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रोहित वेमुला के दोस्त रामजी ने अब संघर्ष का नया रास्ता चुना है

वेमुला की मौत के पांच साल बाद, उनके दोस्त, रामजी, दूसरों को अंबेडकर के सिद्धांतों के बारे में शिक्षित कर रहे हैं.

निखिला हेनरी
भारत
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(फोटो: क्विंट हिंदी)
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(फोटो: क्विंट हिंदी)

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हैदराबाद यूनिवर्सिटी के 26 साल के दलित छात्र रोहित वेमुला की 17 जनवरी 2016 को जब आत्महत्या से मौत हुई, तो देश भर के उच्च शिक्षा संस्थानों में जातिवाद के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए. हालांकि इन प्रदर्शनों ने उन लोगों का दुख छुपा लिया जिनकी जिंदगी को रोहित ने प्रभावित किया था.

न्याय की लड़ाई में शामिल होने के कारण शोक न मना पाने वाले उनके कुछ दोस्तों ने उस समय असहज चुप्पी साध ली थी. बाद में ज्यादातर सार्वजनिक जीवन में लौट आए, लेकिन वेमुला के दोस्त चिंतागदा रामजी पांच साल के लंबे समय तक मीडिया के सवालों और लोगों के सामने आने से परहेज करते रहे. एक दलित, रामजी, 2016 में हैदराबाद यूनिवर्सिटी के अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (ASA) के अध्यक्ष थे. ASA की स्थापना 1993 में हुई थी. वेमुला ने अपने सुसाइड नोट, जिसमें वो अमिट लाइन “मेरा जन्म लेना ही भयानक हादसा है” लिखी थी, में उनका मार्मिक जिक्र किया है: “मुझे रामजी को 40 हजार लौटाने हैं. उन्होंने कभी वापस नहीं मांगे. लेकिन कृपया ये उन्हें जरूर लौटा दें...”

रोहित वेमुला की पांचवीं पुण्य तिथि पर, 34 साल के रामजी ने क्विंट से वेमुला के साथ अपनी दोस्ती, सामंती राजनीति और जातिगत भेदभाव के खिलाफ दमघोटू संघर्ष के बारे में बताया. जिस समय उन्हें वेमुला का शव मिला, उसके बारे में रामजी ने कहा “मैं भावशून्य हो गया था, मैं कुछ नहीं कर सका.”

रोहित वेमुला ने हैदराबाद यूनिवर्सिटी के हॉस्टल से निकाले जाने के परिणामस्वरूप अपनी जान दे दी थी. 3 जनवरी, 2016 को, पांच दलित छात्र नेताओं- दोंता प्रशांत, शेषैया चेमुडुगुंटा, सनकन्ना वेलपुला, विजय कुमार पेदापुडी और रोहित वेमुला को कथित तौर पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) के दबाव में हैदराबाद यूनिवर्सिटी के हॉस्टल से निकाल दिया गया था. आरोप है कि MHRD ने सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से जुड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कुछ नेताओं के साथ उनके कथित तकरार को लेकर उन्हें दंडित करने का फैसला किया था.

रामजी का बयान ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहे समुदाय के छात्रों, उनके दोस्त और परिवार पर वेमुला की आत्महत्या के विनाशकारी प्रभाव को सामने लाता है- कुछ डिप्रेशन में चले गए, दूसरों ने खुद को अलग कर लिया, फिर भी कुछ लोग उनकी यादों को जिंदा रखने के लिए संघर्ष करते रहे.

अपाहिज बना देने वाले दुख का ब्योरा

2013 में एक यूनिवर्सिटी क्रिकेट मैच के दौरान 26 साल के रामजी की मुलाकात वेमुला से हुई थी, जो उनसे तीन साल छोटे थे. युवा, उत्साही और विचारों से भरे, दोनों जल्द ही अच्छे दोस्त बन गए. रामजी ने कहा, “वो मेरे पास सलाह लेने आते थे. हम भाई जैसे थे.”

रामजी (फोटो: निखिला हेनरी)

उस समय दोनों कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के सदस्य थे और जल्द ही दोस्ती एक राजनीतिक गठबंधन बन गई. दोनों ने कम्युनिस्ट पार्टी छोड़ दी और 2014 में ASA में शामिल हो गए.

इस बात को याद करते हुए रामजी कहते हैं, “हमने महसूस किया कि कैंपस में दलितों की अपनी आवाज होनी चाहिए और न तो एबीवीपी और न ही एएफआई इस मामले में वास्तव में दलित छात्रों की मदद कर सकते हैं. हमने महसूस किया कि ASA, एक पार्टी जिसकी स्थापना दलित छात्रों ने की थी, को अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहिए और दलितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए छात्र संघ में सत्ता पर काबिज होना चाहिए.”

उनके नेतृत्व में अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने हाशिए पर पड़े छात्रों को एकजुट करने के लिए अभियान चलाया. उनकी मेहनत रंग लाई और ASA के नेतत्व वाला पैनल 2014 में छात्र संघ चुनाव जीत गया. हैदराबाद यूनिवर्सिटी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था. उनकी छात्रों तक पहुंच के कारण उस साल किसी भी दलित छात्र ने आत्महत्या नहीं की. 2008 और 2013 के बीच कैंपस में चार दलित छात्रों की आत्महत्या के कारण मौत हुई थी.

हालांकि दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों से मुकाबला करते हुए अंबेडकरवादी छात्र अलग-थलग पड़ गए थे. वेमुला ने एबीवीपी छात्र नेताओं के द्वारा निशाना बनाए जाने की शिकायत कई बार रामजी से की थी. रामजी ने आरोप लगाया कि “कैंपस में वो उससे झगड़ा करते थे और सोशल मीडिया पर उसे परेशान करते थे.”

रामजी ने कहा कि केंद्र में 2014 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद और ज्यादा परेशान किया जाने लगा. 2015 में एबीवीपी नेताओं ने वेमुला और चार अन्य ASA नेताओं पर मारपीट का आरोप लगाया था. घटना की लंबे समय तक चली दो प्रशासनिक जांच के बाद, पांचों को हॉस्टल से निकाल दिया गया, उनके कैंपस में सार्वजनिक जगहों पर इकट्ठा होने पर रोक लगा दी गई और छात्र संघ चुनावों में हिस्सा नहीं लेने को कहा गया. ASA ने सामाजिक बहिष्कार का आरोप लगाया.

रामजी ने कहा, “ जब प्रशांत और रोहित को हॉस्टल खाली करने के लिए मजबूर किया गया तो उन्होंने विरोध में यूनिवर्सिटी के शॉपिंग कॉम्प्लेक्स पर धरना देने का फैसला किया. ये निष्कासन पर एक फौरन प्रतिक्रिया थी और ASA अध्यक्ष के तौर पर मैंने उनके फैसले का समर्थन किया था.”

छात्रों ने अपने सामाजिक बहिष्कार को दिखाने के लिए विरोध प्रदर्शन की जगह का नाम वेलिवदा (तेलुगु में दलित बस्ती) रखा और कड़कड़ाती ठंड में 14 दिनों तक वहीं सोए. इस दौरान ज्यादातर समय रामजी वेमुला के साथ ही रहे और उन्हें भरोसा दिलाते रहे कि संघर्ष जारी रहेगा. रामजी ने कहा कि “प्रदर्शन के दौरान रोहित परेशान होने लगे थे. इसके बावजूद वो मेरे पास आए और शेषु (शेषैया) का समर्थन करने को कहा जो उस समय बहुत ही भावुक थे, क्योंकि वाइस चांसलर ने सुलह के लिए बातचीत करने से इनकार कर दिया था.”

वाइस चांसलर पोडिल अप्पा राव को वेमुला की मौत के बाद हुए प्रदर्शन के कारण दो महीने के लिए यूनिवर्सिटी छोड़नी पड़ी थी. लगातार विरोध के बीच वो 22 मार्च 2016 को काम पर लौटे. राव अब भी हैदराबाद यूनिवर्सिटी के वीसी हैं.

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अपनी जान देने के एक दिन पहले वेमुला चुपचाप धरना स्थल से चले गए, तब रामजी वहां नहीं थे. वो अपने चौथे पीएचडी पाठ्यक्रम में व्यस्त थे. वो आज भी वहां नहीं होने का अफसोस करते हैं. आत्महत्या के बारे में सुनने के वक्त को याद करते हुए रामजी ने कहा “मैं अपराधबोध से भरा हुआ था.”

रामजी ने कहा, “मुझे लगा कि मेरी गलती के कारण वेमुला की मौत हुई है कि मैं उसके लिए वहां मौजूद नहीं था.” इस भावना के पीछे रामजी का अतीत भी एक बड़ा कारण है. उनकी बहन की भी 2008 में आत्महत्या से मौत हो गई थी.

एक दीवार पर रोहित वेमुला की तस्वीर(फोटो: निखिला हेनरी)

रामजी ने कहा, “मुझे महसूस हुआ था कि बहन की मौत मेरी गलती थी. जब रोहित की मौत हुई तो मुझे दूसरी बार ऐसा लगा कि मैं किसी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका.” राजनीतिक कर्तव्य के निजी त्रासदी के बीच में आने के कारण रामजी सामान्य नहीं रह सके. वो सार्वजनिक जीवन से दूर हो गए.

रामजी ने पुरानी बातों को याद करते हुए कहा, “2016 में मैं सिर्फ एक बार घर से बाहर निकला. वो जब मैं रोहित की मां राधिका वेमुला से मिलने गया. मैं सिर्फ उनके पास बैठा रहा, कुछ बोल नहीं सका.”

जल्द ही अवसाद जीने का एक हिस्सा हो गया और उन्होंने खुद को अलग-थलग कर लिया. इस दौरान विपक्षी पार्टियों का राजनीतिक समर्थन कम होने के बावजूद यूनिवर्सिटी के छात्र नेता आंदोलन को जारी रखने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे थे. चुपचाप रहने के बावजूद रामजी ने संघर्ष का दूसरा रास्ता अपनाया.

अंबेडकर की विरासत

रामजी के पिता सीएच दास 1986 से 1988 के बीच हैदराबाद यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र विभाग के छात्र थे. अपने पिता को याद करते हुए रामजी ने कहा कि उनके पिता ने जो समय वहां बिताया उस दौरान हर दिन उन्हें खाने के लिए संघर्ष करना पड़ता था, लेकिन वो एक पक्के छात्र नेता थे. रामजी के लिए उनकी एक ही सलाह थी. “पहले अपने पैरों पर खड़े हो जाओ, उसके बाद आप जो भी सेवा करना चाहो कर सकते हो.” मूल बात ये कि, किसी का प्रतिनिधित्व करने का कर्तव्य और किसी के जड़ों की सेवा करने से पहले खुद को संभालना होगा.

जब उसके पिता, एक सरकारी कर्मचारी, प्रदर्शन के बीच रामजी से मिलने आए तो उन्होंने कहा कि वो इसके लिए जितना चाहे उतना समय दे. “ऐसी चीजें होती रहती हैं'', उन्होंने मुझसे कहा. उन्होंने मुझसे कहा कि मैं जितना चाहे समय ले सकता हूं. मुझे पता ही नहीं था कि समय के साथ क्या करना है.”

जब देश के कई विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों के छात्र अपना अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन बना रहे थे, हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के ASA अध्यक्ष ने कैंपस से बाहर निकलने से इनकार कर दिया, यहां तक कि विशाखापट्टनम में अपने परिवार से मिलने से भी इनकार कर दिया. लेकिन हर साल रोहित शहादत दिन पर रामजी प्रदर्शनकारियों के साथ खड़े रहे, उनकी आंखों से आंसू बहते रहे, यहां तक कि उन्होंने इस बात का आभास भी नहीं होने दिया कि एक समय वो हैदराबाद में सबसे बड़े और सबसे पुराने दलित छात्र संगठन के अध्यक्ष थे. उन्होंने कहा “किसी को हमेशा के लिए खो देना... ये अलग है.”

उनके वैचारिक बंधन ने हालांकि रामजी को बढ़ते रहने का हौसला दिया और उन्हें वो बनाया जो वो आज हैं- दलित छात्रों की जिंदगी के लिए योगदान देने का इच्छुक एक शिक्षाविद.

“जब हमने ASA में शामिल होने का फैसला किया था, रोहित और मैं दोनों इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि ‘पढ़ाई-लिखाई, संगठित होना, आंदोलन करना...’ आगे का रास्ता है (डॉ अंबेडकर के शब्दों का एक अधिक लोकप्रिय क्रम जिसका ASA आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल करता है- ‘पढ़ाई-लिखाई, आंदोलन करना, संगठित होना’).”

उन्होंने कहा, “किसी व्यक्ति को पहले खुद को शिक्षित करना होगा, उसके बाद संगठित होकर किसी के अधिकारों के लिए आंदोलन करना होगा.” रोहित के जाने से दुख के दौर में रामजी ने इस सिद्धांत को अपनाया. रामजी ने अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया और सिर्फ अपने करीबी मित्रों से ही मिले. ऐसा भी समय आया जब उन्होंने खुद को इन सब से दूर होता पाया.

उन्होंने कहा, “मैं नहीं चाहता था कि ये मेरे साथ ऐसा हो. ये कभी भी सही नहीं था.” 2017 में पीएचडी थीसिस लिखना उनका एकमात्र लक्ष्य बन गया. 2018 में उन्हें इकोनॉमिक्स में पीएचडी से सम्मानित किया गया.

अंबेडकर के सिद्धांतों के लिए लड़ते थे ASA सदस्य(फोटो: निखिला हेनरी)

लड़ाई वहीं पर खत्म नहीं हुई. रामजी ने विशाखापट्टनम में एक निजी यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी कर ली. अब उनकी शादी हो चुकी है और उनका एक बेटा भी है, जिसका नाम उन्होंने बुद्ध के नाम पर रखा है. क्या निर्वाण का एक से अधिक रास्ता हो सकता है?

दो और लोग जिन्होंने न्याय के लिए कठिन रास्ता चुना वो हैं वेमुला के भाई राजा वेमुला जिन्होंने कानून की पढ़ाई की और आज एक पेशेवर वकील हैं और राधिका वेमुला, रोहित की मां जो देश में कई प्रदर्शन स्थलों पर भाषण देने के साथ कपड़े सिलाई कर अपना समय बिताती हैं.

रामजी ने कहा कि उन्होंने एक शैक्षणिक संस्थान में पढ़ाने का फैसला किया है, जहां वो दलित बच्चों की मदद कर सकें. उन्होंने कहा “मैं प्रतिबद्ध हूं.”

उन्होंने कहा कि आंदोलन पर वो नजदीकी से नजर बनाए रखते हैं. उन्होंने कहा, “मैं ये कभी नहीं कहूंगा की छात्र राजनीति बेकार की चीज है. मुझे लगता है कि ASA दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों के लिए एक विकल्प बना रहेगा और रोहित को याद रखा जाएगा.”

(निखिला हेनरी एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनसे @NikhilaHenry पर संपर्क किया जा सकता है.)

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Published: 17 Jan 2021,10:09 AM IST

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