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Zee News रोहित रंजन:रायपुर और UP पुलिस में किसने कायदा तोड़ा?क्या कहता है कानून?

एक ही व्यक्ति को दो राज्यों की पुलिस गिरफ्तार करने पहुंचे तो कौन से कानून लागू होंगे?

मेखला सरन
भारत
Updated:
<div class="paragraphs"><p>जी न्यूज एंकर रोहित रंजन</p></div>
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जी न्यूज एंकर रोहित रंजन

(फोटोः ट्विटर)

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भारत में एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य में जाकर किसी शख्स को गिरफ्तार करने के लिए आम तौर पर जाती रहती है लेकिन जिस तरह यूपी पुलिस ने इस बार दूसरे राज्य की पुलिस के साथ अपना टसल खड़ा कर दिया वो बहुत सामान्य बात नहीं है. मगंलवार 5 जुलाई को छत्तीसगढ़ पुलिस एक टीवी न्यूज एंकर रोहित रंजन को गिरफ्तार करने इंदिरापुरम स्थित उनके घर पहुंची. खबरों के मुताबिक पुलिस के पास अरेस्ट वारंट था लेकिन गाजियाबाद , नोएडा पुलिस के पास ऐसा कुछ नहीं था.

जब छत्तीसगढ़ पुलिस रोहित रंजन के इंदिरापुरम स्थित घर पर सुबह 5.30 मिनट पर पहुंची तो रोहित रंजन ने यूपी पुलिस, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टैग करते हुए ट्वीट कर दिया. इसके बाद गाजियाबाद पुलिस रोहित के पास पहुंची. कुछ ही घंटो के बाद सुबह करीब 8 बजे नोएडा पुलिस भी आ गई. पुलिस टीम में आपस में कुछ बकझक हुई लेकिन नोएडा पुलिस रोहित रंजन को अपने साथ ले गई.

12 घंटे के बाद नोएडा पुलिस ने बताया कि उसने रोहित रंजन को गिरफ्तार किया है और बाद में उसी रात रोहित रंजन को बेल पर रिहा कर दिया गया.

लेकिन आखिर हुआ क्या था ?

रोहित रंजन के खिलाफ रायपुर में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ गुमराह करने वाला वीडियो क्लिप चलाने को लेकर भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 153 ए (अलग अलग समूहों में दुश्मनी को बढ़ावा देने) , 295A ( जानबुझकर किसी की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ करने की कार्रवाई), 467 (जालसाजी), 469 ( मान सम्मान को चोट पहुंचाने के लिए फर्जीवाड़ा), 504 (इरादतन अपमान) में मामला दर्ज किया गया था.

PTI ने रायपुर पुलिस के बिना किसी अधिकारी का नाम लिए बताया था कि:

हमने रायपुर के सिविल लाइंस थाने में रोहित रंजन के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया है. हमारे पास गिरफ्तारी वारंट और अदालत का आदेश था. इसे लेकर हम सुबह यहां आए थे लेकिन 12 घंटे बाद भी यहां (गाजियाबाद और नोएडा) की पुलिस हमें रोहित रंजन के ठिकाने की जानकारी नहीं दे रही है.

इस बीच, हालांकि, रोहित रंजन ने सीएम और यूपी पुलिस को टैग करते हुए हिंदी में ट्वीट किया: "छत्तीसगढ़ पुलिस स्थानीय पुलिस को सूचित किए बिना मुझे गिरफ्तार करने के लिए मेरे घर के बाहर खड़ी है. क्या यह कानूनी है?

रोहित रंजन के ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए रायपुर पुलिस ने कहा था :

सूचित करने के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है. फिर भी, उन्हें सूचित किया जाता है, पुलिस टीम ने आपको अदालत का गिरफ्तारी वारंट दिखाया है. आपको वास्तव में सहयोग करना चाहिए, जांच में शामिल होना चाहिए और अपना बचाव का पक्ष अदालत में रखना चाहिए.

वहीं नोएडा पुलिस ने अपने रोल के बारे में PTI को बताया:

''जी न्यूज के एंकर रोहित रंजन को मंगलवार सुबह नोएडा सेक्टर -20 पुलिस स्टेशन की एक टीम ने उनके ही चैनल की शिकायत पर आईपीसी 505 (सार्वजनिक शरारत) के तहत दर्ज प्राथमिकी के संबंध में पूछताछ के लिए उनके घर से उठाया था. 1 जुलाई को अपने शो के दौरान रोहित रंजन ने एक वीडियो के साथ खिलवाड़ किया था और उसे चलाया था."

इसके अलावा, PTI ने नोएडा पुलिस का हवाला देते हुए एक बयान में कहा कि रोहित रंजन को उनके गाजियाबाद स्थित घर से आईपीसी 505 (2) (समूहों के बीच दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना पैदा करने या बढ़ावा देने वाले बयान) के तहत दर्ज एक मामले की जांच के तहत गिरफ्तार किया गया था.

रायपुर के एक पुलिस अधिकारी ने हालांकि, पीटीआई को बताया कि उन्होंने रोहित रंजन के खिलाफ जिन धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है, वे नोएडा पुलिस की तुलना में ज्यादा संगीन हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि गाजियाबाद पुलिस ने रोहित रंजन को उनके घर से दूर ले जाकर कानूनी प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया और फिर कहा कि उन्हें नोएडा पुलिस ने हिरासत में लिया है.

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एक अजीब मामला

यदि तथ्य यह है कि उनके अपने चैनल (जैसा कि नोएडा पुलिस ने बताया है) ने रोहित रंजन के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी कि एक शो के दौरान रोहित रंजन ने कुछ गलत चीजें प्रसारित की थी, यह काफी अजीब नहीं लगता है, इस बात को बताकर रायपुर पुलिस को कार्रवाई करने से रोका गया. उनकी गिरफ्तारी नोएडा पुलिस ने सिर्फ इसलिए की कि वो रोहित रंजन को मामूली धाराओं में हिरासत में ले सकती है.

कानूनी तौर पर, अगर गिरफ्तारी वारंट के मुताबिक हो रही है, लेकिन एक अलग अधिकार क्षेत्र में जहां से वारंट जारी किया गया था, तो दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 79 में इस बारे में की जाने वाली प्रक्रिया की जानकारी दी गई है.

यह प्रक्रिया अंतरराज्यीय गिरफ्तारी पर भी लागू होगी, और उस पुलिस स्टेशन के कार्यकारी मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी से इजाजत हासिल करना शामिल है जिसके अधिकार क्षेत्र में गिरफ्तारी की गई है.

हालांकि, धारा 79 (3) यह भी कहती है, "जब भी यह मानने का कारण है कि मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी, जिसके स्थानीय अधिकार क्षेत्र में वारंट का पालन होना है, उनसे समर्थन लेने में देरी हो रही हो तो पुलिस अधिकारी बिना स्थानीय मजिस्ट्रेट के निर्देश के भी वारंट के पालन करने के लिए कार्रवाई कर सकते हैं.

इसका मतलब यह है कि अगर गिरफ्तारी वारंट को अंजाम देने वाले पुलिस अधिकारी के पास समय नहीं है कि वो मजिस्ट्रेट या स्थानीय क्षेत्राधिकार के पुलिस अधिकारी का समर्थन मांगे, तो वे उस चरण को छोड़ सकते हैं. हालांकि, उन्हें गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना चाहिए.

हालांकि, रोहित रंजन के मामले में रायपुर पुलिस कभी भी उन्हें गिरफ्तार करने के करीब पहुंच नहीं पाई. ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें गाजियाबाद पुलिस ने रोका था, जबकि नोएडा पुलिस ने हंगामा किया और रोहित रंजन को अपने साथ ले गई.

यह भी एक समस्या है, क्योंकि भले ही सीआरपीसी स्पष्ट रूप से यह नहीं बताता है कि राज्य पुलिस बलों से सामान्य तौर पर ये उम्मीद की जाती है कि वे एक-दूसरे का समर्थन और सहायता करेंगे.. वास्तव में धारा 79 (2) उस अधिकार क्षेत्र के मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी के एंडोर्समेंट के बारे में बात करती है, लेकिन यह भी कहती है कि "स्थानीय पुलिस, यदि आवश्यक हो तो गिरफ्तारी में सहायता करेगी ".

अंतरराज्यीय गिरफ्तारी प्रक्रियाओं को देखने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने एक दो सदस्यीय समिति बनाई थी. इसने अन्य बातों के अलावा सुझाव दिया था कि दूसरे राज्य से आने वाले अधिकारी को अपनी यात्रा के बारे में संबंधित पुलिस स्टेशन को बताना चाहिए और संबंधित एसएचओ को कानूनी जानकारी देनी चाहिए, उन्हें सहायता करनी चाहिए.

यह देखते हुए कि रायपुर पुलिस ने दावा किया है कि यूपी पुलिस को गिरफ्तारी की सूचना उन्होंने दी थी, यह साफ नहीं है कि यूपी पुलिस ने थोड़ी देर बाद ही रोहित रंजन को एक मामूली, जमानती धारा के तहत गिरफ्तार करने की समझदारी क्यों दिखाई ?

ऐसे रेयर मामले को देखते हुए रायपुर पुलिस के पास अब एकमात्र विकल्प (वारंट लागू करने के लिए) बचा था कि रोहित रंजन की जमानत पर रिहाई का इंतजार करना. ऐसा इसलिए है क्योंकि वारंट तब तक लागू रहता है जब तक कि इसे जारी करने वाले न्यायालय के आदेश पर कार्रवाई नहीं हो जाए या फिर कोर्ट इसे रद्द नहीं कर दे. लेकिन रायपुर पुलिस ने भी उस विकल्प का इस्तेमाल कभी नहीं किया.

क्या अंतरराज्यीय गिरफ्तारियां ठीक हैं ?

हालांकि, यह बताना भी आवश्यक है कि भले ही सीआरपीसी और दूसरे हालात अंतरराज्यीय गिरफ्तारी का रास्ता दिखाती है, लेकिन आम तौर पर उन्हें कानून में तरजीह नहीं दी जाती.

ऐसा इसलिए है क्योंकि इस तरह की गिरफ्तारी का राजनीतिक फायदे के लिए विभिन्न राज्यों में राजनीतिक दल आसानी से दुरुपयोग कर सकते हैं. इस प्रकार पुलिस की शक्ति को उस राज्य तक सीमित करना समझ में आता है जिस राज्य की वो पुलिस है. खासकर तब जब कोई ऐसा मामला नहीं हो जहां आरोपी ने अपराध करने के लिए राज्य की सीमा को पार कर ली है.

रिया चक्रवर्ती बनाम बिहार राज्य में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस जांच की इस राजनीतिक अनिश्चितता की ओर इशारा किया था और सीबीआई जांच के पक्ष में फैसला सुनाया था जो कि किसी राज्य सरकारों से नियंत्रित नहीं होती है. "

ऐसा करते हुए अदालत ने यह भी संज्ञान में लिया था कि महाराष्ट्र और बिहार सरकारें "एक-दूसरे के खिलाफ राजनीतिक हस्तक्षेप के तीखे आरोप लगा रही हैं, इससे जांच की कानून वैधता पर सवाल आ गए हैं "

इसी तरह की एक और घटना में, पंजाब की पूर्व कांग्रेस सरकार पर बीजेपी ने आरोप लगाया था कि गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी को जबरन वसूली के एक मामले में पंजाब की रोपड़ जेल में दो साल से अधिक समय तक रखकर पंजाब सरकार अपराधी को बचाने का काम कर रही है.

यूपी पुलिस ने लंबे समय से मुख्तार अंसारी की हिरासत मांग रही थी, क्योंकि अंसारी के खिलाफ कई मामले यूपी पुलिस स्टेशनों में दर्ज थे.तब बीजेपी ने तत्कालीन पंजाब सरकार पर अंसारी को कथित रूप से "वीआईपी ट्रीटमेंट " देने का आरोप भी लगाया था.

सुप्रीम कोर्ट ने आखिर में मार्च 2021 में पंजाब सरकार को आदेश दिया कि वो मुख्तार अंसारी को उत्तर प्रदेश पुलिस की हिरासत में सौंपे. यहां तक कि अंसारी ने कथित तौर पर दावा किया था कि यूपी में उनकी जान को खतरा था, तब भी कोर्ट ने उनके खिलाफ आदेश दिया.

इस बीच, रोहित रंजन ने अपने खिलाफ दर्ज कई एफआईआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 10 Jul 2022,04:06 PM IST

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