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पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर मोदी सरकार 2.0 में विदेश मंत्री बनाए गए हैं. देश में कुछ ऐसे अफसर हैं जो दलीय राजनीति से परे हैं. एस जयशंकर उन्हीं में से एक हैं. सरकारें बदलती गईं लेकिन प्रधानमंत्रियों का एस जयशंकर पर भरोसा कम नहीं हुआ. एस जयशंकर की जितनी इज्जत यूपीए सरकार के दौरान थी, उतनी ही अहमियत मोदी सरकार के पहले चैप्टर में थी.
पिछले चार दशकों में सबसे लंबे समय तक विदेश सचिव के पद पर रहे जयशंकर ने देश की विदेश नीति को गढ़ने में अहम भूमिका निभाई है. इसी साल मार्च में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने जयशंकर को पद्मश्री से सम्मानित किया था. गुरुवार को जब अचानक खबर आई कि जयशंकर शपथ ग्रहण समारोह के लिए बुलाए गए हैं, तभी से चर्चा थी कि उन्हें विदेश मंत्री बनाया जा सकता है क्योंकि सुषमा स्वराज को शायद मंत्रिमंडल में जगह न मिले.
पिछले पांच सालों में पीएम मोदी की विदेश यात्राएं और कूटनीति की काफी चर्चा रही. परदे के पीछे एस जयशंकर ने उसमें अहम रोल अदा किया. जब डोकलाम सीमा विवाद को लेकर चीन से टेंशन बढ़ा तो वो एस जयशंकर ही थे, जिन्होंने बीजिंग से बातचीत की कमान संभाली.
उससे पहले 2007 में मनमोहन सरकार के समय अमेरिका से न्यूक्लीयर डील को संभालने वाली टीम के अहम सदस्य थे एस जयशंकर. इस डील को हकीकत बनाने में कई साल लगे थे और इसकी कामयाबी के पीछे जो बड़ा दिमाग था वो एस जयशंकर ही थे. कहते हैं 2013 में विदेश सचिव रंजन मथाई का कार्यकाल खत्म होने के बाद इस पद के लिए जयशंकर ही मनमोहन सिंह की पहली पसंद थे, लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की सलाह वरिष्ठता के आधार पर सुजाता सिंह को विदेश सचिव बनाया गया.
1977 बैच के भारतीय विदेश सेवा के अफसर 64 साल के एस जयशंकर चीन से लेकर रूस तक में भारत के राजदूत रह चुके हैं. जयशंकर श्रीलंका में भारतीय शांति सेना के प्रथम सचिव और राजनीतिक सलाहकार भी रहे.
दिल्ली के वायुसेना केंद्रीय विद्यालय से स्कूली शिक्षा लेने वाले जयशंकर ने डीयू के सेंट स्टीफन कॉलेज से पढ़ाई की. पॉलिटिकल साइंस में एमए और एमफिल किया. जयशंकर ने JNU से इंटरनेशनल रिलेशंस में पीएचडी भी की. न्यूक्लीयर डिप्लोमेसी में उन्होंने स्पेशल डिग्री भी हासिल की.
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