advertisement
बिजनेस स्टैंडर्ड में टीएन नाइनन ने निजीकरण और मौद्रिकरण (मॉनेटाइजेशन) का फर्क बताते हुए लिखा है कि एक सरकार को कारोबार से दूर करता है तो दूसरा सक्रिय हिस्सेदार बनाता है. निजीकरण और विनिवेश में बुरे प्रदर्शन के बाद अब सरकार ने मौद्रिकरण के जरिए 6 लाख करोड़ रुपये जुटाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. यह लक्ष्य ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ की नीति के साथ होगा या इसके बिना यह भी महत्वपूर्ण बात है. भ्रष्टाचार पर अंकुश के मामले में आरंभिक सफलता के बाद भारत 180 देशों में से 78 से फिसलकर 86वें स्थान पर पहुंच चुका है.
लेखक सवाल उठाते हैं कि अडानी समूह को विझिन्जम बंदरगाव बनाने के लिए 30 साल के बजाए 40 साल का ठेका कैसे मिला? उन्होंने टाटा के इंडियन होटल्स की नयी नीलामी रोकने की कोशिशों का भी उदाहरण रखा जिसकी वजह से एक प्रमुख लक्जरी होटल पर उसका नियंत्रण बढ़ गया. बाद में कंपनी को नयी बोली भी हासिल हो गयी. रोड पर टोल ठेकेदारों ने वसूला गया राजस्व कम करके बताया हर स्तर पर सरकारी कर्मचारी मध्यस्थ बनने वाले हैं. संक्षेप में लेखक का मानना है कि मोदी सरकार ने बारूदी सुरंग वाले क्षेत्र में कदम रख दिया है.
पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि महाझूठ का पर्दाफाश हो चुका है. बदनाम 70 साल में जिन संपत्तियों का निर्माण किया गया उनकी बिक्री के लिए महासेल का एलान हो चुका है. सरकार इस अनुमान से खुश है कि उसे डेढ़ लाख करोड़ रुपये का ‘किराया’ आता रहेगा और कांगज पर संपत्ति पर ‘मालिकाना हक’ सरकार का ही बना रहेगा. सरकार को यह उम्मीद भी है कि हस्तांतरण की अवधि जब खत्म होगी तो ये संपत्तियां बेहतर स्थिति में सरकार को ‘वापस’ मिल जाएंगी.
लेखक सवाल उठाते हैं कि सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि मौद्रिकरण के बाद नौकरियां जाएंगी या नहीं या फिर आरक्षण की व्यवस्था समाप्त हो जाएगी. लेखक आशंका जताते है कि मौद्रिकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का मूल्य अस्थिर हो जाएगा. इसमें साजिश की बू आती है. लेखक का कहना है कि बगैर किसी चर्चा के एनएमपी का चोरी-छिपे लाया गया है. न मजदूर संगठनों से परामर्श किया गया है और न ही संसद में चर्चा की जरूरत समझी गयी है. लेखक ने एनएमपी को दुकानें बंद करने से पहले का ‘महासेल’ करार दिया है.
टीजेएस जॉर्ज ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि उन्हें अंबानी की तरह दौलतमंद नहीं होना क्योंकि वे दिन रात धन बचाने की चिंता में डूबे रहते हैं. जबकि, लेखक इस चिंता से आजाद हैं. अंबानी के मुकाबले लेखक कहीं भी अपनी कार में घूम फिर सकते हैं. अंबानी के पास कारों की सीरीज़ है. उनकी कार बुलेट प्रूफ है. ग्रेनेड और लैंड माइन हमलों में भी सुरक्षित रहती है. टायर फटने पर भी यह चल सकती है. फिर भी लेखक अपनी कार में खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं जबकि उनकी कार एक साधारण गोली से भी गिरायी जा सकती है.
शरद पवार ने राणे के व्यवहार को उनका संस्कार बताया. एक संस्कार तो बाल ठाकरे का भी था जिनकी राणे आज भी पूजा करते हैं. आज राणे नरेद्र मोदी की कैबिनेट में हैं. लेखक खुद को स्ट्रीट गैंग का हिस्सा नहीं मानते और इसलिए मोदी कैबिनेट में होने की उम्मीद भी नहीं करते. लेखक पूछते हैं कि इन सब बातों का मतलब क्या यह है कि सुसंस्कृत लोगों को कभी सत्ता नहीं मिलने वाली?
चेतन भगत ने टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा है कि चीन की सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में उभरते ट्यूशन के कारोबार को लेकर सख्त और ड्रेकोनियन रुख अख्तियार किया है. चीन की नयी नीति के अनुसार अब ट्यूशन कारोबार को नये सिरे से खड़ा करना पड़ेगा. अब यह अलाभकारी कंपनी की तरह काम करेगा. इस कारोबार को स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध होने से भी रोक दिया गया है. सप्ताहांत और छुट्टियों में कक्षाएं लेने से भी उन्हें रोक दिया गया है. ऐसा माहौल बनाया गया है कि अगर कोई शिक्षक स्कूल से बाहर अतिरिक्त आमदनी कर रहा है तो उस बारे में लोग बढ़-चढ़कर सूचना साझा करें.
भगत लिखते हैं कि महामारी में भारत में भी शिक्षा व्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है. जहां गांवों में बच्चे स्कूल से दूर हुए हैं वहीं शहरों में भी ऑनलाइन क्लास के नाम पर परोसी जा रही शिक्षा से बच्चों का भला नहीं होने वाला है. ट्यूशन का मकड़जाल भारत के छोटे-छोटे शहरों में है. इन्हें जिम्मेदार बनाने की सलाह लेखक देते हैं. मगर, इनके योगदान को भी वे नहीं नकारते. सरकारी और निजी शिक्षा व्यवस्था में जो फर्क है उस वजह से ट्यूशन के कारोबार को बढ़ावा मिलता रहा है. न तो पॉलिसी चीन की तरह सख्त होनी चाहिए और न ही ट्यूशन के कारोबार को खुली छूट दी जानी चाहिए.
करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि अफगानिस्तान की खबरों के बीच हमारा ध्यान कोविड-19 से जुड़ी खबरों से दूर रहा जो 18 महीनों से हमारी चिंता के केंद्र में रहा है. हफ्तों बाद संक्रमण का स्तर 40 हजार के स्तर पर आया है. आर नंबर में भी कमी आयी है. केरल में निस्संदेह बढ़ते संक्रमण से चिंता बढ़ी है. तो क्या हम कोविड-19 की महामारी के नये चरण में प्रवेश कर रहे हैं? विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक डॉ सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि भारत एक ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां लोग वायरस के साथ रहना सीख जाते हैं.
लेखक बताते हैं कि 60 करोड़ लोगों को कम से कम एक वैक्सीन लग चुकी है. कोई यह नहीं बता सकता कि संक्रमण के कारण बुरे दिन कब, कहां आएगा और यह कितना बुरा होगा. स्वामीनाथन का मानना है कि स्थानीय या क्षेत्रीय स्तर पर भारत ऊंच-नीच देखता रहेगा लेकिन देशव्यापी स्तर पर तीसरी लहर की कोई संभावन नहीं दिखती. वह यह भी बताती हैं कि जिन बच्चों को वैक्सीन नहीं लगी है भविष्य में खतरा उन्हें ही है. हमें तैयार रहने की जरूरत है लेकिन विचलित होने की जरूरत नहीं है. इंग्लैंड में 75 फीसदी वयस्कों को वैक्सीन लग चुकी है. भारत भी उस दिशा में बढ़ रहा है.
रामचंद्र गुहा ने टेलीग्राफ में 1971 की याद अनोखे तरीके से दिलायी है. ब्रिटिश लाइब्रेरी में 30 साल से गुहा जाते रहे हैं और लॉक-अनलॉक के लिए जिस डिजिटल नंबर का इस्तेमाल करते रहे हैं वह है 1971. यह साल उनके लिए इसलिए खास है क्योंकि इसी साल इंग्लैंड को भारत ने पहली बार टेस्ट सीरीज़ में हराया था. इसी साल वेस्टइंडीज के साथ टेस्ट सीरीज में भारत ने फतह पायी थी. 1971 को याद करने की सबसे बड़ी वजह यह है कि 2021 में उन ऐतिहासिक जीतों की 50वीं वर्षगांठ है.
अक्सर भारतीय अखबारों में क्रिकेट के पूरे दिन की खबर नहीं होती थी क्योंकि शाम 7.30 बजे शुरू होने वाले मैच को कवर नहीं किया जा पाता था. दो दिन बाद भी खबर पढ़ने का चाव कम नहीं होता था. लेखक ने गावस्कर, सरदेसाई, बेदी, प्रसन्ना, वेंकटराघवन, वाडेकर जैसे खिलाड़ियों को भी याद किया है जिन्होंने समय-समय पर अपने खेलों से भारतीय क्रिकेट को ऊंचाई दी. गुहा ने भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज के तीसरे टेस्ट के बारे में लिखा है कि रात 10 बजे बिजली चले जाने तक उन्होंने कमेंट्री सुनी. फिर पढ़ाई के लिए जाना पड़ा. देर रात इंग्लैंड के 101 रन पर आऊट होने और चंद्रशेखर के 6 विकेट लेने की खबर सुनी. एक बार फिर लेखक महामारी के खत्म होने का इंतजार कर रहे है ताकि ब्रिटिश लाइब्रेरी में वे वक्त बिताएं लॉकर नंबर 1971 के साथ.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)