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बुधवार 17 अगस्त को गृह मंत्रालय ने साफ किया कि रोहिंग्या रिफ्यूजी (Rohingya Refugee) जो दिल्ली (Delhi) में रहते हैं उन्हें EWS फ्लैट नहीं दिया जाएगा...इससे पहले शहरी आवास और विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने ट्वीट करके कहा था कि दिल्ली में जो रोहिंग्या रह रहे हैं उन्हें बकरवाला में EWS फ्लैट में शिफ्ट किया जाएगा.
गृह मंत्रालय ने अपनी सफाई में कहा कि उसने दिल्ली सरकार को कहा है कि वो इस बात को सुनिश्चित करें कि रोहिंग्या अभी जहां रह रहे हैं वो वहीं रहें क्योंकि उनको उनके वतन भेजने के लिए विदेश मंत्रालय के जरिए पहले से ही कोशिशें शुरू हो चुकी हैं’
रोहिंग्या मुद्दे पर केंद्र के इस रुख के एक दिन बाद – The Quint ने मदनपुर खादर स्थित रोहिंग्या कैंप का जायजा लिया. यहां 255 लोग रहते हैं जिसमें 100 बच्चे भी शामिल हैं.
हालांकि वतन वापस भेजे जाने की तलवार लंबे वक्त से उनके सिर पर लटक रही थी लेकिन अब आधिकारिक तौर पर सफाई आ जाने के बाद उनकी चिंताएं कई गुना बढ़ गई हैं.
कबीर अपनी शर्ट के पॉकेट में UNHCR रिफ्यूजी कार्ड रखना कभी नहीं भूलते हैं. डिटेंशन कैंप में फेंके जाने का डर या फिर वापस म्यांमार भेजने का डर उन्हें पूरे दिन सताता रहता है. वो पूछते हैं. “ मैं शरणार्थी हूं. मेरे पास UNHCR का रिफ्यूजी कार्ड है, इसके साथ ही ‘लंबे समय का वीजा भी’ ..मैं कैसे अवैध हो सकता हूं?”
लंबी अवधि के वीजा के लिए रिफ्यूजी कैंप में सबलोग “लॉन्ग वीजा” शब्द का इस्तेमाल करते हैं. दिल्ली के अलग-अलग जगहों पर रहने वाले रोहिंग्या रिफ्यूजियों को ये वीजा जारी किया गया है. इसलिए जब उन्हें कोई घुसपैठिया कहता है तो वो इस बात का जोरशोर से प्रतिरोध करते हैं.
वहीं एक और रोहिंग्या रिफ्यूजी सबर क्यू मिन (जो दिल्ली में रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव चलाते हैं) ने कहा, “ हमारे लिए सोने की जगह नहीं है, नाली और साफ-सफाई का इंतजाम नहीं है, हमें कोई मेडिकल सुविधा नहीं मिली हुई है..ये सब मुहैया कराने की जगह हमें भारत सरकार वापस म्यांमार भेजना चाहती है जहां हमारा नरसंहार किया जाता है."
दिल्ली में रहने वाले एक रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद सलीमुल्लाह ने 2017 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर जम्मू की जेल में बंद रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार वापस भेजने पर रोक लगाने की मांग की थी. अप्रैल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया. तबके CJI शरद अरविंद बोबडे ने कहा था,
अब अपनी पत्नी और बच्चों के साथ मदनपुर खादर कैंप में रहने वाले सलीमुल्लाह डिटेंशन कैंप में भेजे जाने की बात पर कहते हैं,“शरणार्थी कैंप किसी जेल से कम नहीं है." वो कहते हैं, “कृपया इस जगह को देखिए. हम यहीं रहते हैं, खाते हैं, नहाते हैं और सोते हैं...सब इस छोटे से कमरे में. इस शिविर में रहने वाले हर परिवार की हालत ऐसी ही है. इस अस्थायी कैंप में सबसे जरूरी सुविधा साफ टॉयलेट और पीने का साफ पानी भी नहीं मिलता है."
35 साल की तस्लीमा जो अपने दो बच्चों के साथ रहती हैं वो कहती हैं, “यहां कोई टॉयलेट नहीं हैं...हमें खुले खेतों की तरफ जाना पड़ता है. रात को भी ..जबकि उधर जाने में बहुत खतरा है. लेकिन कोई और विकल्प नहीं है.”
कैंप में रहने के दौरान तमाम मुश्किलों के बावजूद एक बात जो सबसे ज्यादा लोगों को चिंतित करती है वो यह है कि अगर उन्हें डिटेंशन कैंप भेजा गया तो फिर उनके बच्च स्कूल यानि पढ़ाई से मरहूम हो जाएंगे. सलीमुल्लाह कहते हैं “हालात यहां भी खराब हैं लेकिन कम से कम हमारे बच्चे नजदीकी सरकारी स्कूल में पढ़ने तो जाते हैं. इस तरह से हमें उम्मीद है कि कल उनकी जिंदगी कुछ बेहतर हो सकती है लेकिन अगर हमें डिटेंशन कैंप में भेजा जाएगा तो फिर हमारे बच्चे कहां पढ़ेंगे.
साल 2012 में रबी आलम सिर्फ 6 साल के थे जब म्यांमार से वो भारत आए. अभी वो दसवीं में पढ़ता है और डॉक्टर बनना चाहता है. वो कहते हैं “ मैं नहीं जानता कि ये होगा या नहीं लेकिन मैं कोशिश जरूर करना चाहता हूं,”. आलम की तरह कई और बच्चे कैंप में हैं जिनकी कुछ ना कुछ हसरते हैं और वो डिटेंशन कैंप जाना नहीं चाहते.
गृह मंत्रालय ने अपने बयान में बुधवार को इस बात का भी दावा किया कि दिल्ली सरकार ने रोहिंग्या को किसी नई जगह पर बसाने का प्रस्ताव दिया था. आम आदमी पार्टी और बीजेपी में सियासी टसल इस बात को लेकर शुरु होते ही आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि गृह मंत्रालय ने दिल्ली की सरकार को इस मामले में संज्ञान में नहीं रखा.
वहीं दिल्ली सरकार ने केंद्र पर आरोप लगाया कि वो चोरी छिपे तौर पर रोहिंग्या को दिल्ली में स्थायी तौर पर बसाना चाहती है.
दिल्ली सरकार में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीट कर कहा कि “ केंद्र की कोशिशों का जब दिल्ली सरकार और AAP ने विरोध किया तो अब उल्टे केंद्र सरकार पूरा आरोप दिल्ली सरकार के मत्थे मढना चाहती है. जबकि यह एक तथ्य है कि केंद्र सरकार चोरी छिपे रोहिंग्या को दिल्ली में स्थायी रूप से बसाना चाहती है.
दिल्ली में बीजेपी और AAP में इस मुद्दे पर जुबानी जंग तीखी हुई और इधर मदनपुर खादर में सलीमुल्ला समेत दूसरे रोहिंग्या रिफ्यूजियों की रातों की नींद उड़ी हुई है. एक दिन बाद The Quint, से सलीमुल्ला कहते हैं “ हमारी कोई गलती है नहीं लेकिन हम दो पार्टियों की लड़ाई में पिस रहे हैं.
पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली में रोहिंग्या शिविरों से आग की कम से कम सात घटनाएं हुई हैं. 2018 की भयानक गर्मी में आग लगने के बाद वो बेघर हो गए और फिर 2021 में आग लगने से वो सड़कों पर आ गए. ऐसी तमाम तकलीफों के बीच एक और बड़ी और अंतहीन तकलीफ है जिससे रिफ्यूजियों को बहुत ज्यादा दुख पहुंचता है ...वो है उनको ‘खतरा’ बताया जाना.
कबीर कहते हैं , ‘शहर में जब भी कोई सांप्रदायिक तनाव बढ़ता है तो फिर अक्सर इसे गलत तरीके से रोहिंग्या के साथ जोड़ दिया जाता है’. इसका सबसे ताजा उदाहरण है दिल्ली के जहांगीरपुरी में अप्रैल में हुई सांप्रदायिक हिंसा .
कबीर कहते हैं, “अगर शहर के किसी भी हिस्से में कोई घटना होती है, चाहे वह बड़ी हो या छोटी, लोग हम (रोहिंग्या) पर उंगली उठाने लगते हैं. जब जहांगीरपुरी हिंसा हुई, तो उन्होंने हमें फिर से दोषी ठहराया. मैंने तब तक जहांगीरपुरी के बारे में कभी नहीं सुना था. मैं वहां कभी नहीं गया, हममें से कोई वहां रहा भी नहीं. लेकिन हर अपराध से हमें जोड़ा जाता रहेगा. हम अपराधी नहीं हैं.
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