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अयोध्या जमीन विवाद में मुस्लिम पक्ष की पैरवी करने वाले वकील राजीव धवन को जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने हटा दिया है. राजीव धवन ने फेसबुक पर पोस्ट लिखकर इसकी जानकारी दी है. धवन के मुताबिक अरशद मदनी ने ये कहा है कि उनके हटाने की वजह मेरा खराब स्वास्थ्य है, जो पूरी तरह से गलत है.
राजीव धवन ने रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सामने मुस्लिम पक्ष के लिए मामले पर तर्क-वितर्क किया था, उन्होंने मामले की 40 दिनों की सुनवाई में दो हफ्ते से अधिक समय तक मुस्लिम पक्ष की ओर से बहस की थी.
बहस के दौरान, धवन ने संविधान पीठ के सवालों के जवाब भी दिए थे. यह याचिका जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अशद मदनी ने दायर की है. अयोध्या भूमि विवाद में नौ नवंबर के फैसले को चुनौती देने वाली समीक्षा याचिका में मुस्लिम पक्षकारों ने सवालों की झड़ी लगा दी है.
धवन ने मामले से हटाए जाने के कारण का जिक्र करते हुए कहा, "मुझे सूचित किया गया कि जनाब मदनी ने यह संकेत दिया है कि मुझे मामले से इसलिए हटाया गया, क्योंकि मैं बीमार हूं. हमने इस कदम को स्वीकारते हुए तत्काल उन्हें औपचारिक पत्र भेज दिया है. अब मामले की समीक्षा में मैं शामिल नहीं हूं’
अयोध्या विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक मुस्लिम पक्षकार ने 2 दिसंबर को रिव्यू पिटिशन दाखिल किया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित 2.77 एकड़ जमीन को रामलला यानी हिंदू पक्ष को देने का फैसला किया था. अयोध्या विवाद के मुस्लिम पक्षकारों में एक मौलाना सैय्यद अशद रशीदी ने ये रिव्यू पिटीशन दाखिल किया है.
पुनर्विचार याचिका में उन्होंने कहा है कि इस मामले के फैसले में कमी साफ तौर पर दिखती हैं और भारतीय संविधान के आर्टिकल 137 के तहत पुनर्विचार की जरूरत है.
सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के फैसले में कहा था कि विवादित जमीन हिंदुओं को दी जाए. इसके साथ ही उसने कहा था कि केंद्र सरकार 3 महीने के अंदर योजना बनाए और मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट का गठन करे, मुस्लिमों (सुन्नी वक्फ बोर्ड) को मस्जिद के लिए दूसरी जगह 5 एकड़ जमीन दी जाए.
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