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धारा 377 पर आए ऐतिहासिक फैसले के पीछे ये वकील हैं,जो खुद हैं ‘कपल’

एक टीवी इंटरव्यू में मेनका और अरुंधति ने कपल होने की बात कबूली

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एक टीवी इंटरव्यू में मेनका और अरुंधति ने कपल होने की बात कबूली
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एक टीवी इंटरव्यू में मेनका और अरुंधति ने कपल होने की बात कबूली
(फोटो: ट्विटर/अरुंधति काटजू)

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सुप्रीम कोर्ट में सेक्शन 377 के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाली वकील अरुंधति काटजू और मेनका गुरुस्वामी ने खुलासा किया है कि वो कपल हैं. 18 जुलाई को सीएनएन के फरीद जकारिया को दिए इंटरव्यू में मेनका और अरुंधति ने कपल होने की बात कबूली.

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था. कोर्ट का ये फैसला एलजीबीटी समुदाय की लंबी लड़ाई के बाद आया था.

इंटरव्यू में फरीद जकारिया ने जब कहा कि 2018 की जीत सिर्फ वकीलों के तौर पर बड़ी जीत नहीं थी, बल्कि एक कपल के तौर पर भी थी, तब मेनका गुरुस्वामी ने कहा:

<b>‘‘2013 में एक वकील के तौर पर, देश के नागरिक के तौर पर नुकसान हुआ था. वो पर्सनल लॉस था. एक ‘अपराधी’ होना अच्छा नहीं लगता, जिसे दूसरे मामलों पर बहस करने के लिए एक वकील के रूप में कोर्ट में वापस जाना पड़ता है.’’</b>

पिछले साल 6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 377 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया था, जिसके तहत आपसी सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध अपराध की श्रेणी में आते थे. तब चीफ जस्टिस रहे दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि हर किसी को निजता का मौलिक अधिकार है.

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के 2013 के उस फैसले को पलट दिया था, जिसमें समलैंगिकता को अपराध माना गया था.

इंटरव्यू के बाद अरुंधति काटजू ने ट्विटर पर मेनका के साथ एक फोटो भी शेयर की.

ये बात तो जरूर है कि इन दोनों ने समाज की अवधारणा को तोड़ा है और बाकी की महिलाओं को रास्ता दिखाया है. 6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अंग्रेजी हुकूमत के समय के समलैंगिकता को अपराध मानने वाले कानून को खत्म किया. साथ ही 2013 में आए जजमेंट को पुरजोर तरीके से खारिज कर दिया, जिसके मुताबिक आपसी सहमति से सेक्स करने वाले समलैंगिकों को सजा देने की बात कही गई.

इस फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने इतिहास बना दिया. अब भारत में समलैंगिक होना गुनाह नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने 157 साल पहले ब्रिटिश हुकूमत में बने कानून को भी खत्म कर दिया, जिसमें समलैंगिकों के बीच आपसी सहमति से होने वाले सेक्स को भी अपराध की श्रेणी में माना जाता था.

<b>‘‘अन्याय और पूर्वाग्रहों जीत हासिल करने के लिए कदम उठाना जरूरी था. हमें भेदभाव और पूर्वाग्रहों को अब खत्म कर देना चाहिए. संवैधानिक नैतिकता का मूल राज्य (सरकार) को सुरक्षा मुहैया कराने की जिम्मेदारी देता है.’’</b>
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंगटन नरीमन, डीवाई चंद्रचूड़, एएम खानविलकर और इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ ने एकमत होकर ये फैसला सुनाया था.

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Published: 20 Jul 2019,08:49 AM IST

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