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पिछले कुछ दिनों से श्रद्धा वाकर हत्याकांड (Shraddha Walkar Murder Case) सुर्खियों में है. 28 वर्षीय श्रद्धा वाकर मुंबई की रहने थी, हाल ही में खुलाासा हुआ है कि दिल्ली में कथित तौर पर उसके लिव-इन पार्टनर ने उसकी हत्या कर दी थी. इस केस के इर्द-गिर्द जो अप्रसांगिक बातें चल रही हैं, वे चिंता का विषय है. सही बात को छोड़कर सोशल मीडिया प्लेटफार्म इस घटना पर हर संभव दिशा में चर्चाओं से भरे पड़े हैं, जिसमें लव जिहाद से लेकर पीड़िता को दोष देने तक की बातें कही जा रही हैं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक श्रद्धा वाकर कथित तौर पर इस साल मई में अपने पार्टनर आफताब अमीन पूनावाला के साथ रहने के लिए इसलिए दिल्ली चली गई थी, क्योंकि उसके परिवार को यह अंतर-धर्मिक रिश्ता मंजूर नहीं था. न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार इस रिलेशनशिप की वजह से श्रद्धा के पिता ने उससे नाते-रिश्ते तोड़ दिए थे. अभी भी घटनाओं की टाइमलाइन को लेकर डिबेट चल रही है, लेकिन व्यापक तौर पर यह बताया गया है कि दिल्ली शिफ्ट होने के कुछ ही दिनों बाद पूनावाला और श्रद्धा के बीच बहस हुई. जिसके बाद पूनावाला ने कथित तौर पर श्रद्धा का गला घोंट दिया और उसकी हत्या कर दी. रिपोर्ट्स के अनुसार कथित तौर पर पूनावाला ने श्रद्धा के शरीर के 30 ज्यादा टुकड़े किए थे और कई महीनों के दौरान उन टुकड़ों को आस-पास के इलाकों में ठिकाने लगाता रहा.
जैसा कि हमारी आदत है, लोग श्रद्धा वाकर मर्डर केस की चीर-फाड़ करने में लगे हुए हैं, वे घटना के पीछे की वजहाें को जानने की कोशिश कर रहे हैं. दूसरे मायने में देखें तो सब अपनी-अपनी थ्योरी या एजेंड़े को सही साबित करने में लगे हुए हैं. एक ऐसा वर्ग भी है जिसने पहले ही इस मामले को लव जिहाद के रूप में चित्रित कर दिया, जबकि उसके पास खाली मृतक और संदिग्ध के धर्म के अलावा ये (लव जिहाद का मामला) साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है.
एक और वर्ग है, जो इस घटना को एक भयावह कहानी के तौर पर प्रस्तुत कर रहा है ताकि इसकी वजह से परिवार अपने घर की युवा अविवाहित महिलाओं के जीवन पर लगाम लगाने का प्रयास कर सकें. यह कहा जाता है कि इस तरह की घटनाएं तब होती हैं जब आप अपने पैरेंट्स की बात नहीं सुनते हैं. महिलाओं को अपने पैरेंट्स की राय या फैसले पर भरोसा करना चाहिए क्योंकि वे अनुभव के आधार पर बोलते हैं.
लेकिन अगर इस तरह की घटना किसी अरेंज्ड मैरिज वाली महिला के साथ हुई होती, तो तब क्या होता? क्या होता अगर वाकर और पूनावाला दोनों एक ही धर्म के होते और उनके पैरेंट्स ने उनके रिश्ते को स्वीकार कर लिया होता?
चाहे कुछ भी हो, श्रद्धा वाकर मामला भारतीय पैरेंट्स को अपने बच्चों के साथ कड़वाहट भरे संबंधों के बारे में बात करने के लिए प्रेरित करना चाहिए. शायद ही कभी भारतीय पैरेंट्स अपने बच्चों के साथ रिलेशनशिप में खराब व्यवहार के बारे में बात करते हैं. चूंकि ये मुद्दा पैरेंट्स को असहज कर देता है, इसलिए वे कभी भी बच्चों को ऐसी बात करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं. क्या होगा अगर बच्चे ऐसे सवाल पूछें जिनका जवाब पैरेंट्स नहीं देना चाहते हैं? क्या होगा अगर बच्चे पैरेंट्स को लिविंग रूम के फर्श पर छटपटाते और उबाले मारते हुए छोड़कर हमारे समाज में चल रहे दोहरे मापदंड़ों को उजागर करते हैं?
इसी साल अक्टूबर में, वैवाहिक झगड़े की वजह से एक महिला को उसके पति ने अपनी नौ साल की बेटी के सामने कथित तौर पर मार डाला था. उस बच्ची ने पुलिस को बताया कि उसके माता-पिता अक्सर झगड़ते रहते थे.
सितंबर में, गाजियाबाद के एक व्यक्ति ने कथित तौर पर अपनी पत्नी को बैट से मारा और फिर उसका गला घोंट दिया, जिससे उसकी मौत हो गई. मृतका के माता-पिता ने महिला के पति पर दहेज मांगने का आरोप लगाया था.
मनदीप कौर के मामले को कौन भूल सकता है? अपने पति के हाथों आठ साल तक घरेलू अत्याचार सहने के बाद न्यूयॉर्क में रहने वाली सिख महिला मनदीप कौर ने अगस्त 2022 में आत्महत्या कर ली जिससे उसकी मौत हो गई थी. बाद में कौर के पिता ने अपने दामाद पर 50 लाख रुपये दहेज मांगने का आरोप लगाया.
हर साल पति या साथ में रहने वाले पार्टनर्स द्वारा अपने साथी पर हिंसा की कई घटनाएं होती हैं, जिनमें से कुछ ही ऐसी होती हैं जो खबर बनती हैं. अफसोस इस बात का है कि हम केवल वाकर -पूनावाला जैसे ही मामलों पर ध्यान देते हैं, जिनका कोई एजेंडा रहता है या वे सनसनीखेज घटनाएं होती हैं.
घरेलू हिंसा या घरेलू दुर्व्यवहार की हर एक घटना यह दर्शाती है कि इस मुद्दे को हल करने और कमजोर महिलाओं और पुरुषों की रक्षा करने में हम विफल हैं. ऐसी घटनाएं दर्शाती हैं कि हम एक ऐसे समाज का निर्माण करने में असमर्थ रहे हैं जहां एक व्यक्ति इस विश्वास के साथ अपमानजनक या कड़वाहट भरे रिश्ते से बाहर निकल सकता है, उसे समाज से सहानुभूति और सपोर्ट मिलेगा जिसका वह हकदार है. उसे उसके परिवार अस्वीकार नहीं करेंगे या उसके साथी उससे मुंह नहीं मोड़ेंगे.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के अनुसार, भारत में 18 से 49 वर्ष के बीच की 30 फीसदी महिलाओं ने शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है. इस आंकड़े से एक बात स्पष्ट है कि कई परिवार अभी भी अपने लड़कों की ऐसी परवरिश नहीं कर रहे हैं कि वे महिलाओं को समान भागीदार के तौर पर देखें. या कम से कम ऐसे इंसान के तौर देखें जिसे भी सम्मान के साथ जीने लायक है. लेकिन, जब घरेलू हिंसा की बात आती है, तो चर्चा यहीं समाप्त नहीं हो सकती.
पैरेंट्स का सपोर्ट न केवल महिलाओं को दुर्व्यवहार या अपमानजनक रिश्तों से बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है बल्कि यह महिलाओं को आवश्यक भावनात्मक, वित्तीय और सामाजिक सपोर्ट भी प्रदान कर सकता है. यह सपोर्ट इस तरह के कदम उठाने के लिए जरूरी होते हैं क्योंकि इस तरह का फैसला उनके जीवन पर बहुआयामी प्रभाव डाल सकता है.
केवल पैरेंट्स को ही नहीं बल्कि हम सभी को इस कड़वी सच्चाई को स्वीकार करने की जरूरत है कि हमारे प्रियजन (बेटा या बेटी या कोई नजदीकी) अपने जीवन में ऐसे फैसले लेंगे जो हमें स्वीकार नहीं होंगे. उन फैसलों में से कुछ अच्छे निकल सकते हैं, जबकि अन्य के खराब परिणाम भी हो सकते हैं. जब खराब नतीजे आते हैं तब उस स्थिति में बच्चों या नजदीकी प्रियजन को हमारी चुप्पी या "मैंने तो तुमसे पहले ही कहा था" की जरूरत नहीं होती है. उनको हमारे प्यार, दुलार और दया की जरूरत होती है, जो उन्हें अनिष्ट या नुकसान के रास्ते में जाने से बचा सके और उन्हें एक नई शुरुआत करने में मदद कर सके.
ऐसा करके हम इस तरह की एक और त्रासदी को रोक सकते हैं, लेकिन युवा महिलाओं के शरीर को नियंत्रित करके और उनकी एक्टिविटी में पाबंदी लगाकर ऐसा नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इससे अपमानजनक व्यवहार नहीं रुकेगा.
(यामिनी पुस्ताके भालेराव, द लॉन्ड्री गर्ल ईबुक सीरीज की लेखिका हैं. वह SheThePeople.TV में आइडियाज एडिटर के तौर पर काम कर चुकी हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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