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UP में 250 रुपए की ‘दिहाड़ी’ करने को मजबूर डॉक्टर अब हड़ताल पर

हमने यूपी के अलग-अलग सरकारी मेडिकल कॉलेज के कई छात्रों से बातचीत कर उनकी दिक्कतों को जानने की कोशिश की है.

अभय कुमार सिंह
भारत
Updated:
UP में 250 रुपए की ‘दिहाड़ी’ करने को मजबूर डॉक्टर अब हड़ताल पर
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UP में 250 रुपए की ‘दिहाड़ी’ करने को मजबूर डॉक्टर अब हड़ताल पर
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छात्रों-युवाओं की दिक्कतों को किस तरह से शासन-प्रशासन नजरंदाज करते हैं, इसकी कई 'कहानियां' द क्विंट आपको सुना चुका है. कुछ दिन पहले ही हमने ये रिपोर्ट दिखाई थी कि 7,500 रुपये प्रति महीने की सैलरी से यूपी के इंटर्न MBBS खफा हैं, वो अपने सीमित संसाधनों के साथ सोशल मीडिया पर विरोध भी जता रहे थे. ट्वीट कर रहे थे, वॉट्सअप मैसेज भेज रहे थे लेकिन यूपी सरकार ने इनको सुनना सही नहीं समझा. ऐसे में वही 'क्रोनोलॉजी' दोहराई गई है, ये इंटर्न डॉक्टर अब पिछले कई दिनों से 'कार्य बहिष्कार/हड़ताल' पर उतर आए. हमने यूपी के अलग-अलग सरकारी मेडिकल कॉलेज के कई छात्रों से बातचीत कर उनकी दिक्कतों को जानने की कोशिश की है.

हड़ताल पर उतरने वाले शुरुआती कॉलेजों में से एक मेरठ के एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज एक इंटर्न डॉक्टर कहते हैं,

हम लोग हॉस्पिटल में हर रोज 8-12 घंटे इमरजेंसी ड्यूटी करते हैं, 250 रुपये हर रोज का मिलता है, ये मानदेय खुद में अपमान सा लगता है. इतना कम वेतन तो मजदूर लोगों को भी नहीं मिलता.
इंटर्न MBBS डॉक्टर, एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज
एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज , मेरठ(फोटो:Accessed by The Quint)

ये डॉक्टर नाम इसलिए नहीं उजागर करना चाहते हैं क्योंकि इन्हें लगता है कि कहीं इनका विरोध इनके करियर पर भारी न पड़ जाए.

इसी कॉलेज के एक और इंटर्न डॉक्टर कहते हैं कि हम पिछले कई महीनों से अपनी वाजिब सैलरी के लिए तरह-तरह की कोशिशें कर रहे हैं लेकिन सरकार की तरफ से भरोसा तक नहीं दिया जाता है.

हर बार कॉलेज को हम लेटर देते हैं, कहा जाता है कि आगे (सरकार तक) बात पहुंचा दी गई है, लेकिन फिर कोई सुनवाई ही नहीं होती है, ऐसे में ये कदम उठाना तो बनता था ना हमारा?
इंटर्न MBBS डॉक्टर, एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज
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इन डॉक्टरों का ये भी सवाल है कि आखिर ये 'कोरोना वॉरियर्स' का तमगा कैसा? जब हमारी बात सुनने को ही कोई तैयार नहीं है? दरअसल, कोरोना वायरस महामारी के इस दौर में जो लोग सामने से इसका मुकाबले कर रहे है वो हैं डॉक्टर, नर्स और पूरी मेडिकल टीम, जिन्हें कोरोना वॉरियर्स का नाम भी दिया जा रहा है. इनकी खूब तारीफें हो रहीं हैं, लेकिन यूपी के ये इंटर्न डॉक्टर्स कर्तव्य के साथ 'अधिकारों' की भी मांग कर रहे हैं.

(मेडिकल कॉलेज, सैफई)(फोटो:Accessed by The Quint)

यूपी में ही क्यों इतना कम है स्टाइपेंड?

आगरा मेडिकल कॉलेज के एक इंटर्न डॉक्टर कहते हैं कि आखिर यूपी समेत दो-तीन राज्यों में ही क्यों कम है स्टाइपेंड?

कुछ राज्य सरकारों ने अपनी जिम्मेदारी समझी और इंटर्नशिप बढ़ा दिया वहां तो प्रदर्शन की भी जरूरत नहीं पड़ी. हाल ही में थोड़े प्रदर्शन के बाद कर्नाटक में भी स्टाइपेंड बढ़ा दिया गया. लेकिन यूपी में कोई कैसे सुनेगा, ये समझ नहीं आ रहा.
इंटर्न MBBS डॉक्टर, आगरा

बता दें कि उत्तर प्रदेश में प्राइवेट, गवर्नमेंट मिलाकर 40 से ज्यादा मेडिकल कॉलेज हैं. यहां 2500 से ज्यादा इंटर्न डॉक्टर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इंटर्नशिप करने वाले इन डॉक्टरों को महज 7500 रुपये हर महीने का स्टाइपेंड दिया जाता है, जो देश में सबसे कम मिलने वाले स्टाइपेंड्स में से एक है. राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों का भी ऐसा हाल है. इसके अलावा दूसरे प्रदेशों में इससे दो गुना या ढाई गुना ज्यादा स्टाइपेंड है.

झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज की इंटर्न डॉक्टर कहती हैं कि हम सब पढ़ाई एक जैसी ही करते हैं, काम भी कमोबेश एक जैसा होता है लेकिन सेंट्रल मेडिकल कॉलेजों में 23 हजार रुपये स्टाइपेंड दिया जा रहा है. वहीं पश्चिम बंगाल में 16,590, पंजाब में 15 हजार और बाकी के राज्यों में भी स्टाइपेंड उत्तर प्रदेश से ज्यादा ही है. ऐसे में ये हमारे लिए ‘दुख और सोचने’ की बात हो जाती है कि क्या हमने कोई गलती कर दी है?

इसी साल मई महीने में ही कर्नाटक में 8,000 से अधिक रेजिडेंट डॉक्टरों को राज्य सरकार ने बड़ी राहत दी थी. कर्नाटक में डॉक्टरों के स्टाइपेंड में आखिरी बार साल 2015 में बदलाव किया गया था और इन 'कोरोना वॉरियर्स' की भी शिकायत थी कि दूसरे राज्यों की तुलना में इन्हें काफी कम मेहनताना मिलता है. अब राज्य में इंटर्न डॉक्टरों का स्टाइपेंड बढ़ाकर 30 हजार रुपये कर दिया गया है.

केजीएमसी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर(फोटो:Accessed by The Quint)

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, स्टूडेंट मेडिकल नेटवर्क का तो कहना है कि प्रदेश के कुछ प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में महज 6 हजार स्टाइपेंड दिया जा रहा है, वहीं कुछ कॉलेजों में तो बिना स्टाइपेंड ही इंटर्नशिप कराई जा रही है. एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेटर भी लिखा है जिसमें सारी दिक्कतों को साझा कर स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग की गई है.

गोरखपुर BRD मेडिकल कॉलेज के एक इंटर्न डॉक्टर कहते हैं,

एक तरफ दूसरी सरकारें अपने इंटर्न डॉक्टरों, रेजिडेंट डॉक्टरों की बात सुनकर फैसले ले रही हैं. हमारी सरकार ने हमें आश्वासन तक देना भी सही नहीं समझा, हम उन्हें लेटर लिख चुके हैं लेकिन कोई जवाब ही नहीं मिलता. ऐसे में हमें कार्य बहिष्कार का रास्ता अपनाना पड़ा. हम नहीं चाहते थे कि ऐसा करें लेकिन हम मजबूर हैं.
इंटर्न MBBS डॉक्टर, बीआरडी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर

'घरवालों को भी जवाब देना पड़ता है?'

MBBS की पढ़ाई में 4.5 साल का कोर्स होता है वहीं 1 साल की इंटर्नशिप होती है. इंटर्नशिप के दौरान इन्हें मेडिकल कॉलेजों के अलग-अलग डिपार्टमेंट में ड्यूटी करनी होती है. ये डॉक्टर सीनियर डॉक्टरों की मदद करते हैं, कोरोना काल में इनपर स्क्रीनिंग का भी जिम्मा रहता है. यूनाइटेड रेजिडेंट एंड डॉक्टर एसोसिएशन के स्टेट प्रेसिडेंट नीरज कुमार मिश्रा कहते हैं कि रिस्क फैक्टर अगर हम देखें तो इंटर्न्स की जॉब प्रोफाइल के हिसाब से ये सबसे ज्यादा रिस्क में हैं. ये फ्रंटलाइनर्स हैं, ग्राउंड पर मौजूद हैं और सभी मरीजों को देखते हैं. इतने के बावजूद इन्हें सैलरी मिलती है- 250 हर दिन यानी 7500 प्रति महीने.

मेरठ के ही एक इंटर्न डॉक्टर अपनी मजबूरी बताते हुए कहते हैं कि 5 साल के करीब हो गए हैं, अब भी घर से पैसा मांगना सही नहीं लगता.

मेरे पिताजी किसान हैं, खेती भी ज्यादा नहीं है. इसमें इतना ही आ पाता है कि घर खर्च चल जाता है. 21 हजार एक साल की फीस होती है, 4.5 साल हो गए हैं, घर से अभी भी मांग रहे हैं तो अच्छा नहीं लगता है. घरवाले भी अपने ‘काबिल’ बेटे से उम्मीद रखते हैं.
इंटर्न MBBS डॉक्टर, एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज

यूनाइटेड रेजिडेंट एंड डॉक्टर एसोसिएशन ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को एक लेटर भी लिखा है, जिसमें AIIMS के डॉक्टर अनुराग के निधन का जिक्र है. इस लेटर में लिखा गया है कि डॉक्टर अनुराग के निधन से पूरी मेडिकल फ्रेटरनिटी दुखी है और सरकार ने श्रद्धांजलि दी इसका शुक्रिया. लेकिन मेडिकल छात्रों-प्रोफेशनल की कई ऐसी दिक्कतें हैं, जिन्हें सुनने समझने की जरूरत है.

(फोटो: यूनाइटेड रेजिडेंट एंड डॉक्टर एसोसिएशन)

एसोसिएशन के स्टेट प्रेसिडेंट डॉक्टर नीरज कुमार मिश्रा कहते हैं कि इस लेटर में यूपी के इंटर्न डॉक्टरों की मांग का भी जिक्र है.

हमारा मकसद है कि हम सरकार को इस बात से जागरूक कर सकें कि ये इंटर्न महामारी के समय में 10-12 घंटे हर रोज काम करते हैं लेकिन सैलरी उस लिहाज से बिलकुल जायज नहीं है. उनकी समस्याओं पर ध्यान दिया जाएं, कहीं देर न हो जाए.

हड़ताल पर जाने के बाद इन डॉक्टरों को उम्मीद है कि इनकी सुनवाई होगी. डॉक्टर कह रहे हैं कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो हड़ताल जारी रहेगी.

ये भी देखें- कुछ इस तरह अपनी बात रख रहे थे ये इंटर्न डॉक्टर

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Published: 13 Jul 2020,07:41 PM IST

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