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सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने बुधवार, 18 अप्रैल से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए दायर की गयीं याचिकाओं पर सुनवाई करना शुरू कर दिया है. इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि अभी तक के सुनवाई में क्या-क्या हुआ?
डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ के समक्ष कहा कि अगर अदालत को भारत में विवाह समानता प्रदान करनी है, तो इसे सेम-सेक्स मैरिज पर रोक नहीं लगानी चाहिए. इसके बजाय "शारीरिक लैंगिकता और लिंग स्पेक्ट्रम के साथ दो सहमत वयस्कों" को विवाह का अधिकार प्रदान करें.
एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश डॉ. सिंघवी ने तर्क दिया कि "ऐसे व्यक्तियों के संयोजन की एक पूरी श्रृंखला है, जिनकी विशेष जैविक विशेषताएं हैं. वे केवल पुरुष और महिला नहीं है. एक श्रेणी" सेक्स "है और दूसरी श्रेणी" जेंडर "है. इसलिए एक पुरुष शरीर को महिला मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों में रंग सकता है, और इसके विपरीत भी संभव है."
वहीं, केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि जैविक लिंग एक व्यक्ति का लिंग है. उन्होंने कहा कि "सामाजिक संबंधों की स्वीकृति कभी भी कानून के निर्णयों पर निर्भर नहीं होती है. यह केवल भीतर से आती है. मेरा निवेदन यह है कि विशेष विवाह अधिनियम की विधायी मंशा पूरी तरह से जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच संबंध रही है."
हालांकि, एसजी मेहता ने असहमति जताई और कहा कि "जैविक मनुष्य का अर्थ है, जैविक मनुष्य, कोई धारणा नहीं है."
वहीं, CJI की टिप्पणी का खंडन करते हुए एसजी मेहता ने कहा कि...
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