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1910 में जब अंग्रेज भारत को लूट रहे थे, तब बंगाली कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा था, "जहां मन बिना किसी डर के होता है और सिर ऊंचा होता है."
फिर भी, लगभग 122 साल बाद, टैगोर की कविता भारत और दुनिया भर में पत्रकारिता जांच के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश बनी हुई है. इस विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर, हमने उनकी कविता पढ़ी जिसका शीर्षक है 'जागे ये देश हमारा'
जहां मन में भय न हो कोई, और ऊंचा हो भाल
जहां ज्ञान हो मुक्त,
जहां संकीर्ण दीवारों में न बंटी हो दुनिया
जहां सत्य की गहराई से निकलते हों शब्द सभी,
जहां दोषरहित सृजन की चाह में,
अनथक उठती हों सभी भुजाएं,
जहां रूढ़ियों के रेगिस्तान में खो न गई हो,
तर्क-बुद्धि-विवेक की स्वच्छ धारा
जहां लगातार खुले विचारों और कर्मों से
मिलती हो मन को सही दिशा...
ओ परमपिता, स्वतंत्रता के उसी स्वर्ग में जागे ये देश हमारा !
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