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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की महत्वाकांक्षी चारधाम विकास योजना के तहत चल रहे प्रोजेक्ट्स को अपनी सहमति दे दी है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस योजना के रुके हुए प्रोजेक्ट अगले आदेश तक रुके ही रहेंगे. इस योजना के तहत उत्तराखंड के चार धामों (यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ) को ऑल-वेदर सड़कों से जोड़ा जाना है.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने एक कमेटी का गठन करते हुए चार धाम योजना के प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दे दी थी. यह कमेटी प्रोजेक्ट्स से संबंधित पर्यावरणीय मामलों की देखरेख के लिए गठित की गई थी.
इसके बाद एनजीटी के इस आदेश पर रोक लगाने के लिए एक याचिका दाखिल हुई. इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस विनीत सारन ने केंद्र से हलफनामा पेश करने को कहा.
27 दिसंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12,000 करोड़ रुपये की चारधाम महामार्ग विकास योजना का शिलान्यास किया था. इसका मकसद उत्तराखंड में चारों धामों के लिए सड़कों को दुरुस्त करना है.
इस योजना में 900 किलोमीटर लंबी सड़कों का चौड़ीकरण किया जाना है. पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील इलाकों में पेड़ों और पहाड़ों को काटने के तरीकों को लेकर इस योजना पर सवाल उठ रहे हैं.
पहाड़ों से निकले मलबे की डंपिंग नीति पर भी सवाल उठे थे. बताया जा रहा है कि मोड़ों पर डंपिंग की जा रही है. कई जगहों पर ऐसे मोड़ हैं, जहां बरसाती झरना या गदेरा नीचे आता है. इनके लिए रास्ता नहीं दिया गया है. ऐसे में कहा जा रहा है कि बारिश के दौरान इससे नदी और डंपिंग दोनों को नुकसान हो सकता है.
केदारघाटी पर्यावरण के लिहाज से काफी संवेदनशील है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, 2013 त्रासदी के बाद भी सबक नहीं लिया गया है. आपदा के बाद कई समितियां बनाई गईं, लेकिन उनकी सिफारिशों पर अब तक अमल नहीं किया गया.
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