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"जब तक तुम्हारा मामा शिवराज सिंह चौहान है तब तक कभी कोई समस्या नहीं आएगी" किसानों, आदिवासियों, बेरोजगार युवाओं को संबोधित करते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कई मर्तबा यह कहते सुना गया है लेकिन क्या सच में प्रदेश के ये लोग 18 सालों के 'मामा राज' से खुश हैं? मध्यप्रदेश के किस्सों में आज किसानों आदिवासियों और बेरोजगार युवाओं की बात करेंगे.
22 नवंबर को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में भारतीय किसान संघ के बैनर तले हजारों किसान लामबंद हुए. इन किसानों का कहना है कि सरकार उनकी समस्यायों के प्रति उदासीन है और किसान ठगा महसूस कर रहे हैं.
किसानों की प्रमुख समस्याओं में खाद की किल्लत, बिजली की आपूर्ति, बिजली खंभों और ट्रांसफार्मरों का खराब पड़े रहना, बिजली बिल आना समेत अन्य मुद्दे हैं. भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री मोहनी मोहन मिश्र ने कहा कि
मध्यप्रदेश की राजधानी से सटे सीहोर जिले में खाद लेने के लिए लाइन में लगे एक 65 वर्षीय बुजुर्ग किसान शिवनारायण की शनिवार, 19 नवंबर को मृत्यु हो गई. शिवनारायण रामाखेड़ी गांव के रहनेवाले थे और परिजनों का आरोप है कि वो कई दिनों से खाद के लिए परेशान थे और सुबह बिना कुछ खाए पिए ही खाद की लाइन में जा लगे ताकि फसल बर्बाद न हो. लेकिन ये कहानी सिर्फ एक शिवनारायण की नही है बल्कि प्रदेश के हजारों किसान हर साल इसी समस्या से जूझते हैं.
किसानों को एक बोरी खाद के लिए लाइन में लगकर धक्का-मुक्की करनी पड़ती है. किसानों का आरोप है कि उनके हिस्से का खाद निजी विक्रेताओं के यहां भेजा रहा है और उसे ऊंचे दामों पर बेचा जा रहा है.
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह तक शिवराज सरकार को इस मुद्दे पर घेरते हुए नजर आए हैं.हालांकि सियासत को अलग कर दें तो भी प्रदेश के किसान बीजेपी राज से कुछ खास संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहे हैं और इसका प्रतिकूल असर आने वाले चुनावों में भी देखने को मिल सकता है.
मुख्यमंत्री चौहान की 25 फरवरी 2022 को बोली गई इन लाइनों में सत्य तो कूट कूट कर भरा है लेकिन इनपर अमल कितना किया गया है यह सवाल है. अभी पिछले महीने अक्टूबर में प्रदेश के बेरोजगार युवाओं ने भारती सत्याग्रह चलाते हुए इंदौर से भोपाल कूच किया था.
हालांकि आंदोलन को पुलिस तितर बितर करने और राजधानी पहुंचने से पहले रोकने में सफल रही थी और अनुमानित से काफी कम युवा ही भोपाल पहुंच पाए थे.नेशनल एजुकेटेड यूथ यूनियन (NEYU) के बैनर तले आयोजित इस भर्ती सत्याग्रह में युवाओं का गुस्सा फूट कर निकल रहा था.
मीडिया रिपोर्ट की मानें तो मामा शिवराज सिंह चौहान के वादों से इतर रोजगार के मामले में बीजेपी सरकार 2004 से 2017 के बीच राज्य में केवल 2 लाख 46 हजार 612 नौकरियां ही उपलब्ध करा पाई थी. इसमें भी स्टेट एंप्लॉयमेंट एक्सचेंज के आंकड़े कहते हैं कि मात्र 19,226 सरकारी नौकरियां थीं, जबकि बाकी 2,27,386 नौकरियां निजी क्षेत्र की थीं.
शिवराज सरकार ने पिछले साल 30 अक्टूबर को ऐलान किया था कि चुनावों से पहले 1 साल में एक लाख सरकारी भर्तियां की जाएंगी, हालांकि इस वादे का भी पूरा होना अभी मुनासिब नहीं लगता है. दलितों-आदिवासियों को रिझाने के कई पैंतरे लेकिन राज्य में इन वर्गों के लगभग 7.5 लाख युवा बेरोजगार.
मध्य प्रदेश सरकार ने विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान धार के सरदारपुर से कांग्रेस विधायक प्रताप ग्रेवाल के सवाल के जवाब में पेश किए गए आंकड़ों में कहा कि, राज्य में 1 अप्रैल, 2022 तक 25.81 लाख पंजीकृत बेरोजगार युवा थे. इन पंजीकृत बेरोजगार युवाओं में लगभग 30% यानि कि 7.5 लाख से ज्यादा पंजीकृत बेरोजगार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के हैं. शेष 70% बेरोजगार ओबीसी और सामान्य वर्ग के हैं.
इसके अलावा प्रदेश में वर्ष 2011-12 से वर्ष 2021-22 तक रोजगार कार्यालय को अधिसूचित रिक्तियों के विरुद्ध नियुक्ति आवेदकों की संख्या मात्र 1647 हैं. किसानों, युवाओं और आदिवासियों के बीच अगर सरकार को लेकर ऐसा ही माहौल बना रहा तो आने वाले चुनावों में बीजेपी की मुसीबतें और बढ़ सकती हैं.
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