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मुसीबत की चारधाम योजना,विकास का ये मॉडल पहाड़ों को तबाह न कर दे?

ऑल वेदर रोड बनाने को लेकर अब तक 25,000 से ज्यादा पेड़ काटे जा चुके हैं.

अभिनव भट्ट & एंथनी रोजारियो
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पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील इलाकों में कंस्ट्रक्शन का काम काफी चुनौतीपूर्ण
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पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील इलाकों में कंस्ट्रक्शन का काम काफी चुनौतीपूर्ण
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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उत्तराखंड में चार धाम प्रोजेक्ट (ऑल वेदर रोड) और केदारनाथ मंदिर के आस पास हो रहे पुनर्निर्माण को लेकर सरकार और पर्यावरणविद आमने-सामने हैं. 27 दिसंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12,000 करोड़ की चार धाम महामार्ग विकास परियोजना का शिलान्यास किया था. इसका मकसद उत्तराखंड में चारों धामों के लिए सड़कों को दुरुस्त करना है.

इस परियोजना में 900 किलोमीटर लंबी सड़कों का चौड़ीकरण किया जा रहा है. लेकिन पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील इलाकों में पेड़ों और पहाड़ों को काटने के तरीकों को लेकर सवाल उठ रहे हैं.

हड़बड़ी में पर्यावरण से खिलवाड़?

गढ़वाल यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विज्ञान विभाग के हेड प्रोफेसर आरसी शर्मा के मुताबिक,

पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील इलाकों में कंस्ट्रक्शन का काम काफी चुनौती भरा होता है. इसलिए जहां भी हो सके पेड़ों को नहीं काटना चाहिए. इसकी जगह सुरंग के जरिए या डाइवर्ट कर सड़कों का निर्माण होना चाहिए. इसके लिए थोड़ा समय दिया जाना चाहिए था लेकिन सरकार ने टार्गेट दे दिया, जिसकी वजह से जल्दबाजी में काम हो रहा है.
प्रोफेसर आरसी शर्मा, हेड-पर्यावरण विज्ञान विभाग, गढ़वाल यूनिवर्सिटी(फोटो: एंथनी रोजारियो\द क्विंट)

पहाड़ों को काटने के तरीके पर सवाल

ऑल वेदर रोड बनाने को लेकर अब तक 25,000 से ज्यादा पेड़ काटे जा चुके हैं. कई जगह सड़कों के चौड़ीकरण के लिए पहाड़ों को काटने के तरीके पर भी सवाल उठ रहे हैं.

आरसी शर्मा के मुताबिक,

पहाड़ों को 80 या 90 डिग्री के एंगल पर नहीं काटा जाता. इसे स्लोप में काटा जाता है, जिससे लैंडस्लाइड होने की संभावना काफी कम होती है. ऋषिकेश से सोनप्रयाग के बीच कई जगहों पर हमें पहाड़ 90 डिग्री के एंगल पर कटे हुए दिखे. मॉनसून के दौरान यहां काफी बारिश होती है जिससे यहां लैंडस्लाइड होने का खतरा बढ़ जाता है.

नेशनल हाइवे 107 पर कई जगहों पर पहाड़ों को 90 डिग्री के एंगल पर काटा गया है(फोटो: द क्विंट)

डंपिंग नीति भी सवालों के घेरे में

पहाड़ों से निकले मलबे की डंपिंग नीति पर भी सवाल उठ रहे हैं. मोड़ों पर डंपिंग की जा रही है, कई जगहों पर ऐसे मोड हैं जहां बरसाती झरना या गदेरा नीचे आता है. इनके लिए रास्ता नहीं दिया गया है. बारिश के दौरान इससे नदी और डंपिंग दोनों को नुकसान होगा.

डंपिंग नीति भी सवालों के घेरे में(फोटो: द क्विंट)
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वैज्ञानिकों की चेतावनी

केदारघाटी भी पर्यावरण के लिहाज से काफी संवेदनशील है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, 2013 त्रासदी के बाद हमने सबक नहीं लिया है. आपदा के बाद कई समितियां बनाई गईं, लेकिन उनकी सिफारिशों पर अब तक अमल नहीं किया गया.

डॉ प्रदीप श्रीवास्तव, वैज्ञानिक, Wadia Institute of Himalayan Geology(फोटो: एंथनी रोजारियो\द क्विंट)

Map the Neighborhoood in Uttarakhand कमेटी के सदस्य और वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव के मुताबिक,

हर जगह की अपनी क्षमता होती और उससे ज्यादा बोझ नहीं डाला जाना चाहिए. सोनप्रयाग के ऊपर कंस्ट्रक्शन का काम नहीं किया जाना चाहिए. निचले इलाकों में स्मार्ट सिटी (पहाड़ों को ध्यान में रखते हुए) बनाई जानी चाहिए.यही नहीं, बफर जोन भी बनाए जाने चाहिए जहां श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था की जानी चाहिए. इससे केदारनाथ घाटी में लोगों की संख्या को नियमित किया जा सकेगा. 
डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव, वैज्ञानिक

ऑल वेदर रोड और केदारनाथ में पुर्ननिर्माण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट्स हैं. लेकिन विकास के नाम पर जल्दबाजी और कहीं एक और महाआपदा की नींव तो नहीं पड़ रही?

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Published: 18 Jun 2018,02:48 PM IST

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