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सफेद कागज पर खिंची उनके ब्रश की आड़ी-तिरछी लकीरें दशकों तक देश के आम आदमी की तकलीफों की नुमाइंदगी करती रही, सिस्टम की विसंगतियों और पॉलिटिक्स के पाखंड पर तंज कसती रही, देश के लाखों लोगों के चेहरों पर मुस्कुराहट का सबब बनती रही. कोई नेता-अभिनेता, मंत्री-संतरी उनकी नजर से नहीं बच पाया. उनके कार्टून में बरसों आगे की दूरदर्शिता झलकती थी.
मैं बात कर रहा हूं देश के ‘कॉमन मैन’ और बेहतरीन कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण की. आज से 26 साल पहले ही लक्ष्मण ने पद्मावत फिल्म पर करणी सेना की गुंडागर्दी और सेंसर बोर्ड की बेबसी को देख लिया था. तभी तो उन्होंने साल 1993 में ही ये कार्टून बना डाला. पद्मावत विवाद के वक्त ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में छपा ये कार्टून सोशल मीडिया पर छाया रहा.
इस कार्टून में लक्ष्मण व्यंग्य कर रहे हैं कि कोई फिल्म भले ही सामाजिक मूल्य और प्रगतिशील विचारों को बढ़ावा देती हो, लेकिन पब्लिक स्क्रीनिंग के लिए सेंसर बोर्ड की नहीं सियासी पार्टियों या ‘करणी सेनाओं’ की इजाजत लेनी पड़ती है.
हैरानी की बात है कि 25 साल बाद हालात सुधरने के बजाए बिगड़े ही हैं.
1951 में लक्ष्मण ने पॉलिटिकल कार्टूनिस्ट के तौर पर करियर की शुरुआत मुंबई में ‘फ्री प्रेस जनरल’ से की थी जहां पूर्व शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे उनके साथी कार्टूनिस्ट थे. उसके बाद लक्ष्मण ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ से जुड़े और 50 साल से भी ज्यादा वहां काम किया. टाइम्स के फ्रंट पेज पर उनका पॉकेट कार्टून ‘You Said It’ दशकों तक आम आदमी की नजर से सिस्टम की पोल खोलता रहा.
‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने ‘You Said It’ के कई संकलन प्रकाशित किए जिनके पन्ने पलटने से लगता है कि आपने भारत के राजनीतिक इतिहास की कोई किताब पढ़ डाली.
26 जनवरी, 2015 को आर के लक्ष्मण ने पुणे के दीनानाथ मंगेश्कर अस्पताल में आखिरी सांस ली थी. उनके देहांत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश भर ने शोक जताया था.
लक्ष्मण आप आपने कार्टूनों के जरिये हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे.
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