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तीन तलाक के बाद अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच निकाह हलाला और बहु विवाह समेत 4 तरह के निकाहों पर सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला बेहद अहम है क्योंकि इसमें तय होगा कि ये वैध हैं या अवैध.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने इस मामले को संवैधानिक बेंच के पास भेज दिया है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निकाह हलाला और मुस्लिमों में कई विवाह जैसे मामलों पर जवाब दाखिल करने का आदेश भी दिया है.
बीजेपी लीडर अश्विनी उपाध्याय और 3 मुस्लिम लोगों ने इन मामलों पर याचिका दायर की है.
इन याचिकाओं में मांग की गई है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ एक्ट 1937 की धारा-2 को असंवैधानिक करार दिया जाए. इसमें दावा किया गया है कि इसी की वजह से मुसलमानों में कई शादियों और निकाह हलाला को मान्यता मिली हुई है.
सुप्रीम कोर्ट पहले ही तीन तलाक को असंवैधानिक करार दे चुका है. अब निकाह हलाला और बहुविवाह को कानून की कसौटी पर परखा जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के 22 अगस्त 2017 के फैसले के बाद ही सरकार ने तीन तलाक को आपराधिक करार देने का कानून बनाने का फैसला किया है, जिसे लोकसभा से मंजूरी मिल चुकी है पर राज्यसभा में अभी भी बिल अटका पड़ा है.
चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि निकाह हलाला और बहुविवाह संवैधानिक तौर पर सही हैं या नहीं ये परखने के लिए 5 जजों की संवैधानिक बेंच बनाई जाएगी.
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक पर दिए गए फैसले का जिक्र किया कि तीन तलाक धार्मिक गतिविधियों का हिस्सा नहीं है.
दिल्ली के जसोला विहार में रहने वाली समीना बेगम ने निकाह हलाला और बहुविवाह को मान्यता देने वाली मुस्लिम पर्सनल एप्लीकेशन एक्ट 1937 की धारा-2 को चुनौती दी है. इसके मुताबिक उसे असंवैधानिक और गैर-कानूनी घोषित किया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता का कहना है कि वो खुद इसकी शिकार हैं.
दिल्ली में महरौली की रहने वाली नफीसा खान की याचिका के मुताबिक उनका निकाह 2008 में हुआ था. उनके 2 बच्चे हुए उसके बाद दहेज की मांग पर प्रताड़ित किया जाने लगा. फिर चरित्र पर आरोप लगाए जाने लगे और कुछ दिन बाद पति ने तलाक दिए बगैर जनवरी 2018 में दूसरी शादी कर ली.
पुलिस ने ये कहते हुए नफीसा की शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया कि शरीयत इसकी इजाजत देता है.
पति ने अगर पत्नी को तलाक दे दिया लेकिन अगर उसे अहसास हो गया कि गलती हो गई है तो तलाकशुदा महिला को दूसरे आदमी से निकाह करके शारीरिक संबंध बनाने होंगे. फिर वो व्यक्ति महिला को तलाक देगा तब पुराना पति दोबारा महिला से शादी कर पाएगा.
इस्लामिक प्रथा में बहुविवाह का चलन है. इसके तहत कोई मुस्लिम 4 शादी कर सकता है.
कुछ दिन के लिए की जानी वाली अस्थायी शादी. शिया समुदाय में ज्यादा प्रचलित है. इसमें एक करार होता है, जिसमें पहले से तय कर दिया जाता है कि शादी कितने दिन के लिए हो रही है. तय वक्त बीतने पर शादी अपने आप खत्म मान ली जाती है और महिला को मेहर के रूप में कुछ पैसे दिए जाते हैं.
यह भी तय वक्त के लिए की जाने वाली शादी है. यह सुन्नी समुदाय में प्रचलित है. इसमें गवाह की मौजूदगी में एक करार होता है जो लिखित या मौखिक हो सकता है. इसमें पति-पत्नी मर्जी से अपने कुछ अधिकार छोड़ सकते हैं. वो चाहें तो साथ रहना भी जरूरी नहीं है. बदले में इसमें भी महिला को मेहर के रूप में कुछ पैसे दिए जाते हैं.
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