Home News India ‘हमारी 60-70% मांगें मानी गई’:नई शिक्षा नीति पर राइट विंग का असर?
‘हमारी 60-70% मांगें मानी गई’:नई शिक्षा नीति पर राइट विंग का असर?
हिंदुत्व संगठनों की मांगें क्या थीं और नई नीति में उनकी कितनी मांगें मानी गईं?
अस्मिता नंदी
भारत
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हिंदुत्व संगठनों की मांगें क्या थीं और नई नीति में उनकी कितनी मांगें मानी गईं?
(फोटो: श्रुति माथुर/क्विंट)
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नई शिक्षा नीति 2020 पर आरएसएस का कितना प्रभाव है? हिंदुत्व संगठनों की मांगें क्या थीं और नई नीति में उनकी कितनी मांगें मानी गईं? विस्तार से इसे देखते हैं.
NEP 2020 में बदलाव जिससे हिंदुत्व संगठन खुश हैं
34 साल बाद देश को नई शिक्षा नीति मिली है और शिक्षा में सुधार के लिए काम करने वाले दक्षिणपंथी संगठन काफी खुश हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि नई नीति में उनकी बहुत सी बातें मान ली गई हैं. उनका दावा है कि अंतिम संस्करण में उनके ज़्यादातर सुझाव शामिल किए गए हैं.
NEP 2020 का स्वागत करते हुए हिंदुत्व संगठन भारतीय शिक्षण मंडल (बीएसएम) के प्रवक्ता केजी सुरेश ने कहा कि “ किसी न किसी रूप में हमारी 60-70% मांगों को शामिल किया गया है.
स्वायत्त होने का दावा करने वाले एक और दक्षिण पंथी संगठन शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास (एसएसयूएन), जिसके संस्थापक आरएसएस प्रचारक दीनानाथ बत्रा हैं, ने भी नई पॉलिसी में अपनी सिफारिशें शामिल करने के लिए जोर लगाया था.
संघ और उनसे जुड़े संगठनों के मुख्य प्रस्ताव जिन्हें एनईपी 2020 में जगह मिली है उन्हें यहां हम बता रहे हैं.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय से नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय करना-1985 में राजीव गांधी के शासनकाल में शिक्षा मंत्रालय का नाम बदलकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय कर दिया गया था. बीएसएम के केजी सुरेश ने कहा कि उन्होंने संस्कृति शब्द जोड़ने का सुझाव दिया था क्योंकि आजादी के बाद मंत्रालय का पहला नाम यही था। फिर भी हम खुश हैं कि नाम बदला गया है.
क्लास 5 तक मातृभाषा में शिक्षा- हिंदुत्व संगठनों ने मांग की थी कि उच्च शिक्षा में भी मातृ भाषा में पढ़ाई को अनिवार्य बनाया जाए, लेकिन कैबिनेट ने जिस नीति को मंज़ूरी दी है उसमें कहा गया है कि“जहां तक संभव हो, कम से कम पांचवीं क्लास तक, लेकिन बेहतर ये होगा कि क्लास 8 और उससे आगे तक भी हो, शिक्षा का माध्यम घर में बोली जाने वाली भाषा/मातृ भाषा/स्थानीय भाषा/क्षेत्रीय भाषा होगी.”
तीन भाषा नीति-दक्षिणपंथी संगठनों से अलग तीन भाषा नीति सभी राज्यों में हिंदी पढ़ाए जाने को अनिवार्य नहीं बनाती. जबकि 2019 के ड्राफ्ट में हिंदी और अंग्रेजी को दो भाषा के विषय के तौर पर ऱखना अनिवार्य किया गया था. नई नीति में कहा गया है कि“बच्चे जो तीन भाषाएं सीखेंगे वो राज्यों, क्षेत्रों और बेशक छात्रों की पसंद होंगे उस समय तक जबतक कि तीन में से दो भाषाएं भारतीय हों.”
बच्चों का संपूर्ण विकास-एजुकेशन सिस्टम में लचीलापन और वोकेशनल एजुकेशन को शामिल करना आरएसएस और उनकी सहयोगी संस्थाओं की शुरू से सोच रही है.
नेशनल रिसर्च फाउंडेशन-केजी सुरेश ने कहा“एक देश के तौर पर आगे बढ़ने के लिए रिसर्च पर ध्यान देना जरूरी है.”एनईपी के मुताबिक नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना आवश्यक है“विशेषज्ञों के तहत बेहतरीन रिसर्च के लिए पैसे जुटाने और यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में सक्रियता से रिसर्च शुरू करने के लिए”
बैठकें, सेमिनार, सिफारिशी रिपोर्ट:कैसे हिंदुत्व संगठनों ने अपनी बातें मनवाई
बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ कई बैठकें, कई सम्मेलन, फीडबैक सेमिनार और सिफारिशों वाली विस्तृत रिपोर्ट- कुछ इस तरह आरएसएस और उनकी सहयोगी संस्थाओं ने एक साथ मिलकर काम किया.
2016 में उस समय के मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने शिक्षा नीति पर संघ का पक्ष जानने के लिए विद्या भारती, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, भारतीय शिक्षण मंडल, संस्कृत भारती, शिक्षा संस्कित उत्थान न्यास सहित आरएसएस से जुड़ी संस्थानों के साथ बंद कमरे में बैठक की थी.
कोठारी ने कहा कि दीनानाथ बत्रा द्वारा स्थापित शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास (एसएसयूएन) ने शिक्षा नीति तैयार होने के बाद फीडबैक के लिए देश भर के 6,000 शिक्षाविदों के साथ 40 बड़े सेमिनारों और बैठकों का आयोजन किया था.
2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उस समय के मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर आरएसएस से जुड़े एक संगठन भारतीय शिक्षण मंडल के सम्मेलन में शामिल हुए थे जिसका विषय था “भारतीय एजुकेशन सिस्टम के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा और शैक्षणिक लक्ष्यों को पूरा करने और शिक्षा पर नियंत्रण दोनों के लिए बड़े बदलाव की योजना बनाना”
इस सम्मेलन में जिन विषयों पर चर्चा हुई उसमें मंत्रालय का नाम बदलना सबसे अहम विषय था. केजी सुरेश ने कहा कि हमने एकमत से मंत्रालय का नाम बदलने की मांग की थी. हमें लगता है कि नाम में बदलाव हमारी मांग के कारण किया गया है. जुलाई 2019 में इसी तरह का एक और सम्मेलन किया गया था.
2019 में एसएसयूएन ने ‘ज्ञान उत्सव 2076’ के नाम से एक सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, मौजूदा शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और बाबा रामदेव भी शामिल हुए थे. सम्मलेन में एसएसयूएन ने शिक्षा नीति को लेकर कई सुझाव दिए थे.
संघ से जुड़े संगठनों ने अपने सुझाव एनईपी तैयार करने वाली दो महत्वपूर्ण ड्राफ़्टिंग कमेटी-सुब्रह्मण्यम कमेटी और के कस्तुरीरंगन के नेतृत्व वाली दूसरी कमेटी को सौंपे थे.
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क्या RSS से जुड़े संगठनों की मांग पर सरकार को किसी तरह संतुलन बनाना पड़ा?
सरकार ने हिंदुत्व संगठनों की सभी मांगों को नहीं माना है या फिर उन्हें शामिल करने का दूसरा रास्ता खोज लिया है, तो क्या ये संगठन नई नीति से संतुष्ट हैं?
द क्विंट से बात करते हुए एसएसयूएन के महासचिव और बत्रा की जगह लेने वाले अतुल कोठारी ने कहा कि
द क्विंट से बात करते हे केजी सुरेश ने कहा कि
नई नीति को कस्तुरीरंगन के नेतृत्व वाली एक कमेटी ने तैयार किया और सरकार को सौंपा है.
कमेटी के एक सदस्य डॉ राम शंकर कुरील ने कहा कि “कमेटी ने कई संगठनों और लोगों से सुझाव मांगे थे, खुले मंच से लोगों का फीडबैक लिया गया, शिक्षाविदों, संस्थानों के प्रमुखों, अपनी यूनिवर्सिटी और कॉलेज चलाने वाले धार्मिक संस्थानों के प्रमुखों सहित कई संस्थाओं से खुद ही बात की. इससे पहले सुब्रह्मण्यम कमेटी ने भी सुझाव इकट्ठा किए थे”
उन्होंने कुछ विशेष संगठनों के उनके सुझावों को मान लिए जाने के दावों को नकारते हुए कहा कि “कई संगठन शिक्षा नीति में शामिल अच्छी बातों का श्रेय लेने का दावा कर रहे हैं.”
क्या पाठ्यक्रम को फिर से तैयार करने में भी हिंदुत्व संगठनों की भूमिका होगी?
नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि “पाठ्यक्रम की विषय वस्तु को हर विषय में कम करके इसे बेहद बुनियादी चीजों पर केंद्रित किया जाएगा”
इसमें आगे कहा गया है कि “ शुरुआती स्तर से शुरू करके बाकी सभी स्तरों तक पाठ्यक्रम और शिक्षण शास्त्र को एक मजबूत भारतीय और स्थानीय संदर्भ देने की दृष्टि से फिर से तैयार किया जाएगा. इसके तहत संस्कृति, परंपराएं, विरासत, रीति-रिवाज, भाषा, दर्शन, भूगोल, प्राचीन और समकालीन ज्ञान, सामाजिक और वैज्ञानिक आवश्यकताएं, सीखने के स्वदेशी और पारंपरिक तरीके आदि सभी पक्ष शामिल होंगे जिससे शिक्षा यथासंभव रूप से हमारे छात्रों के लिए अधिकतम भरोसेमंद, प्रासंगिक, रोचक और प्रभावी बने.”
भारतीयकरण करने के एनईपी के रुख का स्वागत करते हुए केजी सुरेश ने कहा कि ये हमारे प्रस्तावों के चरित्र को सामने लाता है. यह पूछे जाने पर कि क्या उनका संगठन कई विषय-समितियों का हिस्सा रहा है, केजी सुरेश ने कहा कि नीति अपने अंतिम चरण में है. अगर हमसे पूछा जाता है तो हम जरूर नाम सुझाएंगे.
कस्तुरीरंगन कमेटी को दिए गए अपने प्रस्ताव में बीएसएम ने “करीकुलम फॉर आइडिया ऑफ इंडिया” का अलग अनुभाग बनाने सुझाव भी दिया था. इसके तहत कहा गया था कि
“अभी उत्तर प्रदेश में स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में राष्ट्र गौरव नाम की एक किताब पढ़ाई जाती है. एनईपी में शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर, भारत की परंपराओं, गर्व की बातें और भारतीय ज्ञान परंपराओं के मामलों के आधार पर आइडिया ऑफ भारत पर एक पाठ्यक्रम को एकीकृत करने के लिए सुझाव दिए गए हैं। इस बिंदु पर तत्काल काम करने की आवश्यकता है.”
2019 में अपने ज्ञान उत्सव संगोष्ठी के दौरान एसएसयूएन ने भी वैदिक गणित और भारतीय पारंपरिक ज्ञान तंत्र के सिद्धांत को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का सुझाव दिया था