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एथिक्स, क्वालिटी, परशेप्शन- टाटा ग्रुप की इमेज सारे पैमानों पर देश में अव्वल रही है. लेकिन सोमवार को इसे भारी झटका लगा. जिस चेयरमैन सायरस मिस्त्री पर ग्रुप को अगले दो दशक तक आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी थी, उसे निकाल दिया गया और वह भी बहुत ही अजीबो गरीब तरीके से.
शेयर बाजार ने अपना रिएक्शन दे दिया है और उसके हिसाब से जो हुआ सही नहीं हुआ. इकोनॉमिक टाइम्स में एक बड़े कॉलमिस्ट ने लिखा है कि फैसले से ग्रुप की इमेज को बड़ा झटका लगा है. अब जानिए कैसे टाटा का नाम खराब हुआ है.
सायरस मिस्त्री ने टाटा संस के बोर्ड मेंबर को चिट्ठी लिखकर सवाल उठाया है कि चेयरमैन को बिना सफाई देने का मौका दिए बगैर हटाना कितना जायज है. मिस्त्री ने लिखा है कि भारत के कॉरपोरेट इतिहास में यह घटना अप्रत्याशित है और वो इस फैसले से क्षुब्ध हैं. खबर आ रही है कि सायरस मिस्त्री को हटाने की प्लानिंग पहले से हो रही थी और सायरस को इसकी भनक तक नहीं थी. टाटा ग्रुप में साजिश, सुनने में अजीब लगता है ना.
कंपनी का चेयरमैन तय करता है कि बोर्ड मीटिंग में कौन-कौन सी बातों पर चर्चा होगी. क्या सायरस मिस्त्री को पता था कि उनके हटाने के प्रस्ताव पर बोर्ड में चर्चा होने वाली है. और अगर नहीं तो कहां गया टाटा का एथिक्स. मिस्त्री का आरोप है कि चेयरमैन रहने के बावजूद उनके पावर में लगातार कटौती होती रही. है ना ये बहुत ही अजीब बात.
सायरस ने पत्र में लिखा है कि टाटा ग्रुप का एविएशन सेक्टर में कूदने का फैसला उन पर थोपा गया. साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि ग्रुप ने जो विदेश में कंपनियां खरीदीं उसमें सिर्फ जेगुआर और टेटली खरीदने का फैसला सही साबित हुआ. क्या सायरस पहले लिए गए फैसलों पर सवाल उठा रहे थे और इसीलिए उन्हें जाना पड़ा?
टाटा ग्रुप के लंबे इतिहास में सायरस मिस्त्री पहले ऐसे चेयरमैन थे जो टाटा परिवार से बाहर के थे. ऐसे में उनकी इस तरह से छुट्टी, अब टाटा बाहर के मंझे प्रोफेशनल्स को अपने घराने में कैसे जोड़ पाएगा?
सायरस मिस्त्री की तो टाटा संस से छुट्टी हो गई. लेकिन चार बड़ी कंपनियों- टीसीएस, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील और टाटा केमिकल्स- में वो अब भी चेयरमैन हैं. अगर उन्होंने खुद पद नहीं छोड़ा तो क्या उन्हें निकाला जाएगा? मतलब यह कि ग्रुप में लड़ाई आगे भी होने वाली है. फिर लोगों के परशेप्शन को कितना झटका लगेगा.
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