राइवेसी और सुरक्षा के लिए भी खतरा हो सकता है.”

इसलिए राहुल गांधी को दिल्ली पुलिस का नोटिस और उसके बाद उनके घर का दौरा बहुत बेमायने लगता है. इधर राजनीतिक होहल्ला मचा है, दूसरी तरफ राहुल गांधी एकदम चुपचाप हैं.

कानून क्या कहता है?

यहां तक कि कानून भी राहुल गांधी को इस बात के लिए सजा नहीं दे सकता कि वह ऐसी सूचना को सार्वजनिक करने से इनकार रहे हैं- कम से कम, जब तक उनसे अपना दुख-दर्द बयां करने वाली सर्वाइवर्स बालिग थीं. और इस बात को पुख्ता नहीं किया जा सकता कि वे बालिग नहीं थीं.

उनके भाषण के विवादास्पद टुकड़े, जो इंटरनेट पर वायरल है- सभी गलत वजहों से- को ट्रांसक्राइब करके, हम पेश कर रहे हैं:

“दूसरी बात, जो मैं आपको बताऊं... शायद कुछ लोगों को यह अच्छा नहीं लगेगा. जब मैं चल रहा था, आपने देखा, कई औरतें रो रही थीं. आपने देखा? क्या आप लोग जानते है कि वे क्यों रो रही थीं? उनमें से बहुत सी औरतें मुझसे मिलकर इमोशनल हो गईं. लेकिन बहुत सी औरतों ने मुझे बताया कि उनके साथ रेप हुआ, मॉलेस्टेशन हुआ, उनके रिश्तेदारों ने ही उनके साथ मॉलेस्टेशन किया.”

इस टुकड़े में राहुल ने ऐसा कोई दावा तो नहीं किया कि उनके पास नाबालिगों से जुड़ी जानकारी है.

और इसलिए, जैसा कि एडवोकेट हर्षित आनंद कहते हैं: “बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों की रिपोर्ट नहीं करना पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध है. लेकिन सामान्य तौर पर यौन अपराधों की रिपोर्ट नहीं करना कोई अपराध नहीं है.”

हर्षित साफ करते हैं कि राहुल गांधी कानूनी रूप से पुलिस को सर्वाइवर्स की जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं हैं. वह कहते हैं: "सीआरपीसी के सेक्शन 156 के तहत पुलिस को संज्ञेय अपराध की जांच करने का अधिकार है. लेकिन इस सेक्शन में भी यह नहीं कहा गया है कि पुलिस के पास किसी ऐसे व्यक्ति को पकड़ने का अधिकार है जिसके पास कोई जानकारी है.”

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आनंद आगे कहते हैं कि "इस तरह की जानकारी की रिपोर्ट नहीं करना अपराध या साजिश या यहां तक कि इंसाफ में रुकावट के बराबर नहीं है."

ऐसा इसलिए है क्योंकि उकसाने का मतलब है, किसी को अपराध करने में मदद करना, साजिश का मतलब है, किसी गैरकानूनी काम को करने और उसे जारी रखने में किसी का साथ देना, और इंसाफ में रुकावट बनना, तब होता है जब इंसाफ की खोज में दखल दी जाती है.

राहुल गांधी के मामले में इनमें से कुछ भी हुआ दिखाई नहीं देता.

अपने भाषण में राहुल ने यह भी कहा था:

“जब मैंने उनसे (सर्वाइवर्स) से पूछा कि क्या मैं पुलिस को कॉल करूं, उन्होंने कहा नहीं... वे लोग पुलिस को नहीं बताना चाहती थीं क्योंकि उन्होंने कहा कि इससे उन्हें ज्यादा परेशानियां होंगी...”

यहां तक कि किसी रेप सर्वाइवर को भी शिकायत दर्ज कराने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. यही वजह है कि, अगर एक साल बाद भी शिकायत दर्ज कराई जाए तो कोई अदालत किसी सर्वाइवर को इस बात की सजा नहीं दे सकती कि उसने पहले आगे आकर शिकायत क्यों नहीं की.

आनंद दोहराते हैं, "अपराध को दर्ज कराना भारतीय आपराधिक कानून के तहत एक मजबूरी नहीं है."

क्षेत्राधिकार के सवाल पर...

सीआरपीसी के सेक्शन 156 का हवाला देते हुए आनंद यह भी कहते हैं कि पुलिस किसी अपराध की जांच तभी कर सकती है, जब अपराध उसके अपने क्षेत्राधिकार में हुआ हो.

इसलिए अगर राहुल ने तेलंगाना, या राजस्थान या यूपी में इन महिलाओं से मुलाकात की और वहां उन्हें यह जानकारी मिली, तो सबसे पहले उन राज्यों में पुलिस को संज्ञान लेना चाहिए.

आनंद कहते हैं: “संज्ञान लेने के बाद उन राज्यों की पुलिस को विशेष रूप से दिल्ली पुलिस को अधिकृत करना होगा और कहना होगा कि क्योंकि यह व्यक्ति, जिसके पास यह जानकारी है, वह हमारे क्षेत्राधिकार में नहीं है, आप उसके पास जाएं और पता करें कि क्या अपराध किया गया है और क्या जानकारी उसके पास है.

आनंद के अनुसार, यह खास तौर से प्रासंगिक है, क्योंकि राहुल सिर्फ वीडियो बाइट्स में दावा कर रहे हैं कि औरतों उनके पास आई थीं, और उनके साथ अपनी आपबीती साझा की थी. यह पुलिस के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है कि वे खुद उनसे संपर्क करें और जानकारी मांगें.

लेकिन पुलिस ने क्या कहा है?

दिल्ली पुलिस ने कथित तौर पर कहा है कि राहुल गांधी को नोटिस भेजने और उनके घर जाने के पीछे की मंशा यह है कि वह उन सर्वाइवर्स को इंसाफ दिलाना चाहती है. स्पेशल सीपी (लॉ एंड ऑर्डर) सागर प्रीत हुड्डा ने रविवार को रिपोर्टर्स से कहा:

"हम यहां उनसे बात करने आए हैं. राहुल गांधी ने 30 जनवरी को श्रीनगर में एक बयान दिया था कि यात्रा के दौरान वह कई महिलाओं से मिले और उन्होंने उन्हें बताया कि उनके साथ रेप हुआ है ... हम उनसे विवरण प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि पीड़ितों को न्याय मिल सके."

बेशक, यह नेक इरादा है. अगर पुलिस देश को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने में मदद करना चाहती है, तो इससे किसे दिक्कत हो सकती है? लेकिन, जैसा कि जस्टिस अंजना प्रकाश कहती हैं:

"अगर पुलिस का इरादा सचमुच ईमानदार है, तो आगे बढ़ने का सबसे आसान और सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि उक्त क्षेत्राधिकार वाले पुलिस स्टेशनों से ऐसे मामलों का विवरण जमा किया जाए और उस सूचना पर कार्रवाई की जाए."

पिछले साल की एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार: 2020 और 2021 के बीच भारत में रेप के मामलों में 19.34% की बढ़ोतरी देखी गई. इसके बाद आखिरी सवाल यह है कि आखिर हम किसका इंतजार कर रहे हैं?

समय की मांग

शायद समय की मांग यह नहीं कि राहुल गांधी की टिप्पणी की जांच की जाए. फिलहाल यह जरूरी है कि देश में यौन हिंसा के मामलों की जांच की जाए और ऐसा माहौल बनाया जाए कि सर्वाइवर्स अपनी शिकायत दर्ज कराएं. राहुल गांधी अपने स्रोतों का खुलासा कर सकते हैं, और नहीं भी कर सकते हैं. उससे ज्यादा अच्छा यह होगा कि औरतें सीधे पुलिस से संपर्क करें, उसी विश्वास के साथ, जिस विश्वास से उन्होंने राहुल गांधी से संपर्क किया.

फिर अगर किसी सांसद को ऐसा खुलासा करने के लिए परेशान किया जा सकता है, जिस पर उसकी बहुत कम, या बिल्कुल भी एजेंसी नहीं है. तो किसी सोशल वर्कर और पत्रकार और नागरिक समाज के सदस्यों की स्थिति तो समझी भी नहीं जा सकती. क्या होगा, अगर आप पर अपनी किसी दोस्त के बारे में वह बताने के लिए दबाव बनाया जाए जिसके बारे में आपको पता है लेकिन आप उसका खुलासा करने की स्थिति में नहीं हैं? क्या होगा, अगर आपको ऐसी स्टोरी बताने को कहा जाए, उसकी बारीक से बारीक जानकारी, जिसे आपने कभी किसी को बताया ही न हो?

इसमें कोई शक नहीं कि यौन हिंसा एक सच्चाई है. किसी को संदेह नहीं हो सकता, अगर उसकी जानकारी न दी गई हो. समस्या न तो राहुल गांधी के साथ शुरू होती है और न खत्म होती है. इसलिए समस्या की तरफ ध्यान दीजिए, मैसेंजर पर नहीं, हैं ना! सर्वाइवर की खातिर, सभी औरतों की खातिर, राइट टू प्राइवेसी और फ्रीडम ऑफ स्पीच की खातिर. राहुल गांधी और अपनी खुद की खातिर.

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