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एक नहीं, कई बार तत्कालीन आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने वित्त मंत्रालय को सुझाव दिया कि इलेक्टोरल बॉन्ड को डिजिटल रखना चाहिए क्योंकि अगर इसे फिजिकल रखा गया तो मनी लॉन्ड्रिंग का खतरा रहेगा. हालांकि, वित्त मंत्रालय ने उर्जित पटेल की चिंताओं को खारिज कर दिया.
इलेक्टोरल बॉन्ड पर आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज को कुछ सूचनाएं मिली हैं. आरटीआई से मिली इन सूचनाओं को क्विंट ने भी देखा है...इससे पता चलता है कि 2 जनवरी, 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी होने से पहले पटेल ने सितंबर, 2017 में सरकार को दो बार लिखा था कि इसे फिजिकल फॉर्म में जारी न किया जाए.
उर्जित पटेल ने 14 सितंबर, 2017 के पत्र में लिखा कि, डिजिटल रूप में बॉन्ड का उपयोग मनी लॉन्ड्रिंग के लिए नहीं होगा, खर्च कम होगा और सबसे बड़ी बात पारदर्शी चुनावी फंडिंग का रास्ता खुलेगा, क्योंकि सिर्फ आरबीआई के पास सियासी चंदा देने वालों का रिकॉर्ड होगा.
पटेल ने जोर दिया कि डिजिटल रूप में चुनावी बांड "अधिक सुरक्षित" होगा और "छपाई के खर्च'' की भी बचत होगी.
तब के वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने 21 सितंबर 2017 के अपने पत्र में इलेक्ट्रॉनिक रूप में चुनावी बांड जारी करने को लेकर उर्जित पटेल के सुझाव को खारिज कर दिया.
गर्ग ने लिखा कि सरकार चाहती है इलेक्टोरल बॉन्ड फिजिकल फॉर्म में ही होना चाहिए.
27 सितंबर 2017 को उर्जित पटेल ने एक बार फिर सरकार को चिट्ठी लिखी. इस बार उन्होंने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली से कहा कि चुनावी बॉन्ड को फिजिकल फॉर्म में जारी करने से मनी लॉन्ड्रिंग का खतरा रहेगा.
उर्जित पटेल ने चंदा देनेवालों की पहचान को लेकर वित्त मंत्रालय की चिंता पर कहा कि चूंकि चुनावी बॉन्ड को डिजिटल रूप में जारी करने पर ये पहचान जाहिर होने का खतरा भी नहीं रहेगा, खासकर तब जब चंदा देने और लेने वाले का पता सिर्फ आरबीआई को होगा.
कानून मंत्रालय की तरह आरबीआई ने भी जोर दिया कि फिजिकल फॉर्म में चुनावी बॉन्ड जारी करने में समस्या ये है कि ये कई हाथों से होते हुए राजनीतिक पार्टी तक पहुंच सकता है. हो सकता है कि पता ही न चले कि चंदा असल में किसने दिया. डोनर और पार्टी का नाम छिपाने के चक्कर में ऐसा भी हो सकता है कि जिन लोगों से गुजर कर पैसा पार्टी के पास पहुंचा है, उनका नाम हमेशा के लिए गुप्त रह जाए. इससे इस पूरी स्कीम में धोखाधड़ी होने की आशंका रहेगी.
वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने 5 अक्टूबर 2017 के अपने पत्र में सरकार के रुख को दोहराते हुए कहा कि चुनावी बॉन्ड फिजिकल फॉर्म में ही जारी किए जाएंगे.
सरकार के जवाब से निराश आरबीआई ने इस मामले को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया. 18 अक्टूबर, 2017 को एक आंतरिक बैठक की फाइल नोटिंग से पता चलता है कि आरबीआई ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया था कि "यदि सरकार एसबीआई के माध्यम से फिजिकल फॉर्म में चुनावी बॉन्ड जारी करने का निर्णय लेती है, तो बैंक को इसे होने देना चाहिए."
आरबीआई के पीछे हटने को सहमति के रूप में लिया गया. गर्ग ने एक फाइल नोटिंग में कहा, "आरबीआई ने अप्रत्यक्ष रूप से एसबीआई द्वारा जारी किए जाने वाले चुनावी बॉन्ड के लिए सहमति व्यक्त की है. अब वित्त मंत्री इसे अपने मंजूरी दे सकते हैं.
आरबीआई से चुनाव आयोग और कानून मंत्रालय तक, यानी चुनावी बॉन्ड से जुड़े हर संस्थान ने इसे जारी करने के सरकार के तरीके पर आपत्ति जताई. सवाल ये है कि राजनीतिक चंदा देने वाले व्यक्ति की पहचान को गुप्ता रखना इतना अहम क्यों था कि सरकार ने मनी लॉन्ड्रिंग के खतरे को नजरअंदाज कर दिया?
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