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"प्लीज मुझे सूडान वापस कभी न भेजें. मैं नरक में जाना पसंद करूंगा, लेकिन फिर कभी सूडान नहीं जाउंगा” ऑपरेशन कावेरी (Operation Kaveri) के तहत रेस्क्यू किए गए एक भारतीय, अवतार सिंह ने मुंबई एयरपोर्ट पर उतरने के कुछ घंटों बाद द क्विंट से यह बात कही.
अवतार सिंह सूडान की राजधानी खार्तूम में स्थिति आरती स्टील में एक इलेक्ट्रिक टेक्नीशियन के रूप में काम करते थे. वे उन 3,000 भारतीयों में से एक है जो सूडान में रहते थे और वहां हिंसा भड़कने के बाद असहाय हो गए थे.
अवतार सिंह और 20 अन्य भारतीय सूडानी सेना के चंगुल से बाल-बाल बचे हैं. सूडानी सेना ने उन्हें घंटों तक बंदूक की नोक पर बंधक बनाकर रखा, उनका सारा सामान लूट लिया और उन पर हमला कर दिया था.
हालांकि, बचाए गए अधिकांश भारतीय नागरिकों के विपरीत, अवतार सिंह अभी घर नहीं जा पाए हैं. सूडान में येल्लो फीवर की उपस्थिति के कारण उन्हें क्वान्टाइन पीरियड के पूरा होने का इंतजार करना पड़ेगा और वर्तमान में वे मुंबई के एक क्वारंटाइन सेंटर में हैं.
द क्विंट ने कई ऐसे भारतीयों से बात की जिन्हें ऑपरेशन कावेरी के तहत रेस्क्यू किया गया है, उन्होंने सूडान से भारत तक की अपनी यात्रा, उनके द्वारा सामना की गई कठिनाइयों, रेस्क्यू मिशन और घर लौटने की उनकी लालसा के बारे में बताया.
खार्तूम में सोबा औद्योगिक क्षेत्र में बसे कमलेश चन्नियारा अपने दोस्तों के साथ छुट्टियां मनाने के लिए पैकिंग कर रहे थे और तभी उन्हें खबर मिली कि सेना ने खार्तूम इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर कब्जा कर लिया है.
उन्होंने द क्विंट को बताया कि लड़ाई के पहले कुछ दिनों में उन्हें कोई सीधी समस्या नहीं हुई, लेकिन जब एक हफ्ते के बाद भी हिंसा नहीं रुकी तो उनके समूह ने महसूस किया कि यह कोई छोटा संघर्ष नहीं है.
चन्नियारा ने कहा, "हमारे पास खाना खत्म होने लगा और स्थिति इतनी खराब हो गई कि हमने 40,000 सूडानी पाउंड (5,500 रुपये) में 5 किलो आलू और टमाटर खरीदे."
कुछ दिनों बाद ही कमलेश को सऊदी अरब में जेद्दा होते हुए गुजरात में राजकोट अपने घर वापस जाना पड़ा.
केरल के मूल निवासी वासिल चारुथला के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. चारुथला मुंबई स्थित ऑफशोर सर्वे कंपनी के सहयोगियों के साथ पोर्ट सूडान के भीतर अल कहिर बंदरगाह का सर्वे करने के लिए सूडान गए थे.
चारुथला ने द क्विंट से बात की और कहा:
भारत में उनके कार्यालय ने भारतीय दूतावास के साथ कोर्डिनेट किया, जिसने समूह को पोर्ट सूडान के एक स्कूल में ट्रांसफर करने के लिए कहा. उन्होंने कहा, "हम आईएनएस सुमेधा से सऊदी अरब पहुंचे और फिर हमें मुंबई के लिए विमान में बिठाया गया."
हालांकि, दूसरी तरफ अवतार सिंह के लिए यह यात्रा इतनी सुगम नहीं थी.
15 अप्रैल की सुबह, 400 सूडानी सैन्यकर्मी आरती स्टील कारखाने में घुस गए और 150 से अधिक कर्मचारियों को बंधक बना लिया. बंदूक की नोक पर बंधक बनाए गए लोगों में अवतार सिंह और 20 साथी भारतीय थे, जिन्हें एक कमरे में रखा गया था.
अवतार सिंह ने क्विंट को बताया, “उन्होंने हमारा सारा सामान और कैश लूट लिए. हमारे शरीर पर केवल कपड़े ही बचे थे. उन्होंने कंपनी का पैसा चुरा लिया और फैक्ट्री में तोड़फोड़ की”
अवतार सिंह ने बताया “हमें सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक बंधक बनाकर रखा गया. शाम 5 बजे, सेना के उस समूह का एक सीनियर अफसर आया. हमने अनुरोध किया कि वह हमें जाने दे. उन्होंने भी सहमति व्यक्त की और कहा कि अब जब हमें पूरी तरह से लूट लिया गया है, तो हम जाने के लिए स्वतंत्र हैं."
भारतीयों का यह समूह वहां से जल्दी निकला और पैदल यात्रा के बाद एक सूडानी कलीग के घर पहुंचे, जहां वे कुछ दिनों तक रहे. उस कलीग के घर के पास एक खाली इमारत ही इस समूह के लिए अस्थायी निवास बन गई.
लेकिन अवतार सिंह के लिए अभी खतरा टला नहीं था. वे एक युद्ध क्षेत्र के बीच में न्यूनतम आपूर्ति के साथ फंसे हुए थे, और जानते थे कि बिना किसी सहायता के पोर्ट सूडान तक पहुंचना एक चमत्कार होगा.
पोर्ट सूडान जाने के लिए, उनका समूह ओमेगा स्टील नामक एक कंपनी के साथ बातचीत कर रहा था. उस कंपनी के पास कुछ बसें थीं, लेकिन उनके पास डीजल नहीं था, और उसकी फैक्ट्री को एक सैन्य अड्डे में बदल दिया गया था.
नतीजतन, ओमेगा स्टील के करीब 200 श्रमिकों और 20 भारतीयों ने खार्तूम से वीरतापूर्वक भागने के प्रयास में ओमेगा स्टील फैक्ट्री पर उस समय छापा मारा, जब यह खाली था.
लेकिन अवतार सिंह को अब सूडानी सेना की परवाह नहीं थी. वह पांच बसों में से एक में बैठकर पोर्ट सूडान में प्रवेश किया. ये सभी बसें जिस डीजल से चल रही थीं वे सूडानी सेना से ली गयी थी.
अवतार सिंह को सूचित किया गया था कि वह अपने बाकी सहयोगियों के साथ दिल्ली जाने वाली फ्लाइट पर नहीं चढ़ सकते थे क्योंकि यह भरी हुई थी. बाद में उन्हें मुंबई के रास्ते दिल्ली जाने वाली उड़ान में बिठाया गया. हालांकि, अधिकारियों ने "प्रोटोकॉल" का हवाला दिया और उन्हें मुंबई में ही डी-बोर्ड करने के लिए कहा.
उनमें येल्लो फीवर डिगनोस नहीं किया गया है और उन्हें वैक्सीन लगाया गया था, लेकिन सूडान में हंगामे के कारण अवतार सिंह ने अपना वैक्सीनेशन कार्ड खो दिया. उन्होंने कहा कि " हमारा वैक्सीनेशन कार्ड सूडान में हमसे लूटी गई चीजों के साथ चला गया"
अवतार सिंह ने द क्विंट को बताया कि उन्हें शनिवार, 29 अप्रैल को क्वारंटाइन सेंटर से रिलीज कर दिया गया था और रविवार की सुबह चंडीगढ़ के लिए उनकी फ्लाइट पकड़नी है.
इस बीच, वासिल चारुथला ने क्वारंटाइन सेंटर की स्थिति बताते हुए कहा कि “हवाईअड्डे के अधिकारियों ने हमें बताया कि यह स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रोटोकॉल है, लेकिन उनमें थोड़ी मानवता होनी चाहिए. जिन लोगों को मेरे साथ क्वारंटाइन किया गया है, उनके पास अपना कोई सामान नहीं है और वे अभी भी यहां संघर्ष कर रहे हैं.”
चारुथला ने कहा कि सूडान में सेना द्वारा उनकी संपत्ति लूटे जाने के बाद से क्वारंटाइन सेंटर के भीतर कई परिवार अपने परिजनों से संपर्क करने में असमर्थ हैं. उन्होंने कहा, “उनके पास केवल उनका पासपोर्ट और वे कपड़े हैं जो उन्होंने पहले से पहने हुए हैं. उनके पास पैसे भी नहीं हैं.”
इसके अलावा, चारुथला ने बचाए गए उन भारतीयों की एक और शिकायत का जिक्र, जो वर्तमान में क्वारंटीन हैं.
उन्होंने पूछा "जिस व्यक्ति से सब कुछ लूट लिया गया हो और वह कैसे परिवहन का खर्च उठा सकता है?"
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