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उधर पीएम मोदी चमाचम जलियांवाला बाग (Jallianwala Bagh) का उद्घाटन कर रहे थे और इधर कांग्रेस हरियाणा की बीजेपी सरकार (BJP Gott) के एक अफसर के आदेश की तुलना जरनल डायर के 'फायर' वाले ऑर्डर से कर रही थी. इन दोनों घटनाओं का एक साथ होना महज संयोग है या सियासत के बदले चरित्र का संकेत भी है?
करनाल में एसडीएम आयुष सिन्हा एक वीडियो में पुलिस वालों को ये कहते हुए पाए गए कि इधर से कोई गुजरने न पाए. जो आए उसका सिर फोड़ देना. फिर हुआ भी यही. किसान आए और उनके सिर फोड़े गए. जमकर लाठियां चलीं. उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया.
दरअसल, किसान आंदोलन को लेकर हरियाणा की बीजेपी सरकार और किसान आमने-सामने हैं. हरियाणा में किसान अक्सर बीजेपी नेताओं का विरोध कर रहे हैं. 28 अगस्त को करनाल में बीजेपी की बैठक थी. इस बैठक के दौरान भी किसान विरोध करने न पहुंच जाएं इसलिए बंदोबस्त की गई थी. लेकिन किसान आए और पीटे खूब गए.
किसानों की पिटाई पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कह दिया कि बीजेपी सरकार जनरल डायर जैसा बर्ताव कर रही है. जिस दिन हरियाणा में ये सब हुआ उसी दिन प्रधानमंत्री ने पड़ोसी पंजाब में जलियांवाला बाग को उसके सौंदर्यीकरण का बाद वर्चुअल उद्घाटन किया. जलियांवाला बाग में ही अंग्रेज जनरल डायर ने निहत्थे और शांतिपूर्ण बैठक कर रहे किसानों पर गोलियां चलवा दी थीं.
जब जलियांवाला बाग को फिर से चमकाया जाता है तो दरअसल हम ये कहते हैं कि जलियांवाला बाग में जो हुआ था वो गलत था. शांतिपूर्व प्रदर्शन करना सही है. उसपर जनरल डायर को वैसी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए थी. ये हमारी कथनी है. करनी क्या है? शांतिपूर्ण प्रदर्शन को कुचलने के लिए हम अंग्रेजों के हथकंडों से भी आगे चले जा रहे हैं. वैकेंसी न निकलने के विरोध में छात्र एमपी में प्रोटेस्ट करते हैं तो पुलिस जमकर लाठियां तोड़ती है.
यूपी बीजेपी किसानों को लेकर बाकायदा ट्वीट करती है कि - "सुना लखनऊ जा रहे तम, किमें पंगा न लिए भाई... योगी बैठ्या है. बक्कल तार दिया करे और पोस्टर भी लगवा दिया करे." पोस्टर का जिक्र कर पार्टी याद दिलवा रही थी कि किस तरह यूपी सरकार ने CAA प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगवा दिए थे. और ये तब कह रही है जब हाईकोर्ट ने पोस्टर लगाने को गलत बताया था.
प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए प्रपंच किए जा रहे हैं. इंदौर में एक चूड़ीवाले को पीटा गया. कार्रवाई की मांग करते हुए लोगों ने थाने पर प्रदर्शन किया. कलेक्टर ने कहा कि प्रदर्शन के पीछे PFI का हाथ था. बाद में DGP बोले ऐसा कोई सबूत नहीं मिला. लेकिन तब तक प्रदर्शनकारियों के चरित्र को लेकर कन्फ्यूजन फैला दिया गया. मामला भी दर्ज हो चुका है.
खुद दिल्ली बॉर्डर पर बैठे किसानों को कभी अलगाववादी तो कभी आतंकवादी तक कह दिया गया.
CAA-NRC के खिलाफ प्रदर्शनकारियों के प्रति सरकार का रवैया जगजाहिर है.
जो लोग ऑनलाइन प्रदर्शन करते हैं. विरोध करते हैं उनपर तरह तरह से शिकंजा है.
सरकार के विरोध का मतलब देशद्रोह बताया जाने लगा है.
प्रत्यक्ष ये हाल है, लेकिन प्रतीकों को लेकर खूब सजगता दिखती है. जलियांवाला बाग सजाएंगे. सरदार की मूर्ति लगाएंगे. राम मंंदिर बनाएंगे लेकिन राम का कहा नहीं मानेंगे. थाली बजवाएंगे लेकिन हेल्थ वर्कर की हालत नहीं सुधारेंगे. भाषण में एक से एक छंद बाधेंगे लेकिन जमीन पर कुछ और करेंगे. सजावट, ताली-थाली, छंद पर पेड मीडिया में जमकर बात होगी. पता है काम इसी से बन जाना है.
चिंता की बात है कि अब लग रहा है जरा सी परदेदारी भी नहीं रही. करनाल के एसडीएम का वीडियो लगता है सायास शूट किया गया है. कुछ भी छिपाने की जरूरत नहीं समझी गई. किसानों पर यूपी बीजेपी का ट्वीट याद कीजिए और फिर एसडीएम की बात सुनिए और फिर इंदौर में इंसाफ मांगने गए लोगों पर तोहमत लगाने के बाद FIR पर ध्यान कीजिए. आपको पैटर्न नजर आएगा. प्रचंड बहुमत का कवच है. कुछ भी करेंगे. डर किस बात का. प्रतीकों की पूजा. प्रत्यक्ष चरित्र कुछ और.
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