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‘अब जाकर हमारी कॉलोनी में जश्न का माहौल आया है. जिस दिन उन लोगों को फांसी पर लटका दिया जाएगा, वो वाकई एक अच्छा दिन होगा,’ दिल्ली के रविदास कैंप – जहां दिसंबर 2012 के निर्भया गैंगरेप-मर्डर केस के चारों दोषी रहते थे - में अपनी झुग्गी के बरामदे पर बैठे बिहारी लाल ने कुछ ऐसे अपनी राय दी.
लेकिन इससे पहले कि वो अपना सवाल खत्म करते, 56 साल के बिहारी लाल, जिसे यहां के लोग प्रधान जी भी कहते हैं, ने पूछा क्या हैदराबाद एनकाउंटर में मारे गए आरोपियों के शव उनके परिवारवालों को लौटा दिया गया? इस सवाल के पीछे शायद एक आशंका छिपी थी – क्या फांसी के बाद दोषियों के शव को मीडिया के लाव-लश्कर के साथ अंतिम संस्कार के लिए वापस इस झुग्गी में लाया जाएगा?
इस केस में हुई गिरफ्तारियों के बाद से ही रविदास कैंप गहरे कलंक के साये में जी रहा है. 22 साल के आकाश को अपने घर के बारे में झूठ बोलना पड़ता है. ‘जब हम लोगों को बताते हैं कि हम रविदास कैंप से हैं तो वो हमारे बारे में राय बनाते हैं. मैंने अपने दोस्तों को बताया है कि मैं मुनिरका में रहता हूं इसलिए मैं उन्हें कभी अपने घर भी नहीं बुला सकता,’ आकाश ने कहा.
दिल्ली पुलिस की नौकरी की चाह रखने वाला आकाश बलात्कार के मामलों में त्वरित न्याय, जैसा कि हैदराबाद एनकाउंटर में हुआ, के विचार से काफी प्रभावित है. झुग्गी के दूसरे लोगों की तरह वह भी मानता है ‘उनको अपने किए की सजा जरूर मिलनी चाहिए. यह सब बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था.’
हालांकि बस्ती के ज्यादातर निवासियों का मानना था कि चारों दोषियों को जल्द से जल्द फांसी दे दी जानी चाहिए, एक दोषी, विनय शर्मा, के परिवारवालों ने इस रिपोर्टर से बात करने से मना कर दिया.
उसकी एक पड़ोसी, मीनू, ने बताया शर्मा के माता-पिता चाहते हैं कि उनके बेटे को मिली मौत की सजा माफ कर दी जाए और ‘बदले में उसे आजीवन कारावास’ दे दिया जाए.
हालांकि कुछ देर चुप रहने के बाद वह गृहिणी, जो कि करीब 15 सालों से झुग्गी में रह रही है, ने माना और कहा ‘इस मामले में लोगों में सख्त संदेश जाना भी जरूरी है और मृत्युदंड से कुछ तो फर्क पड़ेगा.’ लेकिन क्योंकि हम लोग पड़ोसी हैं, ‘दोषियों के खिलाफ बोलना आसान नहीं है.’
‘सजा-ए-मौत का नियम बना दिया जाए’
32 साल की पल्लवी, जिसकी कंपनी कोलकाता शिफ्ट हो गई तो नौकरी चली गई, ने बताया वह जब भी जॉब इंटरव्यू के लिए जाती है खुद को रविदास कैंप का निवासी बताने में शर्म महसूस करती है. उसने कहा वो पहले दिन से इन दोषियों के मृत्युदंड के हक में है, ‘बेहतर होगा इन लोगों को 16 दिसंबर को ही फांसी दे दी जाए.’
‘तीर जब कमान से निकल जाए तो उसे वापस नहीं लाया जा सकता. ठीक वैसे ही, एक बार आपकी प्रतिष्ठा चली जाए, तो दोबारा उसे हासिल करना आसान नहीं होता,’ झुग्गी के बाहर एक दुकान चलाने वाले आशीष प्रताप सिंह ने कहा.
इस झुग्गी की छवि की बात को अगर अलग भी कर दें, सिंह ने कहा, ‘तो मौत की सजा से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध जरूर कम होंगे. असल में बलात्कारियों को या तो हैदराबाद के आरोपियों की तरह गोली मार देनी चाहिए या फिर बिना ट्रायल के ही फांसी पर लटका देना चाहिए.’
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