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शाहीन बाग में 60 दिनों से नागरिकता कानून (CAA) के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन का अब क्या होगा? इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट अब 24 फरवरी को सुनवाई करेगा. लेकिन 17 फरवरी को कोर्ट में शाहीन बाग प्रदर्शन पर जमकर बहसबाजी हुई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी कानून का विरोध करना लोगों का मौलिक अधिकार है लेकिन सड़कों को ब्लॉक करना और लोगों के लिए असुविधा पैदा करना चिंता का विषय है.
शाहीन बाग प्रदर्शन के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने कहा, "चिंता इस बात को लेकर है कि अगर सभी लोग सड़क पर विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर देंगे, तो क्या होगा?" बेंच ने कहा, "अपने विचार रखने से ही लोकतंत्र चलता है, लेकिन इसके लिए सीमाएं हैं."
सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े, साधना रामचंद्रन और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला को प्रदर्शनकारियों से बात करने की जिम्मेदारी सौंपी है. ये तीनों प्रदर्शनकारियों को किसी ऐसी साइट पर जाने के लिए राजी करने की कोशिश करेंगे, जहां कोई सार्वजनिक जगह ब्लॉक ना हो. मामले की अगली सुनवाई 24 फरवरी को होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कुछ निष्कर्ष नहीं निकलता है तो मामला अधिकारियों पर छोड़ देंगे. कोर्ट ने ये भी कहा, विरोध प्रदर्शन काफी समय से चला आ रहा है, प्रदर्शनकारी अपनी बात कह चुके हैं.
वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शाहीन बाग प्रदर्शनकारियों को ये संदेश नहीं दिया जाना चाहिए कि हर कोई उन्हें मनाने की कोशिश कर रहा है.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट बीजेपी के पूर्व विधायक नंदकिशोर गर्ग और एडवोकेट अमित साहनी की याचिका पर सुनवाई कर रही है. साहनी ने पहले दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता ने कालिंदी कुंज-शाहीन बाग रोड पर यातायात सुचारू रूप से चलाने के लिए दिल्ली पुलिस को दिशा-निर्देश देने की मांगी की थी.
इसके अलावा, बीजेपी के पूर्व विधायक नंदकिशोर गर्ग ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर प्रदर्शनकारियों को शाहीन बाग से हटाने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की है. याचिका में कहा गया है, "सड़क ब्लॉक होने की वजह से आम लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. राज्य का कर्तव्य है कि वे नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा करें. यह निराशाजनक है कि राज्य मशीनरी शांत है."
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