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(चेतावनी: अगर आपको सुसाइड के विचार आते हैं या आप किसी ऐसे को जानते हैं जिसे ऐसे ख्याल आते हैं , तो कृपया उनके पास पहुंचें और स्थानीय आपातकालीन सेवाओं, हेल्पलाइनों और मानसिक स्वास्थ्य NGO's के इन नंबरों पर कॉल करें)
देश में 2019 से 2021 के बीच अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के कम से कम 35 हजार छात्रों ने आत्महत्या के कारण अपनी जान गंवाई. केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री, अब्बैया नारायणस्वामी ने मंगलवार, 5 दिसंबर को लोकसभा में इसकी जानकारी दी.
उन्होंने सदन में कहा-"देश में सामाजिक भेदभाव के कारण आत्महत्या करने वाले एससी,एसटी छात्रों की संख्या के बारे में कोई जानकारी नहीं है"
2019 में 10,335 एससी/एसटी छात्रों की आत्महत्या से मौत हो गई
2020 में 12526 एससी/एसटी छात्रों की आत्महत्या से मौत हो गई
2021 में 13,089 एससी/एसटी छात्रों की आत्महत्या से मौत हो गई
NCRB के आंकड़ों के अनुसार, 2021 में महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या की. यहां कम से कम 1,834 छात्रों को अपनी जान लेने के लिए मजबूर किया गया.
2020 और 2019 में भी, महाराष्ट्र इस सूची में टॉप पर था जब राज्य में क्रमशः 1,648 और 1,487 छात्रों ने आत्महत्या की.
तीन सालों में लक्षद्वीप में आत्महत्याओं की सबसे कम संख्या- शून्य दर्ज की गई.
राज्य मंत्री नारायणस्वामी ने अपने जवाब में यह उल्लेख किया कि उच्च शिक्षा विभाग ने, अन्य बातों के अलावा, शैक्षणिक संस्थानों में निम्न निकायों की स्थापना की है:
काउंसलिंग सेल
एससी/एसटी स्टूडेंट सेल
समान अवसर सेल
छात्र शिकायत सेल
इस साल की शुरुआत में फरवरी में आईआईटी बॉम्बे में बीटेक फर्स्ट ईयर के छात्र दर्शन सोलंकी की आत्महत्या से मौत हो गई. इस मामले में एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी.
तब से, छात्रों द्वारा परिसर में जातिगत भेदभाव का आरोप लगाने वाली कई रिपोर्टें सामने आई हैं. 2023 में आईआईटी मद्रास के कम से कम दो छात्रों की भी आत्महत्या से मौत हो गई.
छात्रों की बढ़ती आत्महत्या को देखते हुए, राजस्थान सरकार ने सितंबर में कोचिंग संस्थानों के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए. केंद्र ने भी स्कूलों के लिए 'उम्मीद' नामक दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत है.
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