Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019हैदराबाद केस: आज निर्भया होती, तो क्या कहती? 

हैदराबाद केस: आज निर्भया होती, तो क्या कहती? 

प्यारी डॉक्टर बहन, उस टोल प्लाजा पर तुम ही नहीं, मैं भी खड़ी थी.

संतोष कुमार
वीडियो
Updated:
प्यारी डॉक्टर बहन, उस टोल प्लाजा पर तुम ही नहीं, मैं भी खड़ी थी.
i
प्यारी डॉक्टर बहन, उस टोल प्लाजा पर तुम ही नहीं, मैं भी खड़ी थी.
(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

वीडियो एडिटर: दीप्ति रामदास

हैदराबाद की मेरी प्यारी डॉक्टर बहन.मैं तुम्हें ही लिख रही हूं. क्योंकि हैदराबाद के उस टोल प्लाजा पर तुम नहीं, मैं भी खड़ी थी.

जब तुम्हें उनपर बहुत गुस्सा आ रहा था तो आंखें मेरी भी लाल हो रही थीं. तुम्हारे गाल पर ढलका आंसू का वो एक कतरा, मेरी रूह से निकला था. तुम्हारे साथ मेरी सांसें भी उखड़ीं.  तुम्हारे घरवालों की सिसकियों में मैं भी शामिल थी.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

सिर्फ जगह ही तो बदली है. साल ही तो बदला है. हुकूमत ही तो बदली है. चीखें वही हैं. तड़प वही है. कुचला जाना वही है. ठीक-ठीक महसूस कर सकती हूं तुम्हारी तड़प.

बहन, याद है मुझ पर जुल्म के बाद क्या कहा था लोगों ने? उतनी रात को उस लड़के के साथ कहां गई थी? तुमसे कह रहे हैं पढ़ी-लिखी हो तो पुलिस को फोन क्यों नहीं किया? गलती तुम्हारी है. हमारी है. 

तुम पूछती क्यों नहीं उनसे कि उस बदहवाशी में किससे मदद मांगनी चाहिए और किससे नहीं, कहां होश रहता है. याद दिलाओ न उन्हें, कि तुमने अपनी बहन से फोन पर क्या कहा था.

यही ना कि डर लग रहा है. प्लीज तुम मुझसे फोन पर बात करती रहो. और तुम तो किसी सुनसान सड़क पर भी नहीं थी. एक टोल प्लाजा पर थी. जहां लोग आते-जाते रहते हैं. कहां थी पुलिस? कहां था निजाम?

बताती क्यों नहीं कि तुमसे बात के 20 मिनट बाद ही तुम्हारी बहन ने पुलिस को फोन किया था. बताती क्यों नहीं कि जैसे मुझे बस में लेकर वो लोग सारे शहर में घूम रहे थे और पुलिस की लाठी काठ बन खड़ी रही, वैसे ही तुम्हारे घर वालों को भी पुलिस घुमाती रही.

तुम्हारे घर वालों को पुलिस कहती रही कि चली गई होगी किसी के साथ...धिक्कार है!

लेकिन कैसे बताओगी? सुनेगा भी कौन? कोई हमारी सिसकियां सुनता तो इस देश में हर घंटे 41 बहनें क्यों कुचली जातीं,  क्यों पीटी जातीं?

और इनकी बेशर्मी तो देखो. तुम्हारे दर्द में मजहब ढूंढ रहे हैं. दर्द का कोई धर्म होता है क्या? हम पर हमला करने वालों का कोई धर्म होता है क्या? ये सबूत है कि ये फिर कुछ नहीं करेंगे.

कोई और नहीं सुनेगा इसलिए मैं तुम्हें लिख रही हूं बहन. कोई सुनता तो दिसंबर 2012 से नवंबर 2019 के बीच कुछ बदलता जरूर? मेरे नाम पर इन लोगों ने फंड बनाया, कानून बनाया. पता है ना तुम्हें इन लोगों ने मेरे नाम पर बने फंड का पूरा इस्तेमाल तक नहीं किया. रांची से हैदराबाद तक. कहां कुछ बदला है?

मेरी मां मेरे गुनहागारों को अब भी फांसी पर नहीं चढ़ा पाई है? मेरी मां तब से आज तलक रो रही है.

पता नहीं उन लोगों ने तुम्हारी जान पहले ली, या उससे पहले ही तुमने तय कर लिया होगा कि इस गंदी दुनिया में और दिन ठहरना मुनासिब नहीं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 06 Dec 2019,09:41 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT