सायरस मिस्त्री का चेयरमैन पद से हटाया जाना. इसके बाद लंबी कानूनी लड़ाई होना तय है. लेकिन इस दौरान कौन-कौन से नए ट्विस्ट और टर्न होंगे, इस पर हम सबकी नजर होगी. इस समूह को मैंने कई सालों से देखा है, जाना है. उसी आधार मैं कह सकता हूं कि आगे का रास्ता जिगजैग ही रहने वाला है.
सायरस मिस्त्री की चिट्ठी को पढ़िए, जो उन्होंने टाटा संस के बोर्ड को लिखी है. बड़ा डिप्रेसिंग है. इतने प्रतिष्ठित ग्रुप में इस तरह की बातें, अपने पत्रकारिता के करियर में मैंने कम ही सुनी हैं. और वो भी टाटा ग्रुप के बारे में तो बिल्कुल नहीं. रतन टाटा ने पहले भी पावरफुल क्षत्रप को हटाए हैं. आपको याद होगा रूसी मोदी और दरबारी सेठ का किस्सा. लेकिन उस समय के फैसले ग्रुप को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए किए गए थे. लेकिन इस बार घटनाक्रम बिल्कुल अलग है.
इन सब बातों को देखते हुए मुझे लगता है कि आने-वाले दिनों-महीनों में घटनाक्रम इस तरह का मोड़ ले सकती है. :
1. लंबी कानूनी लड़ाई
रतन टाटा अगर सोचते होंगे कि सायरस मिस्त्री को हटाने के बाद उन्हें कुछ इत्मीनान मिलेगा, तो ऐसा नहीं है. दरअसल, आसार हैं कि टाटा और मिस्त्री लंबे कानूनी युद्ध में उलझेंगे. दोनों पक्षों ने कई अदालतों और कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में कैविएट फाइल करके कहा है कि उनके सामने कोई मामला सामने आए, तो उनका पक्ष सुने बगैर कोई एकतरफा आदेश न दिया जाए.
आज शापूरजी पालनजी मिस्त्री (टाटा ग्रुप में 18.5% शेयर होल्डर) की तरफ से बयान आया है कि वो फिलहाल अदालत नहीं जा रहे हैं और हालात की समीक्षा कर रहे हैं. लेकिन बाद में मिस्त्री की तरफ से भी कैविएट फाइल करने की खबरें आईं और सायरस का खंडन भी.
चूंकि सायरस को हटाने का प्रस्ताव टाटा ट्रस्ट (66% शेयर होल्डर) का था, इसलिए ट्रस्ट को सायरस के खिलाफ चैरिटी कमिश्नर के सामने आरोप लगाने होंगे कि क्यों उनकी चेयरमैनशिप से कंपनी के हितों को नुकसान हो रहा था. मामला इज्जत का है, तो सायरस को अपना बचाव करना पड़ेगा.
2. बड़े वकीलों को मिलेंगे बड़े केस
टाटा ग्रुप ने पी. चिदंबरम से लेकर हरीश साल्वे तक दर्जनों वकील हायर कर लिए हैं. सायरस की तरफ से होंगे शार्दूल अमरचंद मंगलदास और नामी वकील इकबाल छागला, जो सायरस के ससुर भी हैं. आने वाले दिनों में टाटा से जुड़े शुभ-शुभ समाचारों के बीच लड़ाई-झगड़े और बदनामियों के ढेर सारे समाचार आएंगे. मतलब कि शेयरधारकों को इन रिस्क को भी फैक्टर इन करना होगा.
3. टाटा ट्रस्ट का भविष्य भी फोकस में
टाटा ट्रस्ट एक चैरिटेबल संस्था है. इन ट्रस्टों पर रतन टाटा का कब्जा है और सारे ट्रस्टी उनके भरोसे के हैं. लेकिन ज्यादातर लोगों की उम्र काफी है. जो संकट टाटा ग्रुप में उत्तराधिकार को लेकर खड़ा हुआ है, वैसे हालात टाटा के दोमुखी ट्रस्टों को लेकर भी खड़े होंगे. इनके उत्तराधिकार प्लान पर भी अब पब्लिक की नजर रहेगी.
4. कौन बनेगा चेयरमैन?
मंगलवार को सेलेक्शन कमिटी की पहली बैठक हुई. ऐलान भले ही चार महीनों में हो, लेकिन सुनते हैं कि चेयरमैन का नाम रतन टाटा तय कर चुके हैं.
कमिटी ग्रुप के नए स्ट्रक्चर पर भी विचार कर सकती है. यानी एक चेयरमैन और एक ग्रुप सीईओ. या दो ग्रुप सीईओ. इस ढांचे में नोएल टाटा का नाम फिर सामने आएगा. वो टाटा भी हैं और सायरस के बहनोई भी. उनके नाम पर आसानी से सहमति बन सकती है.
5. टाटा-मिस्त्री झगड़े में पीएम मोदी का क्या काम?
सभी चौंके हैं कि रतन टाटा ने पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर सायरस को हटाने और खुद के चेयरमैन बनने की जानकारी क्यों दी? और फिर उसे सार्वजनिक क्यों किया? सुनते हैं कि सायरस ने भी पीएम को चिट्ठी लिखी है. रतन टाटा क्या यह सिग्नल दे रहे हैं कि वह मोदी जी के सम्पर्क में हैं और उनको भरोसे में लेकर यह कदम उठाया गया?
इसका दूसरा बड़ा कारण शायद यह हो सकता है कि टाटा ग्रुप कंपनियों के मामलों में सरकारी वित्तीय संस्थानों की बड़ी भूमिका रहती है. रतन टाटा को इस सत्तापलट की पूरी प्रक्रिया में इन संस्थानों की मदद चाहिए.
तीसरा कारण नैनो के गुजरात प्लांट से हो सकता है. सुनते हैं कि सायरस इस प्लांट में जो बदलाव करने वाले थे, उससे नौकरियां जातीं. गुजरात में जॉब कट बुरी खबर होती. रतन टाटा ने मिस्त्री को हटाने का जो फैसला किया है, उसमें कुछ ऐसे मामलों में सरकार भी पिक्चर में थी. इसीलिए पीएम मोदी को चिट्ठी लिखने जैसा अप्रत्याशित काम रतन टाटा ने किया है.
यह तो निकट भविष्य का इतिहास है. कुछ बरस बाद इतिहास में एक बड़ा मोड़ आएगा, जब 18.5% शेयर रखने वाला मिस्त्री परिवार बदला लेने और कंपनी पर कब्जा करने की कोशिश करेगा. मिस्त्री मुंबई के बिल्डर हैं. बिल्डर कल्चर और टाटा कॉरपोरेट कल्चर का यह टकराव देखने लायक होगा.
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