मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019किसी राजनीति या समाज में नहीं बंध सकते राम, रहीम और इकबाल का पैगाम

किसी राजनीति या समाज में नहीं बंध सकते राम, रहीम और इकबाल का पैगाम

भगवान राम तो धर्म या देश की सीमा से मुक्त एक विलक्षण ऐतिहासिक चरित्र रहे हैं

रविकांत ओझा
भारत
Published:
भगवान राम तो धर्म या देश की सीमा से मुक्त एक विलक्षण चरित्र हैं
i
भगवान राम तो धर्म या देश की सीमा से मुक्त एक विलक्षण चरित्र हैं
(फोटो: altered by Quint Hindi)

advertisement

अयोध्या में मंदिर का भूमिपूजन एक अहम मौका है, जब आप ये विचार कर सकते हैं कि दुनिया को रामचरित मानस जैसा महाकाव्य देने वाले तुलसीदास के अनन्य सखा कौन थे -अब्दुल रहीम खान-ए-खाना.

उसी रहीम ने एक दोहे में कहा-

धूर धरम निज सीस पर, कहु रहीम केहि काज,

जिहि रज मुनि पत्नी तरी, सोई ढूंढ़ते गजराज।

संदर्भ ये है कि जब रहीम से पूछा गया कि आप ये मिट्टी अपने सिर पर किसलिए रख रहे हैं तो उन्होंने जवाब दिया- जिस मिट्टी के स्पर्श से मुनि की पत्नी अहिल्या का उद्धार हो गया था, मैं उसी मिट्टी में राम ढूंढ रहा हूं ताकि मेरा भी उद्धार हो जाए.

राम-कृष्ण के प्रति रहीम की भक्ति विख्यात है लेकिन भारत और उसकी भूमि से संपर्क में आने वाला शायद ही ऐसा कोई कलमवीर हुआ हो, जिसे राम ने प्रभावित न किया हो. फरीद, रसखान, आलम रसलीन, हमीदुद्‍दीन नागौरी, ख्वाजा मोइनुद्‍दीन चिश्ती आदि कई बड़े नामों के लबों पर राम का नाम रहा है. अमीर खुसरो ने तो तुलसीदास से सालों पहले अपनी रचनाओं में राम को नमन किया है.

मतलब साफ है, भगवान राम जनमनास के नायक हैं. वे किसी बंधन में नहीं हैं.श्री राम तो धर्म या देश की सीमा से मुक्त एक विलक्षण ऐतिहासिक चरित्र रहे हैं. शायद यही वजह है कि मुस्लिम देश इंडोनेशिया में रामकथा की सुगंध हर ओर बिखरी हुई है. इसकी एक वजह ये भी है कि राम कट्टर नहीं हैं. उनका हर कर्म मानवता को संदेश देता है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

भगवान राम के भव्य मंदिर के भूमिपूजन के बाद समाजवादी पार्टी के सांसद रहे उदयप्रताप सिंह की कविता की दो पक्तियां मुझे बार-बार याद आ रही हैं-

जिसकी रचना सूरज, चांद, तारे ये जमीं सोचो जरा।

उसका मंदिर तुम बनाओगे, सोचो जरा।

उमा भारती ने कहा था- राम पर बीजेपी का पेटेंट नहीं है. इस बयान के कई मकाम हो सकते हैं लेकिन सवाल तो अपनी जगह कायम है ही. क्या पुरुषों में उत्तम मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम को किसी राजनीति, किसी समाज या किसी भूगोल में बांधा जा सकता है?

मेरा जवाब है- नहीं. कतई नहीं. यदि ऐसा होता तो फिर तमिल में रामायण नहीं होती, तेलुगू में नहीं होती, असमिया में नहीं होती, उर्दू में नहीं होती, फारसी में नहीं होती. और तो और इंडोनेशिया, थाइलैंड , कंबोडिया, नेपाल, तिब्बत, मंगोल, तुर्किस्तान, बर्मा , श्रीलंका, फिलीपींस या मलाया में भी अपनी-अपनी रामायण नहीं होती.

राम तो वह हैं जो बाली को मारकर किष्किन्धा जीतते हैं तो वहां का राजा नहीं बनते. रावण को मारकर लंका जीतते हैं तो वहां का राजकाज भी विभीषण को सौंप देते हैं. रावण से युद्ध से पहले भी राम दो-दो बार संधि प्रस्ताव भेजते हैं. वे चाहते हैं युद्ध न हो, रक्तपात न हो, ऐसे राम के भक्त कट्टर कैसे हो सकते हैं. कैसे किसी की मॉब लिचिंग कर जय श्रीराम का उद्घोष कर सकते हैं.

राम तो शबरी के जूठे बेर भी प्रेम से खाने वाले हैं. उनके भक्त कैसे किसी मुस्लिम भक्त द्वारा लाई गई मिट्टी को अयोध्या में आने से रोक सकते हैं. दरअसल राम पर केवल अपना अधिकार जताने वाला समाज राम का ही अपमान करता है. लिहाजा आज वक्त का तकाजा है कि राम को सही अर्थों में समझा जाए.

मशहूर कवि इकबाल कादरी की पक्तियों को नजीर मान सकते हैं-

रा का मतलब चलें सब लोग सीधी राह पर

म की मंशा है कि मंजिल कभी गाफिल न हो

राम की जिनके दिलों में हो उल्फत दोस्तों

उनकी संगत में कभी भूल के भी शामिल न हों

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT