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मयूर हेलिया को हर रात मुंबई (Mumbai) के बांद्रा की मोटर लोडर चौकी के एक अंधेरे और गंदे कमरे में हाजरी लगानी पड़ती थी. वो पिछले 12 वर्षों से बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) के साथ एक मोटर लोडर (वैन में कचरा लोड करने वाले व्यक्ति) के रूप में काम कर रहे थे. हालांकि, मयूर की किस्मत बदल गई है क्योंकि वो पूरी तरह से सरकारी स्कॉलरशिप पर पीएचडी करने के लिए ब्रिटेन के लैंकेस्टर विश्वविद्यालय (Lancaster University) जाने के लिए तैयार हैं. वो ‘(Hazardous) Sanitation Labour: Historic Legacies and Shifting Realities’ नाम के एक प्रोजेक्ट पर काम करेंगे.
द क्विंट से बात करते हुए मयूर ने अब तक के अपने सफर के बारे में बताया. उन्होंने कहा, मेरे दादाजी विस्थापित होकर मुंबई पहुंचे. पिछले कई सालों से बीएमसी दलित प्रवासी श्रमिकों की भर्ती कर रही है, इसलिए उन्हें भी एक सफाई कर्मचारी के रूप में नौकरी मिल गई. उनके निधन के बाद, उनकी नौकरी मेरे पिता को मिल गई और फिर मेरे पिता के निधन के बाद यह नौकरी मुझे मिल गई.
मयूर ने बताया कि अपने परिवार की देखभाल के लिए उनको नौकरी करनी पड़ी क्योंकि वह 12वीं के एग्जाम में फेल हो गए थे. "नौकरी में मेरा पहला दिन मुंबई में रिक्लेमेशन के पास एक बाजार में था, जिसे बीटी मार्केट कहा जाता है. वहां हर दिन लगभग 500 मुर्गियां काटी जाती हैं. पहले ही दिन मेरी शर्ट पर खून लगा, उसके बाद मुझे एहसास हुआ कि इससे बाहर निकलने का सिर्फ एक तरीका शिक्षा हासिल करना है."
मयूर आगे बताते हैं कि जब एक दोस्त ने उनको टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) के बारे में बताया, तो उन्होंने दलित एंड ट्राइबल स्टडीज इन एक्शन नाम के प्रोग्राम में एडमिशन करवाया.
मयूर की मां द क्विंट से बात करते हुए कहती हैं कि कभी-कभी मैं महीनों मयूर से नहीं मिल पाती थी. वो TISS में पढ़ रहा था और काम कर रहा था, इसलिए मैं उससे महीनों या 15 दिनों तक नहीं मिल पाती थी.
मयूर ने द क्विंट से बात करते हुए कहा कि मैं हमेशा अपने देश के लोगों के लिए काम करूंगा, चाहे मैं भारत में रहूं या विदेश में. बीएमसी की नौकरी पाने की मुश्किलें कई बच्चों को पढ़ाई छोड़ने को मजबूर करती हैं. ड्रॉपआउट दर बहुत अधिक है. मैं बच्चों के एजुकेशन पर ध्यान देना चाहता हूं, जिससे आने वाली पीढ़ियां उसी जाल में न फंसे.
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