एक फल बेचने वाले की बॉलीवुड तक पहुंचने की कहानी

पिछले 10 साल से सोलंकी अपने जीवन यापन के लिए ओखला मंडी से मालविय नगर के बीच सीजनल फल बेचते आ रहें हैं.

क्विंट हिंदी
भारत
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एक फल बेचने वाले की बॉलीवुड तक पहुंचने की कहानी
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एक फल बेचने वाले की बॉलीवुड तक पहुंचने की कहानी
(फोटो-क्विंट हिंदी)

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कैमरा-मुकुल भंडारी

वीडियो एडिटर- प्रशांत चौहान

इलस्ट्रेशन्स- अरूप मिश्रा

दिल्ली के श्रीनिवासपुरी में 38 वर्षीय सोलंकी दिवाकर अपनी पत्नी और दो बच्चे के साथ रहते हैं. उनके पास रहने के लिए एक छोटा सा कमरा है, जिसमें खाना बनाने वाला स्टोव और एक टीवी सेट है. पिछले 10 साल से सोलंकी अपने जीवन-यापन के लिए ओखला मंडी से मालवीय नगर के बीच सीजनल फल बेचते आ रहें हैं.

क्विंट ने फल बेचते समय सोलंकी से बात की. उनके दिमाग में फिल्म ही घूम रही थी. उन्होनें एक्टर्स के साथ काम भी किया है. उनका सपना था कि वो एक बार सिल्वर स्क्रीन पर दिखें.

फिल्मों में जाने का शौक उनका बचपन से था. सोलंकी का फिल्मों से काफी लगाव है साथ ही वो खुद को स्क्रीन पर एक्टिंग करते हुए देखना चाहते हैं.

सोलंकी आगरा के एक छोटे से शहर अछनेरा से दिल्ली साल 1995 में ही आ गए थे. शुरुआत दिनों में उन्होनें घरेलू कामों को किया. फिर गोविंदा की फिल्म 'हीरो नं 1' में सोलंकी ने एक घर के नौकर की भूमिका निभाने का मौका मिला, जिसने सोलंकी को उनके सपनों के करीब पहुंचाया. उनके फिल्मों को लेकर शौक के बारे में उनकी मां भी बताती हैं.

“जब वह 7-8 साल का था, तो वह पास के सिनेमा हॉल से फिल्म रीलों को इकट्ठा किया करता था, और उसे एक बंडल में रख देता था. जब भी मैं उससे पढ़ाई करने के लिए कहती. वह मुझे समझाने लगता कि पढ़ाई करने से कोई फायदा नहीं है. उसका दिमाग हमेशा इन्हीं सब चीजों में लगा रहता था”
सोलंकी की मां

जब वो कपड़े प्रेस करने वाले एक दुकान में काम करते थे, तो काम करने के साथ-साथ आसपास के लोगों को अपना अभिनय भी दिखाते थे. एक दिन उनकी मुलाकात एक थिएटर आर्टिस्ट से हुई, जिन्होंने उन्हें श्री राम सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स में निभाए जा रहे नाटक में अबू सलिम की भूमिका में पेश किया.

“उस सीन में दो-तीन लोगों को मुझे पीटना था. बस.. कोई डायलॉग नही. जब मेरा प्ले हो गया और मैं थिएटर से बाहर आया, तो एक छोटा लड़का मेरे पास आया और कहा कि उसको वास्तव में मेरा किरदार पसंद आया था. यह पहली बार था जब मुझे पर अभिनय करने के बाद तारीफ मिली थी. मैं इस चीज को कभी भी नही भुल सकता.”
सोलंकी दिवाकर

हालांकि, सोलंकी को अभिनय सीखने के लिए कभी किसी संस्थान में दाखिला नही मिला. वो सिर्फ 12वीं क्लास तक पढ़े हैं.

2011-12 में जब सोलंकी नाटकों और अन्य किसी अभिनय के रोल के लिए भटक रहे थे. उन्हें कोई रोल नही मिल रहा था, तब उनके चचेरे भाई हरीश दिनकर जो ‘तितली’ नाम की एक मूवी में असिस्टेंट के रुप में काम कर रहे थे. उन्होनें सोलंकी को दिल्ली में फिल्म के सेट पर विजिट करने को कहा था.

“सुबह के 8 बजे बुलाया था, मैं सुबह 5 बजे उठकर और 7 बजे तक सेट पर पहुंच गया था. मैं बहुत खुश था कि मेरा फिल्म में काम करने का सपना साकार हो रहा था. मैं इतना ज्यादा खुश था कि मेरा सिर दर्द करने लगा. मुझे अपने रोल में सिर्फ एक लाईन बोलनी थी. और वो थी - ‘15 हजार.’
सोलंकी दिवाकर

इसके बाद से सोलंकी ने एक के बाद एक कई ऑडिशन दिए और उन्हें कई फिल्मों में काम करने का मौका मिला. उन्होनें संजय मिश्रा की फिल्म ‘कड़वी हवा’ में देहाती शराबी की भूमिका निभाई है.

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