advertisement
ये शब्द एक्टर सिमी ग्रेवाल ने उस महिला के लिए इस्तेमाल किए, जो एक परिवार में महीनों तक अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ बोल रही थी, जिसने उस परिवार के खिलाफ बोलने की हिम्मत की, जो दुनिया के सबसे रसूखदार परिवार में गिना जाता है.
सिमी ने मेगन मार्कल को ‘दुष्ट’, ‘विक्टिम कार्ड खेलने वाली’, ‘झूठा’ और न जाने क्या-क्या कह दिया, लेकिन क्या असल में ‘दुष्ट’ वो डबल स्टैंडर्ड नहीं हैं, जिससे महिलाओं को गुजरना पड़ता है.
अगर आपको यकीन न हो, तो पिछले कुछ सालों की ये हेडलाइंस देख लीजिए. एक ही परिवार की दो बहुओं के प्रति मीडिया का रवैया अलग-अलग था.
एक ट्वीट में मेगन को ‘दुष्ट’ बोलने के बाद सिमी ने दूसरे ट्वीट में कहा कि उन्हें घर तोड़ने वाली महिलाएं पसंद नहीं. वो उनका सम्मान नहीं करतीं.
आलोचना हुई तो आपने कहा कि आप इस ‘दुष्ट’ शब्द को वापस लेती हैं. शायद ये ज्यादा हो गया था. आपने कहा कि इसकी बजाय ‘कैलकुलेटिंग’ शब्द ज्यादा ठीक रहेगा. और फिर एक बार आपने मेगन पर सवाल खड़े कर दिए. सच कहूं तो शब्दों में आपके हेर-फेर से आपकी सोच में जरा बदलाव नहीं दिखा.
और मैं अकेली नहीं हूं जो आपसे सहमत नहीं... खुद देख लीजिए.
और अगर मेगन मार्कल का इंटरव्यू कैलकुलेटेड था, तो क्यों उनके पति ने इसपर आपत्ति नहीं जताई? क्या मेगन ने हैरी को अपने परिवार के खिलाफ खड़ा कर दिया है?
मेगन मार्कल के इंटरव्यू से ज्यादा ब्रिटिश राजघराने से आया बयान कैलकुलेटेड लगता है. मेगन ने शाही परिवार पर नस्लभेद और रंगभेद जैसे गंभीर आरोप लगाए. मेगन ने कहा कि परिवार में उनकी जिंदगी काफी अकेली हो गई थी, उनपर कई पाबंदियां थीं, वो इतनी परेशान थीं कि उन्हें सुसाइड तक का खयाल आया.
इस पूरे मामले पर ब्रिटिश राजघराने की प्रतिक्रिया ऐसी थी, जैसे एक-एक शब्द फूंक कर लिखा गया हो. मेगन के नस्लभेद के आरोपों पर क्वीन ने कहा कि ये चिंता का विषय है और इसे ‘निजी तौर’ पर हल किया जाएगा.
इंटरव्यू के चार दिन बाद प्रिंस हैरी के बड़े भाई प्रिंस विलियम्स ने अपनी चुप्पी तोड़ी और कहा- “हम रेसिस्ट परिवार नहीं हैं.” उन्होंने मेगन के गंभीर आरोपों पर कुछ नहीं कहा. ये इंटरव्यू आपको जितना ‘इविल’ लगा, उतना तो राजघराने को भी नहीं लगा.
सोशल मीडिया पर आलोचना झेल रहे ब्रिटिश जर्नलिस्ट पीयर्स मॉर्गन और सिमी ग्रेवाल में ज्यादा अंतर नहीं है. दोनों ही आवाज उठाने के लिए एक महिला को टारगेट कर रहे हैं.
#MeToo कैंपेन के दौरान सोशल मीडिया पर एक बात प्रमुखता से कही गई थी- ‘बिलीव द विक्टिम’ यानी पीड़ित का यकीन करें. लेकिन अक्सर जब महिलाएं अपने साथ हुए अन्याय या बर्ताव के खिलाफ बोलती हैं, तो सबसे पहला लांछन उन्हीं पर लगता है.
‘विक्टिम कार्ड प्ले कर रही है.’
‘जरूर गलती इसी की होगी.’
‘ताली एक हाथ से नहीं बजती.’
‘अब तक क्यों चुप थी.’
‘खुद तो परिवार तोड़कर अलग हो गई.’
ऐसे न जाने कितने ताने हैं जो महिलाओं को सुनने पड़ते हैं. और मेगन मार्कल के इंटरव्यू पर आई प्रतिक्रियाओं ने एक बार फिर ये बात साबित कर दी है कि मुजफ्फरनगर से मैनहैटन और बिजनौर से ब्रिटेन तक, महिलाओं के साथ ये बर्ताव ‘कहानी घर घर की’ ही है. सोशल मीडिया पर लोग जो बातें कर रहे हैं, वो कहीं न कहीं सच ही हैं.
पिछले साल सबसे बड़े मामलों में से एक रहा सुशांत सिंह राजपूत की मौत का मामला ही देख लीजिए. सोशल मीडिया से लेकर न्यूज रूम तक, बिना सबूत रिया चक्रवर्ती का ट्रायल हो गया और उन्हें दोषी बता दिया गया. इस विच हंट में रिया के लिए कितने ही अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया.
और सिर्फ रिया ही नहीं, पितृसत्ता-समाज और अन्याय के खिलाफ बोलने वाली महिलाओं को अक्सर इस दरिया से गुजरना पड़ता है. फिर चाहे देश भारत हो, या मॉर्डन कहा जाने वाला ब्रिटेन.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)