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धारा 377: समलैंगिकता अब अपराध नहीं है, क्या है जजों की राय

कोर्ट ने साफ-साफ कहा है कि समलैंगिक सेक्स रिलेशन अपराध नहीं है.

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भारत
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समलैंगिक सेक्स अब अपराध नहीं
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समलैंगिक सेक्स अब अपराध नहीं
(फोटोः क्विंट)

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सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिक सेक्स को अपराध की कैटेगरी से बाहर कर दिया है. कोर्ट ने साफ कहा है कि समलैंगिक सेक्स संबंध अपराध नहीं है. न्यायाधीशों ने अलग-अलग फैसले सुनाए, लेकिन इस बात पर करीब-करीब सबकी राय एक जैसी थी.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांचों जस्टिस ने क्या कहा, डालते हैं एक नजरः

यौन प्राथमिकता को कोर्ट ने नेचुरल बताया

सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा:

“यौन प्राथमिकता बायोलॉजिकल और प्राकृतिक है. इसमें किसी भी तरह का भेदभाव मौलिक अधिकारों का हनन होगा. निजता किसी की भी व्यक्तिगत पसंद होती है. दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने यौन संबंध पर <b>IPC की धारा 377</b> संविधान के समानता के अधिकार, यानी अनुच्छेद 14 का हनन करती है.”

लोगों को अपना नजरिया बदलना होगाः CJI


चीफ जस्‍ट‍िस दीपक मिश्रा (Photo: Erum Gour/The Quint)
“समलैंगिकता के प्रति सभी को अपना नजरिया बदलना होगा. सबको समान रूप से देखना होगा. समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध बताना या मानना गलत है. समलैंगिकों के अधिकार भी दूसरे नागरिकों जैसे हैं. हमें एक-दूसरे के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए और मानवता दिखानी चाहिए. खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पाना मरने के समान है.”
दीपक मिश्रा, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया

जो जैसे हैं, उन्हें वैसे ही स्वीकार करें: खानविलकर

“हमें दूसरे लोगों के व्यक्तित्व को स्वीकार करने की अपनी मानसकिता में परिवर्तन करना चाहिए. जैसे वे हैं, उन्हें वैसे ही स्वीकार करना चाहिए.”
जस्टिस एएम खानविलकर
धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला(फोटोः Quint)
सुप्रीम कोर्ट के सभी जस्टिस ने कहा कि संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में परिवर्तन जरूरी है. जीवन का अधिकार मानवीय अधिकार है. इस अधिकार के बिना बाकी अधिकार औचित्यहीन हैं. 
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LGBT को भी दूसरों की तरह समान अधिकार: जस्टिस चंद्रचूड़

“भारत के यौन अल्पसंख्यक नागरिकों को छुपना पड़ा. LGBT समुदाय को भी दूसरों की तरह समान अधिकार है. यौन प्राथमिकताओं के अधिकार से इनकार करना निजता के अधिकार को देने से इनकार करना है. किसी नागरिक की निजता में घुसपैठ का राज्य को हक नहीं है.”
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़

LGBTQ के साथ भेदभाव नहीं हो: जस्टिस नरीमन

“सरकार, मीडिया को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का व्यापक प्रचार करना चाहिए, ताकि LGBTQ समुदाय को भेदभाव का सामना नहीं करना पड़े.”
जस्टिस रोंहिटन नरीमन

समाज को LGBTQ से माफी मांगनी चाहिएः इंदु मल्होत्रा


“इतने साल से समान अधिकार से वंचित किए जाने को लेकर समाज को LGBTQ समुदाय के सदस्यों और उनके परिजनों से माफी मांगनी चाहिए. LGBTQ समुदाय को बहुसंख्यकों द्वारा समलैंगिकता को पहचान न देने पर डर के साए में रहने को विवश किया गया.”
जस्टिस इंदु मल्होत्रा

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Published: 06 Sep 2018,04:16 PM IST

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