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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर कई परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया. उन्होंने यहां बहुप्रतीक्षित सेला टनल (Sela Tunnel) का ईटानगर से वर्चुअली उद्घाटन किया. 825 करोड़ की लागत से बनी यह टनल भारत की सबसे ऊंचाई (13700 फीट) पर बनी टू-वे टनल है. चलिए आपको बताते हैं कि सेला टनल की क्या खासियत है? यह भारत और चीन के सीमा विवाद को देखते हुए एक रणनीतिक जरूरत क्यों है?
सेला टनल तेजपुर को तवांग से जोड़ती है.
सेला टनल की कुल ऊंचाई 33700 फीट है जो इंडिया की सबसे ऊंची सुरंग है.
सेला टनल को 825 करोड़ की कुल लागत में बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन ने बनाया है.
यह दुनिया की सबसे लंबी टू वे टनल यानी दो लेन वाली सुरंग है.
कुल टनल प्रोजेक्ट की लंबाई 11.84 किमी है, जिसमें 2 टनल और 2 सड़क भी शामिल हैं.
टनल 1 की लंबाई 980 मीटर है जो वन वे है और टनल 2 ,1555 मीटर लंबी टू वे टनल है. टनल 2 में एक बाइलेने ट्यूब और एक एनर्जेंसी ट्यूब है.
इस टनल को NATM (ऑस्ट्रियाई सुरंग बनाने की विधि) विधि से बनाया गया है जो अत्याधुनिक तकनीक है. इसमें खुदाई से निकले पत्थर और मिट्टी का ज्यादा से ज्यादा उपयोग किया जाता है.
टनल ऑल वेदर टनल है यानी हर मौसम में यह चालू रहेगा. बर्फ गिरने का इसपर कोई असर नहीं होगा.
टनल का शिलान्यास पीएम मोदी ने 2019 में किया था.
भारत और चीन के बीच के मौजूदा हालात देखते हुए यह टनल कूटनीतिक रूप से भारत के लिए बहुत जरूरी है. अरुणाचल प्रदेश में तवांग और अन्य बॉर्डर के इलाकों को जोड़ने के लिए सड़क और रेल की कमी है. अभी तक सर्दियों के मौसम में कुछ महीने तक LAC तक जाना मुश्किल हो जाता था. भारत-चीन बॉर्डर तक पहुंचने के लिए अब तक भारतीय सेना बालीपारा-चारीदुआर रोड का इस्तेमाल करती थी. सर्दी के मौसम में सेला दर्रे में बर्फ जम जाने से ये रास्ता पूरी तरह से बंद हो जाता था और बॉर्डर के इलाकों तक सेना की पहुंच मुश्किल हो जाती थी.
चीन इससे पहले भी भारतीय बॉर्डर के किनारे अपने अनेक डेवलपमेंट प्रोजेक्ट चला रहा है. जिसको देखते हुए इस टनल का रणनीतिक महत्व भारत के लिए और बढ़ जाता है. चीन, तवांग पर अपना दावा करता रहा है. वो तवांग को अपना पुराना हिस्सा मानता है. इसी की वजह से दोनों सेना के जवानों कई बार आमने-सामने आ जाते हैं.
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